भावों के समुद्र में बहती गई
शब्दों की लहरों पर हो कर सवार
की सैर बड़ी दूर तक उनके साथ
फिर भी किनारा न मिल पाया |
बिम्बों ने सहारा भी दिया
पर आधा अधूरा
किनारे तक न पहुंचाया पाए
दोहे छंदों की बड़ी लहरों से दब कर रह गए|
तुक बंदी की कोशिश की कुछ लिखा भी
लहरों के कोलाहल से प्रेरणा लेकर
कुछ गुनगुनाया भी, नजारा हुआ विशिष्ट
कुछ समय बाद जहां खड़ी थी वहीं पहुंची |
दूसरे किनारे तक पहुँच ही नहीं पाई
लय ताल का कोई ज्ञान न था
पर विधा की खोज जारी थी,
कोशिश भी की पूरी सफल न हो पाई
कोई विधा न चुन पाई, लेखन के लिए |
संतुष्टि मन में यही रही
अपने विचार स्पष्ट व्यक्त किये
किसी विधा को चुने बिना |
भाव कभी कविता की लाइन में सजे
बड़ी लहरों की बाधा के साथ भी बहे
कभी बीच में ही दम तोड़ा
किनारे तक न पहुँच अधूरे ही रहे |
आशा सक्सेना