कितनी बार सोचा समझा
कुछ सीखने की कोशिश की
पर मन पर नियंत्रण न रहा
हर बात में उत्श्रंखल हुआ |
किसी पर न जाने क्यूँ विश्वास न रहा
ना ही आत्मविश्वास रहा अपने पर
फूँक फूँक कर जब रखे कदम
मन का संबल कहीं गुम हो गया|
अब न जाने क्या होगा
मुझ में जीने की ललक भी
कहीं सुप्त हुई है अब क्या
करूं|
ना कहीं मन लगता मेरा
काट रही हूँ निरुद्देश्य जीवन के दिन
किसी से क्या कहूं हाल बेहाल हुआ है
मन का चैन
कहीं खोगया |
आशा सक्सेना