भावों की उत्तंग तरंगें
जब विशाल रूप लेतीं
मन के सारे तार छिड़ जाते
उन्हें शांत करने में |
पर कहीं कुछ बिखर जाता
किरच किरच हो जाता
कोई उसे समेंट नहीं पाता
अपनी बाहों में |
कितने भी जतन करता
मन का बोझ कम होने का
नाम ही न लेता
मचल जाता छोटे बालक सा |
यही प्रपंच शोभा न देता
एक परिपक्व् उम्र के व्यक्ति को
वह हँसी का पात्र बनता
जब महफिल सजती और
वह अपनी रचनाएं पढता |
वह सोचता लोग दाद दे रहे हैं
पर यहीं वह गलत होता
कवि कहलाने की लालसा
उसे अपनी कमियों तक
पहुँचने नहीं देतीं
जन मानस तो दाद की जगह
उपहास में व्यस्त रहता तालियाँ बजाने में |
वह कितनी ही बार सोचता
उसने क्या लिखा किस पर लिखा
पर थाह नहीं मिल पाती |
यहीं तो कमीं रह जाती
वह क्या सोचता
पर किससे कहता
सब समझ से परे होता |
आशा