कर्तव्य मेरा भूल
बाँध किसी से डोर प्यार की
भूली अपने सारे कर्तव्य
किस से पूंछूं विचार न किया |
यही कष्ट रहा आज तक
मैं अपने कर्तव्य निभा न
सकी
रही अनमनी हर समय
उलझी उलझी अपने में |
जिन्दगी की पेचीद्गी
से दूर नहीं हो पाई
क्या चाहा था क्या किया
कहीं सफल न हो पाई |
रह गई अधूरी तमन्ना मन में
देख न
सकी दुर्दशा अपनी
जीवन लगा भार सा अब तो
क्या यही नियति थी मेरी |
किसी ने हल ना की समस्या
मेरी
जीवन में किसी का स्थान
नहीं था
अब खुद ही उलझी अपने में
कैसे निभा पाऊँगी सब से |