11 दिसंबर, 2022

समस्या मेरी

  






कर्तव्य मेरा भूल  चली मैं

बाँध किसी से डोर प्यार की

भूली अपने सारे कर्तव्य  

किस से पूंछूं  विचार न किया |

यही कष्ट रहा आज तक

मैं अपने कर्तव्य निभा न सकी

रही अनमनी हर समय

उलझी उलझी अपने में |

जिन्दगी की पेचीद्गी

से दूर नहीं हो पाई

क्या चाहा था क्या किया

कहीं सफल न हो पाई |

रह गई अधूरी तमन्ना मन में

 देख  न सकी दुर्दशा अपनी  

जीवन लगा भार सा अब तो

क्या यही नियति थी मेरी |

किसी ने हल ना की समस्या मेरी  

जीवन में किसी का स्थान नहीं था

अब खुद ही उलझी अपने में

कैसे निभा पाऊँगी  सब से |

 यही  दुविधा है मन में 

10 दिसंबर, 2022

प्यार की चाह

 

प्यार  की चाह

यदि प्यार की एक झलक भी

उसने  देखी होती खुशियाँ छातीं

जीवन में रवानी आ जाती

किसी बात में कमीं न रह पाती |

कभी सोचा न था उसने

गिरह में झाँक कर कभी देखा न था    

यह परिवर्तन आया  कैसे

 सूखे गुलाब से भी खुशबू कहीं गुम हो गई उसमें ज़रा भी गंध न रही

कहा तो जाता है गुलाब में हैं गुण अनेक  

वे कभी भी उपयोग में लाए जा सकते |

पर देखा कुछ और जो देखा  मन में

 मलाल आया बड़ा संताप हुआ

जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं

यही क्या कम है कि  वह है यहीं

पर सुगंध कहीं खो गई है |

यदि वह भी होती यहाँ कितना अच्छा होता

जीवन की गति तो कम हो जाती

पर ख़तम न हो पाती |

हुआ उसे एहसास की वह बेनूर हो गई 

मन की शान्ति उसकी कहीं खो गई

बारम्बार अपनी कमियाँ खोजने लगी

  उसके  मन को शांत न रख न पाई |

व्यर्थ ही उलझने बढ़ाई 

सामान्य नहीं  हो पाई

खुद को तो नष्ट किया  

अन्य को भी दुःख पहुंचाया

 चैन से जीने नहीं दिया |

आशा सक्सेना   

वे भी रहीं सतही


  

जीवन में कितने ही सम्बन्ध गहरे नहीं होते 

 केवल मात्र दिखावा होते उनमें कोई सत्यता नहीं  

चाहत भी सतही होती जिसे देख नहीं पाते

केवल महसूस कर पाते जब समाज में रहते |

तब मन को बड़ा कष्ट होता मन विचलित होता

एकांत वास का इच्छुक होता 

जीवन में शान्ति पाना चाहता

पहले जैसा जीवन चाहता|

आशा सक्सेना 


09 दिसंबर, 2022

मित्रता तुमसे

 

कब तक परखोगे  मुझ को

मुझ सा कोई नहीं मिलेगा तुम्हें    

हूँ एक अकेला जीव ऐसा

जब तक  तुमसे नहीं जीता

 मुझे नहीं  मिली  सुख की छाया |

यह एक दिन की बात नहीं

कितने ही कदम  बढ़ाए मैंने

जब तब दो दो हाथ  किये

आकलन  जब खुद न कर पाया

संभल चाहा तुम जैसों का

 तुम भी मुझे समझ न पाए

मुझे हुआ दुःख इस बात का |

 मेरी अपेक्षा में आशा के अलावा

गलत क्या और सही क्या है

 तुम  यह तो बताओ

केवल ख्याली पुलाव न पकाओ

इससे मुझे गहरा दुःख होगा

तुम पर से भी मेरा विश्वास उठ जाएगा

 मित्र जैसा कोई न नजर आएगा |

 

 

08 दिसंबर, 2022

जब भोर हुई


 

जब भोर हुई

सारी कायनात महकी

अनोखी लगी पत्तियों फूलों की महक

पक्षियों  का मधुर स्वर

पंछियों  का प्रेम हरियाली से

जब देखी माली ने

उसकी मेहनत ने रंग दिखाया

उसको गर्व हुआ खुद पर

 कोई कमी ना छोड़ी उसने

पौधों की सेवा में |

लोगों ने उसे दिया एक तोहफा 

मिली  एक उपाधि पेड़ो के पिता की

सब आते सुबह और शाम घूमने

 जब  मन से तारीफें करते माली की

दिल उसका बाग़ बाग़ होता

वह भूला अपनी मेहनत  अपार प्रसन्न हुआ

उसे जो खुशी  मिली बाँट रहा सब से |

सूर्य किरणें खेल रहीं पास के जल  में

खेल रहीं नवल  फूलों  से  |

आशा 

 

 

07 दिसंबर, 2022

घर की रोनक


 


मनु  को कभी ना तुमने समझा

ना ही मेरा अस्तित्व पहचाना

समझा उसे  एक नादान बच्चा

और मुझे उसकी आया |

यदि हम यहाँ  नहीं  होते

 घर कभी घर नहीं  हो पाता

 उसमें  कोई बस्ती  नहीं  होती

जब तुम आते घर वीरान नजर आता |

कोई ना आता पास तुम्हारे 

 घर की बस्ती होती वहां रहने वालों से

 यदि हम ना होते घर कभी घर नहीं होता

 घर का कोई वजूद नहीं होता |

जब तक तुम नहीं आते घर वीरान नजर आता

कोई ना आता पास तुम्हारे |

किसी की वर्जनाएँ बाल मन   सह नहीं  पाता

यदि किसी ने कुछ कहा बड़ा शोर होता 

वह किसी से न सम्हलता दोष मुझ पर आता |

यदि तुमने उसे न समझाया होता वह नाराज होता रूठा रहता

 लम्बे समय तक अकड़ा रहता

दो  चॉकलेट  लेकर ही शांत होता

फिर गले से लिपटा  जाता |

आशा सक्सेना

 


04 दिसंबर, 2022

एक झलक प्यार की

 

यदि प्यार की एक झलक भी

उसने  देखी होती

जीवन में गति आती  

किसी बात में 

कुछ कमी नहीं  रह पाती |

कभी सोचा नहीं  था

 मन में छिपा कर 

कभी रखा नहीं 

 जब यह परिवर्तन आया |

 गुलाब सुगंध कहीं खो गई 

उसमें ज़रा भी गंध नहीं आई 

कहा तो जाता है 

अनेक गुण गुलाब में हैं  

वे कभी भी उपयोग में लाए जा सकते |

पर देखा कुछ और

मन में मलाल आया बड़ा संताप आया 

जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं |

यही क्या कम है कि  वह है यहीं

पर पुष्प  की  सुगंध कहीं खो गई है 

यदि वह होती यहाँ कितना अच्छा होता

जीवन जीने की गति भी अवरुद्ध नहीं होती |

हुआ उसे यह एहसास वह खुश हो गई  

लौटा मन का सुकून

 जो कहीं खो गया था |

बार बार अपनी कमियाँ खोजने लगी 

 पर असंतुलित किया  खुद के मन को 

शांत नहीं रख पाई |

व्यर्थ की बाधाएं आईं सामान्य नहीं हो पाई

खुद को असंतुलित किया दूसरों को भी दुःख पहुंचाया 

चैन से जीने नहीं  दिया |

आशा सक्सेना