चुपके चुपके आना
तुम्हारा
वृक्षों के पीछे से झांकना
हे भुवन भास्कर तब
रूप तुम्हारा
होता विशिष्ट मन
मोहक |
यही रूप देखने को
लालाईत
रहता सारा जन मानस
बड़े जतन से करते पूजन
तुम्हें जल करते अर्पण |
यही रूप आँखों में
बसा रहता
हमारे मन को सक्षम बनाता
करता हमें ऊर्जा प्रदान
समस्त दैनिक कार्यों
के लिए |
प्रातः से शाम तक व्यस्त
रहते
शाम होते ही तुम
जाना चाहते
होता आसमा सुनहरा लाल
धीमीं गति से छिपते छिपाते जाते|
तुम दिखते थाली जैसे
होता समा रंगीन अस्ताचल का
विहंगम दृष्टि जब डालते
उड़ती चिड़ियों का
कलरव होता|
वे लौटतीं अपने बसेरों में
व्याकुल अपने बच्चों से मिलने
ये दृश्य बहुत मनोहर
होते
दिल चाहता यहीं रम
जाऊं|
हर दिन यही नजारे देखूं
खुशहाल जिन्दगी का करू अनुसरण
इस नियमित जीवन क्रम को
अपनी जिन्दगी में उतारूं|
आशा