19 अप्रैल, 2022

मैंने क्या सोचा

 

मैंने क्या सोचा

क्यों किसी को दिल दिया

प्यार किस चिड़िया को कहा

 अब तक अर्थ न समझा |

|दूर के ढोल सुहाने होते  

कहावत सही नजर आई

जब उस प्यार  ने

 सर पर चढ़ घंटी बजाई |

जितने भी अनुभव हुए

मन को दुखी करते  गए

कोई मिठास नहीं थी

उन शब्दों की टोकरी में |

मैंने तो फूल चुने थे

सुन्दर और सुगन्धित

पुष्प गुच्छ बनाने को

कैसे  बदलाव आया अनोखा |

न गंध है न सौन्दर्य

उस ढाई अक्षर में

पर फिर भी सारा जग

बहक रहा है प्यार के चक्कर में |

जीवन में होती इसकी भी जररूरत

भोजन व् जल के जैसी

 बिन पानी भोजन के जीना

मुश्किल हुआ जाता है |

प्यार के दर्शन बिना प्राण

 अधर में लटक जाता है

यही प्रश्न मन को बेचैन किये रहते

किसे  दूं प्राथमिकता |

भावनाओं को या यथार्थ  को

अब तक निश्चित नहीं कर पाई

सभी के ख्याल जाने

पर फिर भी निष्कार्ष नही निकला

आशा

मैंने क्या सोचा

 

मैंने क्या सोचा

क्यों किसी को दिल दिया?

प्यार किस चिड़िया को कहा

 अब तक अर्थ न समझा |

दूर के ढोल सुहाने लगते  

कहावत सही नजर आई

जब उस के  प्यार  ने

 सर पर चढ़ घंटी बजाई |

जितने भी अनुभव हुए

मन को दुखी करते गए

कोई मिठास नहीं थी

उन शब्दों की टोकरी में |

मैंने तो फूल चुने थे

सुन्दर और सुगन्धित

पुष्प गुच्छ बनाने को

कैसे  बदलाव आया अनोखा |

न गंध है न सौन्दर्य

उस ढाई अक्षर में

पर फिर भी सारा जग बहका 

 प्यार के चक्कर में |

जीवन में होती इसकी भी जररूरत

भोजन  जल मकान  जैसी

 बिन पानी .भोजन ,सर पर छत के बिना 

 जीना मुश्किल हुआ जाता है 

कैसे क्या करें रोएँ या हंसे

प्यार के दर्शन बिना प्राण

 अधर में लटक जाता है |

यही प्रश्न मन को बेचैन किये रहते

किसे  दूं प्राथमिकता 

भावनाओं को या यथार्थ  को

अब तक निश्चित नहीं कर पाई|

सभी के ख्याल जाने

पर फिर भी निष्कार्ष नही निकला

क्या है जरूरी खुशहाल जिन्दगी के लिए |

आशा

18 अप्रैल, 2022

मैंने क्या आकलन किया

 



मेरे ख्यालों  में तुम बसे हो

ध्यान कभी भटका नहीं

यही एकाग्र चित्त होना है

पर तुमने जाना नहीं |

मुझे तुमसे है लगाव कितना गहरा

जाने किस जन्म का

मैंने खोजना भी चाहा

पर खोज अधूरी रही |

यह जीवन कब पाया कैसे पाया

कितने जतन किये होंगे

आकलन तक न कर पाई

मन में मलाल रहा |

जीवन धन्य हो जाता मेरा 

तुम्हारा साथ जन्म जन्मान्तर तक पाती  

दूरी न होती तुमसे ज़रा भी

 यह  जीवन सफल हो जाता मेरा  |

आशा 

17 अप्रैल, 2022

आज का हवाला


 

कुछ तुमने कहा

कुछ देखा सुना मैंने 

तीसरे ने सुना अनसुना किया

चौथे ने कुछ और ही अर्थ लगाया |

अर्थ का अनर्थ हो गया

कारण कोई और नहीं था

  केवल लापरवाही थी 

मन से सुनना न चाहा  |

यही बात मुझे सालती है

बहुत व्यथित हो जाती हूँ

मेरा तुम्हारा क्या कोई महत्व नहीं

इस तरह नकार दिया जाता है हमें

मानो हम कुछ जानते न हों |

आज का हवाला बारबार दिया जाता है

इसको आदर्श मान अकारण बहस की जाती है

जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता

सिवाय समय की बर्बादी के |

यदि हम जो चाहते थे सुन लिया होता

तब क्या गलत होता कुछ छोटे न हो जाते

या उनकी आधुनिकता में कमी आ जाती

क्या आज के समाज में वे पिछड़ जाते |

समझ नहीं आता आज का अनुकूलन 

पहले क्या लोग जीते नहीं थे

पर पहले संस्कार अधिक थे

दिखावे को कोई स्थान नहीं था |

आशा

16 अप्रैल, 2022

हाइकु

१-उसने  कभी   

कुछ भी नहीं चाहा 

है अलग से 


२- प्यार तुम्हारा 

खुद पाने के लिए  

सोंपा खुद को 


३-सपना देखा 

 सजाया  सवारा है 

कौने कौने को 

४-  जब  अपेक्षा 

किसीसे  भी नहीं की 

 तुम्हारे सिवा 


५ -जीने के लिए 

आसरा चाहिए था 

उसी में खोई 


६-- गीत गाने की 

गुनगुनाने  से ही 

होती  प्रवल


७--  धन दौलत 

दिल की दौलत से 

कम न हीं  है 


८ -नहीं  संतुष्टि 

 रहती है मन में 

 किसी से मिल  


९-- सारे जग से 

माया मोह मद से 

दूर रही हूँ 


१० - खोई रहती 

भावों के सागर में 

शान्ति नहीं  है 


११ - थोपे न जाते  

विचार  किसी पर  

जबरजस्ती से 


१२ -    धरा आसमां

मिलते  क्षितिज में 

 हुए प्रसन्न 


१२ -महक आती 

फूलों की कोमलता 

मन छू जाती 

आशा 

15 अप्रैल, 2022

सिलवटें




               तुम्हारे चहरे पर                                               सिलवटें क्यों है
                  क्या किसी ने

 दिल दुखाया है तुम्हारा |

 तुमसे उसे जो चाह थी 

न मिल पाई 

उसी की नाराजगी 

दिखी उसके व्यवहार में

और सिलवटें तुम्हारे आनन पर |

तुमने ना कुछ बोला

ना स्पष्ट किया अपने भावों से

 सिमेट लिया खुद को  

अपने अंतस  में  |

किस बात से हुए क्रुद्ध 

यदि संकेत दिए होते

एक भी सिलवट दिखाई नहीं देती

तुम्हारे मुख मंडल पर |

कोई शिकन न छू पाती तुम्हें

किसी के आहत करने की  

 मंद मुस्कान बनी रहती

बहुत समय तक तुम्हारे चहरे पर |

क्या कारण है

 तुमने चुप्पी साधी है

क्या अनवरत चुप रहने की

कसम खाई है |

आशा 

                                                                                  

तुलसी


                                                        मैं तेरे आँगन की शोभा

कोई साधारण पौधा नहीं

तुलसी हूँ बहुत काम की

कभी दवा में होती प्रयुक्त |

कभी देवता पर चढ़ाई जाती

गंगा जल में डाली जाती

पूजन अर्चन में नित्य काम आती |

जिस घर में तुलसी का पौधा

वहां सदा रहता नारायण का वास

लोग होते धर्म भीरु ,दान वीर

और धर्मात्मा मन के अमीर |

आशा