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मन चंचल हुआ कैसे
बेमुरब्बत हुआ
किसी का कोई
ख्याल नहीं रखा |
सिर्फ खुद की ही सोची
और किसी की नहीं
हुआ ऐसा किस कारण
जान न पाई |
निजी स्वार्थ में खो गई
अपनापन भूली
मन हुआ कठोर
किसी की सुध न ली |
इतना निर्मोही कैसे हुआ
बार बार सोचा
पर ख्याल सब का भूली
अपने तक सीमित रही |
कभी हंसती मुस्कराती
कभी गंभीर हो जाती
मैं खुद नहीं जानती
मैं क्या चाहती |
मेरी उलझने हैं मेरी
किसी को क्या मतलब
मेरे मन का अवमूल्यन हुआ है
यह जानती हूँ मैं |
अब पहले जैसी
प्रसन्नता अब कहाँ
खाली मन रीता दिमाग
अब सहन नहीं होता
मन क्लांत हो जाता |
एक बुझा सा जीवन
शेष रहा है
फिर भी कोशिश मैं कमी नहीं
प्रयत्न बराबर जारी है
यही मेरी खुद्दारी है
जीवन को फिर से जिऊंगी
सब से मिलजुल कर रहूँगी |
आशा सक्सेना