रहूँ उदास और सोच में डुबी रहूँ
क्या रखा है इस जिन्दगी में
कोई अरमा अब शेष नहीं हैं
जिन्दगी जी ली है पर्याप्त |
कोई कार्य अधूरा नहीं छोड़ा
यह है ख्याल मेरा या सत्यता
अब जीने से क्या लाभ
जितना समय शेष है
प्रभु चरणों में अर्पित करूं |
और आगे की सोचूँ
क्या मैं ऐसा कर पाऊंगी
इतनी शक्ति मुझे दो परमात्मा
अपने ध्येय में सफल रहूँ |
कोई बाधा बीच में न आए
अपने सोच में सफल रहूँ
भव सागर को पार करूं |
मेरी नैया पार लगादो
मझदार में न रह पाऊँ
पार लगा दो मेरा जीवन
इतना उपकार करो मुझ पर |
जीवन क्षणिक रह गया है
उसका भी सदुपयोग करूं पूरा
अब जीवन भार सा हुआ है
क्या करूं इसका |
आशा सक्सेना