13 नवंबर, 2022

उस ने की वफा

 उस  ने की थी वफा

 बदले में उसे क्या मिला ?

बेरंग जीवन की कटुता मिली 

कंटकों की सौगात मिली

 जब चाहे चोट पहुंचाई जिन ने 

मन की  तल्खियों के सिवाय

 कुछ भी हांसिल नहीं हुआ |

यहीं हार और जीत का हुआ  निराकरण 

पर सही न्याय न मिल पाया 

 जीवन हारा सब प्रयत्नों को कर  

 धैर्य ने भी साथ न दिया उसका 

मन विचलित हुआ सोचा 

 यह क्या किया ?

किसी मित्र ने भी सही सलाह न दी 

अपनी सलाह पर कायम रहा |

उसे  ही गलत ठहराया 

यदि समय पर चेताया होता 

यह दशा न होती मन की |

उसके मन को ठेस पहुंचाई 

अब कुछ न हो पाएगा 

वफा अधूरी ही रह जाएगी 

जीवन हाथ मलता ही रह जाएगा 

और कुछ भी नहीं मिल पाएगा |

आशा सक्सेना 


12 नवंबर, 2022

जीवन बहुत छोटा सा


                                             आधे से अघिक से जीवन बीता
                                     अधिक ही समय बीता नियोजित कार्य करने में 

 जिनको पूरा  करने का वादा लिया  खुद से |

पर ऐसा न हुआ वे पूर्ण न हो पाए 

समय बीता इतनी जल्दी से 

उसे पकड़ न पाए 

हाथों से फिसली हो रेत  जैसे |

झूठे वादे मुझे नहीं आते 

जो वादाखिलाफी से  मुझे बहकाते 

 रंगीन  रातों के स्वप्न दिखाते  

प्रातः के होते ही सूर्य रश्मियाँ 

अटखेलियाँ करतीं  हरे भरे  वृक्षों  से |

यदि उन कार्यों में मैं भी खो जाती 

अपने वादे  कैसे पूरे कर पाती 

हूँ कैसी अब भी समझ में न आया 

फिर कम से कम वादों की पूर्ती का वादा लिया 

जिससे मन को वादा  अपूर्ण

 रहने का कष्ट न हो 

जीवन का शेष समय जो  बचा है 

हाथ में वादा पूर्ति में पूरा  हो |

कर्तव्य करने के बाद मैं 

मुक्ति मार्ग पर चल पाऊँ 

उन कार्यों का हाथ समय के साथ मिला पाऊँ

  हींन भावना का शिकार न होना पड़े 

अपना आत्म विश्वास फिर से पाऊँ 

अपने मन की संतुष्टि पूर्ण कर पाऊँ |

आशा सक्सेना 


11 नवंबर, 2022

मैंने कब गलत किया



                                                    बचपन से आज तक हर बार

 अपने कदम सम्हाल कर रखे 

कोशिश की कि कोई भूल न हो जाए 

सम्हल सम्हल कर जब कदम रखे 

जीवन  जीना आया खुद में संयम आया |

मन का भटकाव  अंतर्ध्यान होगया 

मुझ में धैर्य का समावेश हुआ 

अनोखे सुकून को भी अनुभव किया 

 अब मुझे आवश्यकता नहीं किसी की सलाह की

जो मिलती तो सरलता से है

पर पालन उसका उतना ही कठिन 

कहीं भी जीवन जीना आसान नहीं 

हर समय यही मन में शंका रहती

 मेरे पैर न फिसल जाएं 

धैर्य और संयम मुझसे न दूर हो जाएं |

माँ ने सिखाया था मुझे

  हर वह कार्य जो सब को अच्छा लगे 

जो हो लाभ प्रद किसी को कष्ट न दे 

करने में कोई हर्ज नहीं है |

पर गलत क्या है और सही क्या 

इसका ज्ञान होना ही चाहिए 

यदि यही समझ में होगा स्पष्ट 

कोई कठिनाई न होगी

 सही और  गलत है क्या ?

अपने मन को खोजने में 

मैं ने क्या गलत किया कब उसे दोराहाया 

मन को कष्ट न होगा खुद को समझने में |

आशा सक्सेना 

10 नवंबर, 2022

शिक्षा जीवन भर चलती


 

 

शिक्षा जीवन भर चलती

बचपन अनुशासन की पहली  सीड़ी

मां रही प्रथम गुरू उस उम्र  की

धीरे से जब कदम बढाए

उम्र ने आगे बढ़ने की राह चुनी  |

 कितने ही गुरू मिले पर

संतुष्टि नहीं मिल पाई

सच्चा गुरू  मिला जब

कुछ नया सीखने को मिला |

पूरा पूरा ज्ञान मिला

मन में  संतुष्टि आई

 खुशी चहरे  पर छाई |

तीसरी सीड़ी पर ध्यान  भटका

कहीं अटकने का मन हुआ पहले

पर ठोकर खाई पहले पैर लड़खड़ाए

पर झटके से सम्हले आगे बढे|

चतुर्थ चरण में  राम नाम का आकर्षण हुआ

आने वाले कल की  याद में

मुक्ति के कपाट खुले देख  

आगे बढ़ने की राह मिली

 जीवन को सद्गति मिलती |

आशा सक्सेना 

 

09 नवंबर, 2022

कलाकार के मन का सोच

 


कलाकार के मन का सोच

मेरा मन खोखला हुआ

अब सोचने का कोई लाभ नहीं

कैसे जीवन भी बड़ा बोझ हुआ

मैं सोच कर हैरान हुआ |

कितनी कहानी फिल्माईं

कोई सही कोई गल्प लगी

पर देखने में बुरा क्या है

कला की अनमोल निधी सहेजी है |

यही सब विचार मन में रहते हैं

उन को उम्दा रंग मंच मिला

यदि दर्शक साहित्यिक मिले

चार चाँद लगे प्रस्तुति में सप्त रंग छाए |

मन को पुरूस्कार देने लायक समझा

 मेहनत सफल हुई कलाकारों  की

जीवन में नव् चेतना का संचार हुआ

नया आयाम देखा उनमें |

कितना परीश्रम किया समूह ने

 यही उद्देश्य रखा सबके जीवन  में

कभी हार  नहीं मानेगे

 अपने को सफल कलाकार बनाने में |

आशा सक्सेना

 

08 नवंबर, 2022

हाइकू

 

हरी धरती

नीला है आसमान 

प्रकृति एक

 

किसी ख्याल में

डूबना उतरना

  ठीक नहीं है

 

 

मन में बसा 

राम है  मंदिर के  

 कण कण में

 

किसने जपा

प्यारा सा  राम नाम

मन में बसा 

 

भारत वर्ष  

हमारा अपना है

यही   अपेक्षा

 

 आशा सक्सेना

07 नवंबर, 2022

कब तक मुझसे जुदा रहोगे

 कब तक मुझसे जुदा रहोगे 

मैंने जब से स्वीकारा तुम्हें 

हर  दिन को गिन गिन कर काटा 

कभी न सोचा क्या हुआ मुझे |

  मेरी लगन है  लगी जब तुमसे 

 पर प्रति दिन रहा इन्तजार  तुम्हारा  

मैंने इसे ही अपना कर्तव्य समझा 

यही प्राथमिकता रही  मेरे लिए भी 

 तुमने  जिन आवश्यक कार्यों को पूर्ण करने का 

  मैंने भी उसका ही बीड़ा  उठाया 

वही रहा  मेरा भी उद्देश्य  पर दूसरे नंबर पर    |

अपने दाइत्व को पूर्ण करने का 

जो  जुनून सर चढ़ बोला किसी ने कहा 

 पहले अपने दाइत्व पूर्ण करो 

फिर अपने मन को दो इजाजत 

यहाँ वहां विचरण करने की |

क्या यह नहीं हो सकता 

                         हम दोनो भी मिल जुल कर                           

क्या यह होगा संभव 

\तुम्हारे कर्तव्य  को पूर्ण करें 

कब तक रहोगे दूर मुझसे 

मुझको समझने की कोशिश करोगे 

तुमने मुझे अपना समझा ही नहीं 

प्यार का दिखावा खूब किया |

मन को ठेस लगी 

तुम्हारा यह दुहरा रूप देख कर 

क्या तुम को मेरा  सान्निध्य पसंद  नहीं किया  

या कोई जरूरी कार्य तुम्हें वहां बांधे रखता  |

 आखिर कब तक जुदा रहोगे |

आशा सक्सेना