ख्याल मेरा तुम्हारा है एक जैसा
यह तो ध्यान न दिया मैंने
पर जब तुम में परिवर्तन देखा
जब बहुत इसरार किया मैंने |
सोचा जैसा मैं सोचती हूँ
तुमने भी वही सोचा होगा
मैंने तुम्हारा अनुकरण किया
तुमने भी वही किया होगा |
मुझे ठेस लगी यह जानकर
परिवर्तन तुम्हारा देख कर
पर देख कर भी अनदेखा किया
फिर भी मन से नहीं |
बेचैन किये रही कितने दिनों तक
किस से कहती मैंने भूल की तुम्हें
आंकने में
अब मेरे जैसे नहीं रहे यह किसे बताती |
आशा सक्सेना
कितना इसरार किया तुमने
फिर भी न मानी एक बात उसने
यह ज्यादती हुई कैसे किस लिए
किसी दुश्मन ने सिखाया होगा उस को|
कान भरे होंगे उसके आए दिन
मन विगलित हुआ होगा यह जान कर
उसका रूप देख बहरूपिये जैसा
कितना कलुष भरा है मन में उसके
यह अभी देखा समझा है मन में |
बड़ा दिखावा करती है जाने कितनों को छलती है
सोच रही थी किसीने जाना न होगा
पहचाना न होगा उसकी फ़ितरत को
यहीं मात खाई उसने तुम्हे वह जान न पाई |
सब जानते थे बहुत बारीखी से उसे
तुम्हें सतर्क भी किया था पर तुम न समझे
तुमने भी उसे अपने जैसा समझा |
सोचा पहली भूल को क्षमा किया जा सकता है
तुम क्या जान पाए वह आदतन ही धोकेबाज है
कहेगी कुछ करेगी क्या?कुछ कहा नहीं जा सकता
तभी तुमने धोखा खाया है उसने तुम्हें ठुकराया है |
आशा सक्सेना
जीवन में खलिश पैदा हुई
कोई सुख न मिल पाया
आधी उम्र तो बीत गई
मनमीत मुझे न मिल पाया |
कब तक खोजती रहूंगी
तुम्हें मेरे मनमीत
लगता है बिना जल पिए मरूंगी
अपनी अधूरी चाह लिए |
एक ही स्थान पर टिकी हूँ
कही नहीं विश्राम मुझे
मन बुझाबुझा सा है
जीवन में काई जमी है |
मन की प्रसन्नता न मिल पाई
जाने कितने दर दर भटकी हूँ
प्यार के दो शब्दों के लिए
अपनी राहें खोज रही हूँ |
सुबह से शाम तक जीवन का बोध
पूर्ण कभी न हो पाया मन संतप्त हुआ
जीवन का मोह भंग हुआ क्षण भंगुर जीवन है
प्रभू के ध्यान में मगन रहूँ और नहीं कुछ कहना है |
आशा सक्सेना
१-कहां जाओगे
लौट यही आओगे
अपेक्षा यही
२-जीवन गीत
मेरी तेरी कहानी
सफल रही
३--किसी से नहीं
कभी अपेक्षा रही
ना अब भी है
४-विपदा आई
अचानक से यहाँ
मन चंचल
५- सात रंग हैं
पांच स्पष्ट दीखते
रहे इस में
६-आसमान में
वर्षा ऋतू में दिखे
इंद्र धनुष
७- हमारा प्यार
दुलार सबसे है
बैर न कहीं
८-किसी से प्रीत
नहीं कीजिए अति
ना ही जंग हो
आशा सक्सेना
कितनी बार समझोता किया
हर पहलू पर नजर डाली
जो मन को न भाए दर किनारे किया
तब भी न बच पाए बिकट रूप ले वार किया |
मन को इतनी ठेस लगी भूले रिश्ते नाते
,कोई नहीं अपना जान गए हैं वास्तब में
रिश्तों को पहचान गए हैं नजदीक से
जो रिश्ते दिखावे से बनते सतही कहलाते,
खून के रिश्ते अलग नजर आते |
रिश्ते जो समय पर दिलो जान से काम आते
दिखावे में नहीं होता विश्वास उनका
अपने से ज्यादा मित्रों को कुछ ना समझते
वे रिश्ते होते मतलब से गहरे बहुत |
एक ही रिश्ता होता पर्याप्त
अधिक की आवश्यकता नहीं होती
बुरे समय पर जो साथ दे नेक सलाह दे
वही होता सच्चा रिश्ता बाक़ी सब अकारथ |
जो धोखे में रखे नेक सलाह न दे
ऐसे रिश्ते से क्या लाभ कैसे उसे अपना कहें
जो धोखे में रखे और बचा न पाए दूसरे को
अच्छी सलाह न दे पाए गुमराह करे |
ऐसे रिश्ते से तो अकेले ही अच्छे
सही पहचान यदि न हो पाई रिश्ते की
बिना बात ही समस्या बड़ी बिकट हो जाती
खुद को मुसीबत में डालती |
आशा सक्सेना
कितने भी मार्ग चुने मैंने
हरबार काँटों से हुआ सामना
जितना भी बच कर निकली
राह रोकने की कोशिश की उन नें |
वे कोशिश में सफल हुए
मैंने असफलता का मुंह देखा
जब भी अन्देखा किया उन का
मुझे ही कष्ट भोगना पड़ा |
अब भी समझ में कमी रही
कितनी सतर्कता रखूँ राह खोजने में
फिर भी जाना तो है अपने गंतव्य तक
सोच लिया असफलता से क्या डरना |
फिर से कमर कसी कदम आगे बढ़ाए
जब झलक देखी सफलता की मन खुशी से झूमा
अपनी सफलता को करीब से देखा
सारे कष्ट भूल गई सपनों में खो गई
यही बात सीखी उनसे
यदि हिम्मत हारी कुछ भी हाथ न आएगा
किसी का क्या जाएगा
मुझे ही कष्ट होगा
जिससे समझोता न हो पाएगा |