दृश्य बड़ा मनोरम होता वहां जाने का मनोरथ |
आशा सक्सेना
दृश्य बड़ा मनोरम होता वहां जाने का मनोरथ |
आशा सक्सेना
जाना है जाओ पर
कब आओगे बता जाना
वरना वह बाट जोहेगी
उसके मन को ठेस लगेगी |
यदि समय न हो पहले से बताना
वह इंतज़ार नहीं करे
अपना समय व्यर्थ न गवाए
न ही झूटी तसल्ली दे मन को
|
वैसे तो साल भर का त्यौहार है
उसे तो आस रहेगी तुम्हारे
आने की
यदि कारण बता कर जाओगे
उसके मन को अवसाद न होगा
सोचेगी जब आवश्यक कार्य
जो तुमने चुना है होगा समाप्त
तुम कोशिश करोगे वहां
पहुंचोगे |
तुम्हारी झलक देखते
ही
उसका मन खिल उठेगा गुलाब सा
उसका अवसाद जाने कहाँ गुम हो जाएगा
मन मयूर सा थिरकने लगेगा |
यही तो वह चाहती है
दौनों मिल कर स्वागत करेंगे
देवी लक्ष्मी धन की देवी का
दीप जला कर और प्रसाद दे कर
|
इन्तजार जो किया पूरे मन से सफल होगा
जब देवी प्रसन्न होंगी
वरदान देंगी उसके सच्चे मन की चाह को
उसका घर भर देगी धन धान्य से
सच्ची ममता के द्वार से |
आशा सक्सेना
घर घर दीप जले देहरी रौशन
करने को
लक्ष्मी देवी के पूजन करने
को
घर का कौना कौना चमकाने को
|
दीपावली मनाई इस दिन
बहुत उत्साह से
मीठे मीठे पकवान बनाए जाते
देवी की अर्चना के बाद
फिर सब मिठाई बाँट कर खाते हैं |
स्नेह से छोटे पैर छूते बड़ों के और आशीर्वाद
लेते उनसे |
यही त्यौहार दीपावली का मनाया
जाता
मन के अन्दर के भावों से
देवी लक्ष्मीं जिस से प्रभावित होतीं
आशीर्वाद भर झोली देतीं अपने भक्तों को |
देवी प्रसन्न हो गोदी भर
अन्न धन
दौलत देतीं अपने भक्तों को
भक्ति का वरदान
देतीं दिल भर कर
भक्तों का मन जीत लेतीं
अपने प्रभाव से |
हर वर्ष इसे मनाया जाता
दीपावली के रूप में
खुशियाँ मिल कर बांटी जाती
मिष्ठानों के रूप में
बचपन में खूब चलाए जाते
फटाके राह दिखाते
आने वाली देवी को घर के सभी
लोग उपासक
हो जाते पूरे समर्पण भाव से
|
आशा सक्सेना
तुम्हें यह भी ख्याल नहीं
कि यह गलत होगा
तुम्हारा अपने आप से धोखा होगा
सब की निगाहों से भी गिर
जाओगे |
यह कैसी ईमानदारी है कि खुद को धोखा दोगे
अपने आप से भी झूठ बोलोगे
बच्चों को भी यही सिखाओगे
ईमानदारी की शिक्षा न दोगे
|
उनके नन्हें मस्तिष्क में यही
प्रपंच डालोगे
उन में संस्कार का अभाव
पैदा करोगे
यह मत भूलो कि वे कल के
नागरिक होंगे
संस्कृति के पुरोधा होंगे |
होंनहार बनके अपना कर्तव्य
निभाएंगे
देश के प्रति अपना जो कर्तव्य होगा
उसे बहुत शिद्दत से
निभाएंगे
देश को प्राथमिकता देंगे अपने वादे से न हटेंगे|
है प्रारम्भ आज से पांच दिवसीय दीपों का त्यौहार
है आज धनतेरस कल होगी रूप चौदह्दस
परसों दीपावली अगले दिन
गोवर्धन पूजा
‘ आखिर में यम दुतिया भाई दूज
पर्व |
यह पञ्च दिवस का त्यौहार
मानता
है बड़ी धूमधाम से मनाया जाता
है मेल मिलाप का त्यौहार
सर्दी के मौसम की शुरू होने की तैयारी |
सारे घर की वार्षिक सफाई की
जाती
दीपक जलाए जाते और पटाखे चलाए जाते
धन की देवी के
आगमन की
खुशियों का त्योहार मनाया
जाता दिलो जान से |
कुछ लोग ताश भी खेलते
दीपावली की रात
यह त्यौहार खुशी से मनाते
दीपावली मनाते बड़े प्यार से
राह देखते धनागमन की देवी की |
आशा सक्सेना
प्यार की चर्चा कीजिए पर समय देख कर| समय की नजाकत का बड़ा महत्त्व है |यदि समय
का ध्यान न रखा तब कुछ गलत भी हो सकता है |
मानो किसी के यहाँ कोई दुर्घटना हुई है और आपस में किसी के प्रेम प्रसंग की वहां कोई बात कर रहे हैं तब कितना अजीब लगेगा |लोग सुनेगे और
मजा लेंगे पर आपका मुंह पलटते ही आपकी हंसी भी उडाएंगे |क्यों कि समाज में रहकर
अपनी आदतों को बदलना पड़ता है |हमें समाज के नियमों का पालन करना होता है |तभी हम
सफल नागरिक हो सकते है |
.
बेमुरब्बत हुआ
किसी का कोई
ख्याल नहीं रखा |
सिर्फ खुद की ही सोची
और किसी की नहीं
हुआ ऐसा किस कारण
जान न पाई |
निजी स्वार्थ में खो गई
अपनापन भूली
मन हुआ कठोर
किसी की सुध न ली |
इतना निर्मोही कैसे हुआ
बार बार सोचा
पर ख्याल सब का भूली
अपने तक सीमित रही |
कभी हंसती मुस्कराती
कभी गंभीर हो जाती
मैं खुद नहीं जानती
मैं क्या चाहती |
मेरी उलझने हैं मेरी
किसी को क्या मतलब
मेरे मन का अवमूल्यन हुआ है
यह जानती हूँ मैं |
अब पहले जैसी
प्रसन्नता अब कहाँ
खाली मन रीता दिमाग
अब सहन नहीं होता
मन क्लांत हो जाता |
एक बुझा सा जीवन
शेष रहा है
फिर भी कोशिश मैं कमी नहीं
प्रयत्न बराबर जारी है
यही मेरी खुद्दारी है
जीवन को फिर से जिऊंगी
सब से मिलजुल कर रहूँगी |
आशा सक्सेना