कितने भी मार्ग चुने मैंने
हरबार काँटों से हुआ सामना
जितना भी बच कर निकली
राह रोकने की कोशिश की उन नें |
वे कोशिश में सफल हुए
मैंने असफलता का मुंह देखा
जब भी अन्देखा किया उन का
मुझे ही कष्ट भोगना पड़ा |
अब भी समझ में कमी रही
कितनी सतर्कता रखूँ राह खोजने में
फिर भी जाना तो है अपने गंतव्य तक
सोच लिया असफलता से क्या डरना |
फिर से कमर कसी कदम आगे बढ़ाए
जब झलक देखी सफलता की मन खुशी से झूमा
अपनी सफलता को करीब से देखा
सारे कष्ट भूल गई सपनों में खो गई
यही बात सीखी उनसे
यदि हिम्मत हारी कुछ भी हाथ न आएगा
किसी का क्या जाएगा
मुझे ही कष्ट होगा
जिससे समझोता न हो पाएगा |