मधुर गीत गाने को संगीत बनाने को
समय की कोई पावंदी नहीं होती
पर मैं उलझी उलझी रहती हूँ
कहीं भटक न जाऊं बेसुरी न हो जाऊं |
हंसी का पात्र बनने का
मुझे कोई शौक नहीं
संगीत हो सुर ताल से परिपूर्ण
शब्दों हो रंगीन यही रुचिकर
मुझे |
गीत जब गाऊँ सभी जन सराहें
मुझे
मेरे मुंह से स्वर पुष्प झरें
मन की प्रसन्नता छलके
खुशी चहु ओर दिखे यही है
प्रिय मुझे |
जाने कब पूर्णता हांसिल हो
पाएगी
मेरे सपनों की दुनिया आबाद
हो पाएगी
एक यही अरमान है अधूरा मेरा
कुछ और अधिक की चाह नहीं मुझे |
करती हूँ अरदास अभ्यास
प्रति दिन
प्रभु करलो स्वीकार मुझे दो चरणों में स्थान
और शीश पर हाथ मेरे जिससे
मैं भवसागर से
तर पाऊँ पाकर तुम्हारा साथ |
आशा