21 अक्तूबर, 2022

पांच दिवसीय त्यौहार


 





है प्रारम्भ आज से पांच दिवसीय दीपों का त्यौहार 

है आज धनतेरस कल होगी रूप चौदह्दस

परसों दीपावली अगले दिन गोवर्धन पूजा

‘ आखिर में यम दुतिया   भाई दूज पर्व  |

यह पञ्च दिवस का त्यौहार मानता

है बड़ी धूमधाम से मनाया जाता 

है मेल मिलाप का त्यौहार

 सर्दी के  मौसम की शुरू होने की तैयारी |

सारे घर की वार्षिक सफाई की जाती

दीपक जलाए जाते और पटाखे  चलाए जाते

धन की देवी  के आगमन की

खुशियों का त्योहार मनाया जाता दिलो जान से |

कुछ लोग ताश भी खेलते दीपावली की रात

यह त्यौहार खुशी से मनाते

 दीपावली मनाते बड़े प्यार से

राह देखते धनागमन की देवी की |

आशा सक्सेना

20 अक्तूबर, 2022

प्यार की चर्चा

 

प्यार की चर्चा कीजिए पर समय देख कर| समय की नजाकत का बड़ा महत्त्व है |यदि समय का ध्यान न रखा तब कुछ गलत भी हो सकता है |

मानो किसी के यहाँ कोई दुर्घटना हुई है और आपस में किसी के प्रेम  प्रसंग की वहां कोई बात  कर रहे हैं तब कितना अजीब लगेगा |लोग सुनेगे और मजा लेंगे पर आपका मुंह पलटते ही आपकी हंसी भी उडाएंगे |क्यों कि समाज में रहकर अपनी आदतों को बदलना पड़ता है |हमें समाज के नियमों का पालन करना होता है |तभी हम सफल नागरिक हो सकते है |

17 अक्तूबर, 2022

मन चंचल हुआ

 

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                                  मन चंचल हुआ कैसे 

बेमुरब्बत हुआ

किसी का कोई

 ख्याल नहीं रखा |

सिर्फ खुद की ही सोची

और किसी की नहीं

हुआ ऐसा किस कारण

जान न पाई |

निजी स्वार्थ में खो गई

अपनापन भूली

मन हुआ कठोर

किसी की सुध न ली |

इतना निर्मोही कैसे हुआ

बार बार सोचा

पर ख्याल सब का भूली

अपने तक सीमित रही  |

कभी हंसती मुस्कराती

कभी गंभीर हो जाती

मैं खुद नहीं जानती

मैं क्या चाहती |

मेरी उलझने हैं मेरी

किसी को क्या मतलब

मेरे मन का अवमूल्यन हुआ है

यह जानती हूँ मैं |

अब पहले जैसी

 प्रसन्नता अब कहाँ  

खाली मन रीता दिमाग

अब सहन नहीं होता

मन क्लांत हो जाता |

एक बुझा सा जीवन

शेष  रहा है

फिर भी कोशिश मैं कमी नहीं

प्रयत्न बराबर जारी है 

यही मेरी खुद्दारी है 

जीवन को फिर से जिऊंगी 

सब से मिलजुल कर रहूँगी |

आशा सक्सेना

16 अक्तूबर, 2022

मन उत्श्रंखल हुआ

 

कितनी बार सोचा समझा

कुछ सीखने की कोशिश की

पर मन पर नियंत्रण न रहा

हर बात में उत्श्रंखल  हुआ |

किसी पर न जाने क्यूँ विश्वास न रहा

ना ही आत्मविश्वास रहा अपने पर

फूँक फूँक कर जब रखे कदम 

मन का संबल कहीं गुम हो गया|

अब न जाने क्या होगा

मुझ में जीने की ललक भी

कहीं सुप्त हुई है अब क्या करूं|

ना कहीं मन लगता मेरा 

 काट रही हूँ निरुद्देश्य जीवन के दिन 

किसी से क्या कहूं हाल बेहाल हुआ है 

मन का चैन कहीं खोगया |

आशा सक्सेना 

15 अक्तूबर, 2022

तुम कैसे भूले


 

जब बांह थामीं थी मेरी

वादा किया था साथ निभाने का

जन्म जन्मान्तर तक 

मध्य मार्ग में  क्यूं छोड़ा |

आशा न की थी वादा  

जो साथ निभाने का था

 उस वादे का क्या

जो सात जन्मों तक

 निभाने का था |

उसका क्या

यह तो न्याय नहीं

मझधार में मुझे छोड़ा

कैसे कच्चे धागों को

अधर में छोड़ा

यह भी न सोचा

मेरा अब क्या होगा |

 जब जीवन की कठिन डगर

एक साथ पार की

जब सारी जिम्मेंदारी

एक साथ मिल कर पार की

फिर जीवन से क्यों घबराए

मुझे भी तुम्हारे संबल की तो

आवश्य्कता थी तुम्हारी

यह तुम कैसे भूले |

आशा सक्सेना 

09 अक्तूबर, 2022

शिकायत

 

किसी से किसी की

शिकायत न कीजिए

मन असंतुलित होजाएगा

यही हाल यदि रहा

जीवन बेरंग होजाएगा |

कहा सुना भूल जाइए

मन का मेल यदि धुल गया

जीवन में शान्ति का

आगमन होगा |

यही है सबसे आवश्यक  

सुखमय जीवन के लिए

जीवन हो सुखद जान लीजिये

यही है आवश्यक

क्षणिक  जीवन के लिए |

कब नयन बंद हो जाए

कोई नहीं जानता

पहले से सतर्क रहिये

खुद कोई गलती न कीजिए |

यदि अपनी सीमा छोड़ी

जीवन भर पछताने के सिवाय

कुछ भी हांसिल न होगा

हाथ मलते रह जाओगे |

आशा सक्सेना

06 अक्तूबर, 2022

आज के बच्चे

 आज के बच्चे खेल रहे मोवाइल पर 

दिनरात पीछे पड़े रहते उसके 

कुछ नया जानना नहीं चाहते 

 रावण दहन तक नहीं |

वे नहीं चाहते कुछ अधिक जानना 

किसी त्यौहार के बारे में

 नाही जानना चाहते 

कारण त्यौहार  मनाने का |

समाज में बड़े स्टेटस वाले 

शान शौकत से रहने वाले

 इसे तुच्छ समझते 

कहते इन सब की जानकारी से

समय यूँ ही बर्वाद होगा  क्या लाभ होगा 

व्यर्थ की जानकारी से |

धर्म में उनकी कोई रुची नहीं है 

हैं वे पाश्चात्य सभ्यता के अनुरागी 

उन्हें नहीं भारत की  सभ्यता से लगाव 

भाषा तक पसंद नहीं  हिन्दी उनको 

|वे अंधानुकरण करते है अंग्रेजों की |

मन को बहुत कष्ट पहुंचता है यही सब देख 

मन नहीं होता उनसे कुछ कहने सुनने का  

वे डूबे इतना आधुनिकता में 

भूल गए अपना धरातल अपनी संस्कृति

 बस हाय हलो ही याद रही 

प्रारम्भ होता सुबह  हाय पापा हाय मम्मा से 

कितावों में रख करअवांछित कहानियां  पढ़ते 

जताते कितना पढ़ रहे हैं |

आशा सक्सेना