04 दिसंबर, 2022

मीरा

 

मन के मंदिर में वह बैठी 

किसी के इंतज़ार में

कभी कुछ भी पढ़ा नहीं

 दो शब्दों  का प्यार बहुत है यही कहा मीरा ने|

  प्यार ही सबकुछ है और कुछ  नहीं

उसे लगाव है ज्ञान  से

वह पढ़ पाती नहीं

पर लगाव है इतना कि

किसी और से बाँट भी नहीं  पाती  |

यही आप सब ने भी देखा होगा

यह है मन से है किसी ने कहा नहीं 

फिर भी कहा अज्ञानी उसे |

जब उसकी आँखों को भरे देखा   

मन को गहन  दुःख  हुआ 

अश्रू बहाने से क्या लाभ

जब किसी ने उसे समझा नहीं | 

फिर भी ममता  कहीं छुपी रही 

उसके दिल के कोने   में  | 

 





आशा सक्सेना 

03 दिसंबर, 2022

नई जगह घूमने जाना



कहाँ जाना है क्या है वहां

जो सुख घर में है वहां कहाँ

कितनी बार सोचा था पर

कारण नहीं जान पाई |

जब भी अवकाश होता

बाहर जाने का मन होता

पर जल्दी ही मन उचट जाता

बार बार अपना घर याद आता |

जब कि ऐसा कुछ नया

 नहीं देखा जाता वहां

बस मन को संतुष्टि मिल पाती

बाहर जाने की कहानियां  सुनाने की |

जब तब  मन में होड़ करता रहता वहां की कहानियों  में

 यही आनंद रह जाता जब लौट कर आते

वहां की कहानियां  अपने ही ढंग से कहते 

बड़ी खुशी  होती  वहां की कहानी सुनाने में |

आशा सक्सेना

02 दिसंबर, 2022

कब क्या कैसे कितने


 

कब तक कहाँ कैसे कितने

इतने  सारे शब्द हैं जिन से

प्रारम्भ किया जा सकता है

 स्रोत  अभिलाशा का  |

जिस से जब भी पूंछा जाता

यह प्रयोग कैसा लगा

वह  थोड़ा सा मुस्कुरा देता

फिर अपना अभिमत देता |

अरे भाई सब से क्या पूंछना

जो भी लिखो दिल से लिखो

कभी पसंद न आने पर

उसे भूल जाओ सदा के लिए |

जब भूलना न चाहो

 बार बार प्रयत्न करो 

कभी तो सफलता मिलेगी  

असफलता से भय कैसा |

यही तो कुंजी है सफलता की

मनोरथ को तरजीह दो

इसी से साहस आएगा

वही  होगा  सही गलत का फैसला  |

जितनी भी कोशिश करोगे

सफलता तक पहुंचोगे

चाहे समय कितना भी लगे

कभी हार न मानोंगे |

यही प्रतिफल होगा तुम्हारे यत्नों का 

जब किसी को अपनी रचना सुनाओगे

वाह वाह की गूँज उठेगी

तुम्हें लगेगा तुमसा कोई नहीं |

01 दिसंबर, 2022

अहम उसका

 


उसने दिखाया जलवा अपना

किसी से कम अपने को न समझा

 यही आदत उसे ले डूबी

अपने अहम् के डबरे  में |

कितनी बार समझाया उसको

किसी से अंटस लेना सही नहीं

हर बार अहम् हारा  झगड़े में

मन को झटका लगा दिल टूटा |

किसी की  दया का पात्र न बन पाया

उसका कार्य असफल रहा अधूरे में

मन को दूसरा झटका लगा जब  

 वह पहुंचा एक  समाज के कार्यक्रम में |

उसने खुद को बहुत कुछ समझा था

तब यही गलतफ़हमी पाली थी उसने

था कुछ भी  नहीं पर खुद को

 सीमा से अधिक  समझा था   |

यहीं  उसने मात खाई

जब  एक जलजला आया

वह उसके  बहाव में बहता गया

 असफल रहा वह  भवसागर छोड़ने  में |

अब मन को झटका लगा अंतिम

सर उठा न  पाया वह

अहम से  जूझता रहा आखिर तक

उससे पार पा नहीं सका |

 

आशा सक्सेना

30 नवंबर, 2022

जब हंसी का पात्र बना


 


पहले फिसलना

फिर  गिरना

और  सम्हल कर

 उठने का प्रयत्न  करना |

कुछ भी नया नहीं

बड़ा सामान्य सा कार्य

 बचपन में होता

 आए दिन का कार्य  |

 जब उम्र बढ़ने लगती

  हास्यप्रद स्थिति में    

 परिवर्तित होती गई  |

बहुत कठिन होता

साधारण से कार्य का

जगजाहिर होना

किसी को  हंसने का अवसर

खोजना न पड़ता |

एक दिन सड़क पर

पानी भरा था

पर पैर फिसला

गहरी चोट लगी |

उठना कठिन हुआ

पास वाले भाईसाहब ने  

अपना हाथ बढाया

सम्हाल कर उठाया |

मदद तो की पर

हंसने का अवसर न छोड़ा

शरीर बहुत गोल मटोल था

उस पर ही हँसी आई |

यही बात उनने सुनाई

रस ले कर  पड़ोसियों को

मन में कुंठा भरी

पर क्या करता | 


आशा सक्सेना 

 

29 नवंबर, 2022

बचपन

 

 कहाँ  से आया वह 

 भोला भाला  प्यारा सा बचपन 

किसी ने न ध्यान  दिया उस पर  

वह धूल में खेला सड़क पर दौड़ा

तब किसी ने  न टोका उसको  |

कभी टोकने पर प्रलय ही मचा दी उसने

हंसने रोने में अंतर न समझा

किसको प्यार करे या न करे

 उसको यह भी पता नहीं |

क्या सच में वह भी  दुनिया की रीत नहीं जानता

केवल अपने तक ही सीमित रहता

या किसी प्रलोभन में फँस जाता

बचपन में कुछ विभेद न कर पाता  |

कौन अपना कौन पराया

मन से मीठे बोल बोलता

मुझे पुष्प ही अच्छा लगता

काश वह  लौट कर आता |

ऐसा बचपन खोजे न मिलता

जो माँ का प्यार ही समझता

पिता से दूरी भी  न सह पाता

उसने  अपने पराए का अंतर न जाना |

  नहीं चाहता अपने प्यार को  किसी से  बांटना

उसे बड़ा दुःख होता जब कोई बाधा बन कर आता

उससे प्रतिस्पर्धा चाहता

 यह है एकाधिकार का मांमला

उसको कोई समझ न पाता |

आशा

 

28 नवंबर, 2022

कब तक निहारते रहोगे

 

तुम कब तक निहारते रहोगे उसे 

जब श्याम ने समझाया तुम्हें

इतनी समझ न आई तुम्हें

क्या लाभ तुम्हें समझाने का |

मीठी मधुर वाणी तुम्हारी

कटु से कटुतर होती गई

उसके कारण मन विद्रोही हुआ

 किसी की कदर न जानी उसने |

यही कमी प्रारम्भ से थी उसमें

तुमने कभी टोका नहीं उसको

उसने सर उठाया अब तो

क्या फायदा ऎसा हटधर्मी होने का |

ना तो  माँ ने कुछ  सिखाया उसे

ना ही कुछ औरों से सीखना चाहा उसने

उसके व्यबहार से लोगों ने बुरा भला कहा उसे  

मन को और संतप्त किया |

इसमें किस का अहित हुआ

पर तुम तो समझदार थे

तब भी  न समझा पाए उसको

कह दिया वह तो मनमानी करती है |

सोचो हो तुम किसके गुलाम 

उसके या अपनी भावनाओं की तल्खी के

कितना भी गलत हुआ तुमने किया या उसने 

उसको समझाने से क्या फायदा हो जो कुबुद्धि |

 हो बुद्धि का अभाव जिसमें वह किस काम का

हो हुस्न के दीवाने या अन्य आकर्षण तुम्हें रिझाता 

खुद सोचना उसको भी समझाना

क्या सही क्या गलत उसी से सलाह लेना |

आशा सक्सेना