१-जब देखती
उसी को निहारती
मन खुश है
२-सुख या दुःख
जीवन के पहलू
दौनों यहीं हैं
३-गम मन को
कभी शोभा न देता
ठीक नहीं है
४-गुनगुनाया
मन खुश हुआ है
झरना देख
५-मन का बोझ
कुछ कम तो होता
यदि जानता
६-रीता है मन
कुछ सोचा नहीं है
नैना छलके
आशा सक्सेना
१-जब देखती
उसी को निहारती
मन खुश है
२-सुख या दुःख
जीवन के पहलू
दौनों यहीं हैं
३-गम मन को
कभी शोभा न देता
ठीक नहीं है
४-गुनगुनाया
मन खुश हुआ है
झरना देख
५-मन का बोझ
कुछ कम तो होता
यदि जानता
६-रीता है मन
कुछ सोचा नहीं है
नैना छलके
आशा सक्सेना
शब्दों की लहरों पर हो कर सवार
की सैर बड़ी दूर तक उनके साथ
फिर भी किनारा न मिल पाया |
बिम्बों ने सहारा भी दिया
पर आधा अधूरा
किनारे तक न पहुंचाया पाए
दोहे छंदों की बड़ी लहरों से दब कर रह गए|
तुक बंदी की कोशिश की कुछ लिखा भी
लहरों के कोलाहल से प्रेरणा लेकर
कुछ गुनगुनाया भी, नजारा हुआ विशिष्ट
कुछ समय बाद जहां खड़ी थी वहीं पहुंची |
दूसरे किनारे तक पहुँच ही नहीं पाई
लय ताल का कोई ज्ञान न था
पर विधा की खोज जारी थी,
कोशिश भी की पूरी सफल न हो पाई
कोई विधा न चुन पाई, लेखन के लिए |
संतुष्टि मन में यही रही
अपने विचार स्पष्ट व्यक्त किये
किसी विधा को चुने बिना |
भाव कभी कविता की लाइन में सजे
बड़ी लहरों की बाधा के साथ भी बहे
कभी बीच में ही दम तोड़ा
किनारे तक न पहुँच अधूरे ही रहे |
आशा सक्सेना
जिससे भी प्यार करोगे
पूरी शिद्दत से करना
कभी बदल न जाना
उसको धोखा न देना |
वह टूट कर बिखर जाएगी
मन उसका तार तार हो जाएगा
जीना बहुत कठिन होगा
उसका मोह भंग हो जाएगा |
जब दिल से बद्दुआ निकलेगी
तुम कभी पनप न पाओगे
सब की निगाहों में गिर जाओगे
कभी सुखी न हो पाओगे |
प्यार दिखता तो बहुत है आसान
पर जिसने किया हो उससे पूछो
गुजरना पड़ता है उसे कितनी दुर्गम राहों से
यह वही जानता है |
प्यार का फल होता मधुर
पर पाना बहुत मुश्किल
सात्विक मन की ऊंचाई पर जब पहुँचोगे
मन से उसकी इच्छा करोगे
तभी वह मिल पाएगा
जीवन सुखी हो जाएगा |
आशा सक्सेना
२-तुम सा प्यारा
कभी नहीं देखा है
है ऐसा यहाँ
३-तेरी अखियाँ
अश्रु जल से भरी
अकारण ही
४-बे चैन हुआ
तुझे देख कर ही
मनवा मेरा
५-देश विदेश
घूम लिया जोश से
मन न भरा
६-न आया जीना
खुशी के पल मिले
व्यर्थ हो गए
७-हाथों से काम
करना है जरूरी
यही सीखा है
दोराहे पर खड़ी सोच रही
इधर जाए या उधर जाए
कुछ समझ नहीं पाती
है क्या भाग्य में |
जीवन जीना हुआ कठिन था अब तक
कदम बाहर निकाले आगे की न सोची
क्या यह सही किया?
है दुविधा अभी भी मन में क्या करे
जीने की तमन्ना लिए मन अटका |
उसके कारण चल न पाती
है ही भारी इतना हुए पैर भारी
बोझ है ही ऐसा किसी से बांटना न चाहा |
अचानक कहाँ से ऊर्जा आई
मेरे अन्तस में समाई
मैंने कार्य पूर्ण करने की ठानी
बढ़ने लगी आगे
काँटे से भरे कच्चे मार्ग पर
कोई की बैसाखी नही चाही
इतनी क्षमता रही मुझ में
केवल तुम्हारे सिवाय कोई मेरा नहीं
रही यही धारणा मन में मेरे
केवल तुम मेरे हो
है पूरा अधिकार तुम पर
और कोई नहीं चाहती
है केवल अपेक्षा तुम से |
आशा सक्सेना
बिना बांसुरी ये सुर कैसे सुनाई देते
कान्हां तो नहीं आए
पर संदेश ले ऊधव आए
कान्हां जा बसे मथुरा नगर
में |
सुध बिसराई हम सब की
भूले से याद न आई
हम मन ही मन दुखी हुए
पलकें न झपकी पल भर को |
रो रो पागल हुए उसकी याद में
अपनी व्यथा किससे व्यक्त
करें
कोई समझ न पाया हम को
हमारा प्यार है कैसा कोई जान न पाया
कान्हां बिन रहा न जाए
माखन मिश्री किसे खिलाएं
हम कान्हां में खोए ऐसे
अपने को ही भूल गए |
कैसा घर द्वार कैसा काम काज
कहीं मन नहीं लगता
दौड़ा जाता कदम के नीचे कुंजों में
या यमुना तीर |
सुनी जहां मीठी धुन मुरली की
ऊधव का ज्ञान भी समझ न पाए
है यही समस्या मन की
कान्हां क्यूँ न आए |
आशा सक्सेना