31 दिसंबर, 2021

दलदल में खिला कमल



             जीवन की समस्याओं के दलदल में

खिला फूल कमल का जब 

जितना खिला दिखा अनुपम  

मन को बांधे रखने में  सक्षम  |

यही विशेषता उसकी याद आती

जब भी एकांत मैं बैठी होती

मेरे मन को उसकी एक एक पंखुड़ी सहलाती

सारा प्यार दुलार अपने साथ ले जाती |

भ्रमर वृन्द अटखेलियाँ करते उनसे 

जब खिल जातीं झूमतीं लहरातीं मन्द वायु में  

फिर भी खुद को रखती दूर पंक से 

               वायु बेग का मुकाबला करतीं|                   हार मानना सीखा नहीं

 दृढ कदम जमाए रहीं 

एक लक्ष्य ही रहा मन में 

जिसमें वे सफल रहीं |

 माली की देखरेख से वे खुश रहतीं

स्वयम की विशेषता समझतीं

 सब को दर किनारे रखतीं |

पंक में  पलतीं पर उससे दूर रहतीं 

बिशेषता है यही उनमें

 सबसे अलग थलग रहीं

कोई बुराई न साथ में ली

 खुद पाक साफ रहीं  |

कमल पुष्प  ने तभी 

अपना स्थान प्रभु चरणों में पाया  

आम पुष्पों से दूरी रखी 

सरस्वती का नाम कमलासनी कहलाया    |

आशा

30 दिसंबर, 2021

क्षणिकाएं (सर्दी )


 १-         जिन्दगी का भार यदि खुद का हो

सहा जा सकता है पर परिवार का क्या करें 

उनकी समस्याओं से भरी बातों का 

कोई अंत न हीं होता   क्या करें   |


२-सर छिपाने को यदि छत न हो 

दो जून की रोटी यदि मयस्सर न हो 

जियें तो कैसे जियें बातों से पेट नहीं भरता 

कोई कार्य तो ऐसा हो व्यस्त रहने के लिए |     


३-यह आर्थिक तंगी पहले न थी 

अब सहनशक्ति पार कर गई 

जीना हुआ दूभर अब तो 

महंगाई हमें भी मात दे गई   |


४-मेरा मन इतना कमजोर नहीं 

कठिनाइयों  से जो भय खाए 

पर पतली कोई गली न मिली  

उनसे बच  कर निकल जाए    |



५-इस मौसम में सर्द हवाएं तन मन दहलाएं   

जलते अलाव तक ठण्ड कम न कर पाएं   

आम आदमीं की   कठिनाइयाँ बढ़ती जाएं 

मन को बेकरार  करती जाएं |


आशा 

                                                    

अकारथ जीवन


 

ना तो कोई रंग ना तरंग

इस अकारथ  जीवन में

बोझ बन कर रह गया है

व्यर्थ इस धरती पर पड़ा है |

है बेनूर जिन्दगी उसकी

कोई भाव जन्म न लेते

जो मन की खुशियाँ सहलाते

दो शब्द प्यार के बोल पाते |

यह बेरंग जिन्दगी है  कैसी

  एक बदरंग दाग हुई दुनिया में

कभी मीठे बोल न मुखरित होते

  मुख मंडल से उसके |

सदा जली कटी भाषा का प्रयोग

मन विदीर्ण कर जाता सब का

उसकी  कर्कश बोली से

सबका इतना ही है नाता |

छोटे बच्चे तक तरस जाते

 दुलार पाने को उसका 

उसके आते ही कौने में छिप जाते 

 सुई पटक सन्नाटा होता

मन  विक्षोभ से  भर जाता |

आशा

29 दिसंबर, 2021

यह दिन जल्दी क्यूँ न आए


                                                      नव वर्ष का प्रथम दिन

 झाँक रहा चिलमन की ओट से

आने को है बेकरार

फिर भी पैर ठिठक रहे |

कहीं कोई व्यवधान

न आ जाए राह में

जैसे पिछले वर्ष राह रोकी

 कोविद की महामारी ने |

त्यौहार का सारा आनंद

  फीका कर  दिया था

 घर के अन्दर ही कैद किया था

 सरकार ने  लौक डाउन से  |

कभी मन में बेचैनी होती

इतना इन्तजार किस लिए

कब तक राह देखी जाए

नव वर्ष जल्दी से क्यूँ न आए |

आशा

26 दिसंबर, 2021

हाइकु

 






१-नव वर्ष है     

ले आया कुछ सोच 

 बढ़ते चलो  

 

२-कभी सोचना

किसी से भय न हो 

 बिंदास रहो  

 

३-यह आया है

कहां से किस लिए

मन का सोच

 


४-छोटी कहानी

जीवन की ये जानी  

हुआ  संतप्त  

 

५-शायद होता

कोई हाथ सर पे

यहीं रहता 

 

६- जीवन कैसा

गुजरेगा न जाना

यही न सोचा

 

७-नव वर्ष का

आगमन होना है

करो स्वागत

आशा

हूँ कवी कोई शायर नहीं


हूँ कवी शायर नहीं हूँ
माना शब्दों की हेराफेरी करता हूँ
किसी का दिल न हो आहत
फिर भी ध्यान रखता हूँ |
हूँ एक रमता जोगी
कोई घर न ठिकाना
जहां थोड़ा सा प्यार मिया
वहीं कदमों का थम जाना |
यही फितरत है मेरी
इससे कभी दूर न हुआ
दो रोटी की भूख जब हुई
लम्बे लम्बे डग भरता हूँ |
हूँ एक प्रकृति प्रेमी
हरी भरी वादियों को देख कर
मन की प्यास बुझा लेता हूँ
कोई चिंता नहीं करता हूँ |
आशा

25 दिसंबर, 2021

बड़ा दिन आया




बड़े दिन की हार्दिक शुभ कामनाएं 
 
बड़ा दिन आया खुशियाँ ले 

 बड़े इन्तजार के बाद

                चिलमन से झांकते छिपते छिपाते 

कोरोना के उपद्रव से भयभीत रहा पहले  |

कहीं यह त्यौहार भी ना फीका हो जाए   

फिर से हुआ यदि  लौक डाउन

कहीं सान्ता क्लाज न फँस जाए

आज के झमेलों में |

हमने बहुत सी तैयारियां की है

उसके स्वागत के लिए

 हैं बड़े उत्साहित कब वह आए

हमें मन चाहे पुरुस्कार दे पाए |

जो खुशी उससे हमें मिलती

               बयान करने को शब्द नहीं मिलते

उनकी गरिमा कुछ और ही होती

तभी होती इतनी बेकरारी

 इस के  आने की राह देखने की |

 


आशा