17 अक्तूबर, 2022

मन चंचल हुआ

 

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                                  मन चंचल हुआ कैसे 

बेमुरब्बत हुआ

किसी का कोई

 ख्याल नहीं रखा |

सिर्फ खुद की ही सोची

और किसी की नहीं

हुआ ऐसा किस कारण

जान न पाई |

निजी स्वार्थ में खो गई

अपनापन भूली

मन हुआ कठोर

किसी की सुध न ली |

इतना निर्मोही कैसे हुआ

बार बार सोचा

पर ख्याल सब का भूली

अपने तक सीमित रही  |

कभी हंसती मुस्कराती

कभी गंभीर हो जाती

मैं खुद नहीं जानती

मैं क्या चाहती |

मेरी उलझने हैं मेरी

किसी को क्या मतलब

मेरे मन का अवमूल्यन हुआ है

यह जानती हूँ मैं |

अब पहले जैसी

 प्रसन्नता अब कहाँ  

खाली मन रीता दिमाग

अब सहन नहीं होता

मन क्लांत हो जाता |

एक बुझा सा जीवन

शेष  रहा है

फिर भी कोशिश मैं कमी नहीं

प्रयत्न बराबर जारी है 

यही मेरी खुद्दारी है 

जीवन को फिर से जिऊंगी 

सब से मिलजुल कर रहूँगी |

आशा सक्सेना

16 अक्तूबर, 2022

मन उत्श्रंखल हुआ

 

कितनी बार सोचा समझा

कुछ सीखने की कोशिश की

पर मन पर नियंत्रण न रहा

हर बात में उत्श्रंखल  हुआ |

किसी पर न जाने क्यूँ विश्वास न रहा

ना ही आत्मविश्वास रहा अपने पर

फूँक फूँक कर जब रखे कदम 

मन का संबल कहीं गुम हो गया|

अब न जाने क्या होगा

मुझ में जीने की ललक भी

कहीं सुप्त हुई है अब क्या करूं|

ना कहीं मन लगता मेरा 

 काट रही हूँ निरुद्देश्य जीवन के दिन 

किसी से क्या कहूं हाल बेहाल हुआ है 

मन का चैन कहीं खोगया |

आशा सक्सेना 

15 अक्तूबर, 2022

तुम कैसे भूले


 

जब बांह थामीं थी मेरी

वादा किया था साथ निभाने का

जन्म जन्मान्तर तक 

मध्य मार्ग में  क्यूं छोड़ा |

आशा न की थी वादा  

जो साथ निभाने का था

 उस वादे का क्या

जो सात जन्मों तक

 निभाने का था |

उसका क्या

यह तो न्याय नहीं

मझधार में मुझे छोड़ा

कैसे कच्चे धागों को

अधर में छोड़ा

यह भी न सोचा

मेरा अब क्या होगा |

 जब जीवन की कठिन डगर

एक साथ पार की

जब सारी जिम्मेंदारी

एक साथ मिल कर पार की

फिर जीवन से क्यों घबराए

मुझे भी तुम्हारे संबल की तो

आवश्य्कता थी तुम्हारी

यह तुम कैसे भूले |

आशा सक्सेना 

09 अक्तूबर, 2022

शिकायत

 

किसी से किसी की

शिकायत न कीजिए

मन असंतुलित होजाएगा

यही हाल यदि रहा

जीवन बेरंग होजाएगा |

कहा सुना भूल जाइए

मन का मेल यदि धुल गया

जीवन में शान्ति का

आगमन होगा |

यही है सबसे आवश्यक  

सुखमय जीवन के लिए

जीवन हो सुखद जान लीजिये

यही है आवश्यक

क्षणिक  जीवन के लिए |

कब नयन बंद हो जाए

कोई नहीं जानता

पहले से सतर्क रहिये

खुद कोई गलती न कीजिए |

यदि अपनी सीमा छोड़ी

जीवन भर पछताने के सिवाय

कुछ भी हांसिल न होगा

हाथ मलते रह जाओगे |

आशा सक्सेना

06 अक्तूबर, 2022

आज के बच्चे

 आज के बच्चे खेल रहे मोवाइल पर 

दिनरात पीछे पड़े रहते उसके 

कुछ नया जानना नहीं चाहते 

 रावण दहन तक नहीं |

वे नहीं चाहते कुछ अधिक जानना 

किसी त्यौहार के बारे में

 नाही जानना चाहते 

कारण त्यौहार  मनाने का |

समाज में बड़े स्टेटस वाले 

शान शौकत से रहने वाले

 इसे तुच्छ समझते 

कहते इन सब की जानकारी से

समय यूँ ही बर्वाद होगा  क्या लाभ होगा 

व्यर्थ की जानकारी से |

धर्म में उनकी कोई रुची नहीं है 

हैं वे पाश्चात्य सभ्यता के अनुरागी 

उन्हें नहीं भारत की  सभ्यता से लगाव 

भाषा तक पसंद नहीं  हिन्दी उनको 

|वे अंधानुकरण करते है अंग्रेजों की |

मन को बहुत कष्ट पहुंचता है यही सब देख 

मन नहीं होता उनसे कुछ कहने सुनने का  

वे डूबे इतना आधुनिकता में 

भूल गए अपना धरातल अपनी संस्कृति

 बस हाय हलो ही याद रही 

प्रारम्भ होता सुबह  हाय पापा हाय मम्मा से 

कितावों में रख करअवांछित कहानियां  पढ़ते 

जताते कितना पढ़ रहे हैं |

आशा सक्सेना 

05 अक्तूबर, 2022

दहन किसका होगा


 

दहन किसका होगा

क्या  दस शीश का ?

या सामाजिक कुरीतियों का

जो अब तक समाप्त  न हो पाईं ?

रावण दहन की रीत में

हम अपने  आप से हर वर्ष

कई वादे  करते खुद से

कुरीतियां  त्यागने  के  लिए |

पर वादा पूरा करने में 

सफल न हो पाते

मन में असंतोष और बढा लेते

पर वादे को पूरा न कर पाते |

यही कमी है खुद में

तब कौन हमारा साथ देगा 

 तब कौन हमारे  साथ चलेगा |

सब चाहते  सच्चे मित्र का साथ 

जो खुद हो अपने वादे का पक्का

वख्त पर आकर खडा हो

गलत को नजरअंदाज न करे

गलती बताए |

04 अक्तूबर, 2022

गली गली में रावण रहते


                                                      

                                                                    जाने कितने रावण 

गली गली में घूंम रहे 

इनका कोई अंत नहीं 

 हुआ अब  तक |

सडकों पर घूमने वाले 

रावण में कोई सुधार नहीं

 हुआ अब  तक 

सब को हैरानी होती है |

हर वर्ष जलाया जाता उस को 

 फिर से  जी उठता है

शायद गया श्राद्ध  

न किया गया हो उसका | 
हर  बार जी उठता है 

कलियुग का आभास कराता है 

कहीं शांति नहीं हो पाती यहाँ वहां 

 और भ्रष्टाचार की कमीं नहीं |

हम भी उसी गली में रहते 

पर दूरी बनाए रखते 

 किसी से नहीं मिलते जुलते 

किसी का अन्धानुकरण नहीं करते |

अपने आप में  व्यस्त रहते 

जाने कब छुटकारा मिलेगा 

इस कलियुग के प्रपंचों से 

मुक्ति होगी या नहीं 

किसको पता |

आशा सक्सेना