राम राम बसा मेरे उर में
मैं दूर रहूँ कैसे तुमसे
जब तक राम नहीं होगा मन में
मेरा जीवन अधूरा रहेगा |
दिन रात एक ही रटन
जय हो सीता राम की राधे श्याम की
कुछ और नहीं सूझता
जीवन कैसे कटे हरि नाम बिना
|
यह परिवर्तन आया कब कैसे
न जाने कब कितने समय से
उल्झन में हूँ किससे कहूं
कैसे अपने मन का समाधान करूं|
न जाने कितनी परीक्षाएं
मेरी लोगे
अपना अनुकरण सिखा देना
है यही संजीवनी बूटी
यही मुझे समझा देना |
आशा
1-बिना धन मन के कोई कार्य नहीं होता
यह देखा मैंने अपने छोटे से
जीवन में
एक पत्ता भी न हिल पाए वायु बहाव बिना
क्यों आदत हो गई जान पाना मुश्किल |
2-ज़रा सी बात पर आंसू बहाना
क्या मूर्खता नहीं जज्बातों में बह जाना
दिया जो अनमोल खजाना
अश्रुओं का
क्यों अकारथ जाए बह कर |
3-उद्विग्न हो बेचैन सब को कर जाए
यदि न हो आत्मविश्वास स्वयं
पर
अधर में
लटका ही रह जाए
कठोर धरा पर न टिक पाए |
4-कितनी बेचैनी आसपास
मन को भी घेर लिया उसने
बुद्धि भी विचलित हुई है
कोई विकल्प नहीं छोड़ा उसने |
गली में सीटियाँ बजाते हो
तुम क्यों उसका पीछा करते हो
जग हंसाई का कारण बनाते हो
कभी सोच कर देखना उसके प्रति
क्यों उसके जीवन को
नरक बनाने पर तुले हो
क्या सही है तुम्हारा व्यवहार
उसके प्रति |
मानव योनी की प्राप्ति के
लिए
घूम चुका चौरासी लाख योनियों
में
कहाँ नहीं भटका कितने रूप
धरे
तब जाकर मानव तन मिला |
है सबसे अलग मिलना श्रेष्ठ योनी
का
यदि मन से स्वीकार किया हो
जितने कर्म किये पहले
फल अब भोग रहा हूँ |
ईश्वर ने सभी कर्मों का
लेखा जोखा रखा है मेरे खाते
में
जिनकी पूर्ती के लिए
जाने कितने जन्म लगेंगे |
जाने कब भाग्य के कुकृत्यों
पर ताला लगेगा
इस भवसागर के जालक से
छुटकारा मिलेगा
अब हूँ सतर्क जाने अनजाने
में
यदि कुछ गलत हो जाए
प्रभु से क्षमा मांग लेता हूँ
जिसने मांगी क्षमा
मानो जग जीत लिया उसने|
भगवान के दिशा निर्देश पर
चल कर
अपना मार्ग प्रशस्त किया है
गुरू से मिली प्रेरणा जब से
पीछे पलट कर न देखा है |
उन कार्यों को कभी
नहीं दोहराया
सांसारिकता को त्यागा
माया मोह से बच कर चला
मुक्ति मार्ग पर चल दिया |
दीखता न कोई राह में
जीवन की शाम ढल गई
जीवन डूबा अंधकार में |
जब हाथ पकड़ कर चले साथ
कितने थे जीवंत
आगे का कभी सोचा नहीं
ख्याल कभी न आया उसका |
जीवन काँटों से भरा है
बहुत कष्ट आते जीवन में
सुख दुःख तो आते जाते हैं
पर सुख होता क्षणिक |
दुःख खेलता लंबी पारी
दौनों से घबराना कैसा
हार जीत लगी रहती है
इस छोटे से जीवन में |
जिसने मानी हार
जिन्दगी की जंग से
वही जंग जीत न पाया
जिसने उसे दूर हटाया
सही जिन्दगी जी पाया |
जितनी साँसे दी भगवान ने
हिसाब उनका तो देना होगा
तुम्हें उसके दरवार में
तुमने कितना न्याय किया उनसे
यही सब सच कहना होगा |
खुद चाहे कुछ भी न किया हो
या किसी ने जबरन करवाया हो
भागीदार तो दौनों रहे
हो उन कृत्यों
में
कोई नहीं बच पाया
दुनिया के प्रपंचों से |
आशा
कुछ उसने समझा सुना
मैंने कोई अर्थ लगाया पर
किसी की समझ में न आया
तुमने क्या कहना चाहा |
इन्हीं उलझनों से निकल न पाई
जीवन की मीमांसा कर न पाई
यही है सार मानव जीवन का
जिससे पार नहीं हो पाई |
कभी अचानक मौन बने रहना
कोई कुछ भी कहे ध्यान न देना
क्या यह तुम्हारी आदत न थी
या अभी ही इसे पाला है |
मुझे भय भी होता है
तुम कहाँ खो गए हो
क्यूँ तुमने मुझे विस्मृत किया है
मैंने क्या कसूर किया है |
जीवन भार सा लगने लगा है
छोटे से जीवन में यह दुराव क्यूँ ?
मानव जीवन का सार यही है
या है कुछ और भी |
आशा
खोज रही दाना
पानी
अपने नन्हें
मुन्ने
चूजों के लिए|
वह है इन्तजार
में
कब लकडहारा
आएगा
फलों से भरी
डाली
पर प्रहार करेगा |
नीचे गिरी
डाली से
फल चुनने में
उसे
बड़ी आसानी
होगी
कार्य से हो
कर निवृत्त
वह जल्दी से
घर पहुंचेगी |
यह भी डर सता रहा उसको
कोई घरोंदा न
तोड़ डाले उसका
चूजों को चोट
पहुंचाए
वह कैसे यह
सदमा सहेगी |
जब लकड़ी कटी
उसने धन्यवाद
दिया
लकड़ी काटने
वाले को
और चलदी चौंच
में दाना भर के |
खुद खाया
बच्चों को खिलाया
फिर चल पड़ी नए
बसेरे की तलाश में
शायद यहाँ
उसका
इतना ही समय शेष था |