राम राम बसा मेरे उर में
मैं दूर रहूँ कैसे तुमसे
जब तक राम नहीं होगा मन में
मेरा जीवन अधूरा रहेगा |
दिन रात एक ही रटन
जय हो सीता राम की राधे श्याम की
कुछ और नहीं सूझता
जीवन कैसे कटे हरि नाम बिना
|
यह परिवर्तन आया कब कैसे
न जाने कब कितने समय से
उल्झन में हूँ किससे कहूं
कैसे अपने मन का समाधान करूं|
न जाने कितनी परीक्षाएं
मेरी लोगे
अपना अनुकरण सिखा देना
है यही संजीवनी बूटी
यही मुझे समझा देना |
आशा