09 अक्तूबर, 2023

हमने जब सोचा

 

 

  हम ने जब भी सोचा

 सही राह पर  चलने के लिए 

कई व्यवधान मार्ग मेंआए 

किसी ने सही राह ना बतलाई |

मन को बहुत  चोट पहुंची |

फिर सोचा  मेरे ही साथ 

ऐसा हादसा क्यों 

मन से समझोता किया 

सोचा बहुत मनन किया |

किसी बड़े आदमीं ने सलाह देनी चाही 

पर अहम् ने ना स्वीकारा इसे 

यही मैंने मात खाई 

किसी की बात ना मान कर 

हर समय ठोकर ही खाई 

जितनी बार विचार किया

मन में द्रढ़ता जाग्रत हुई 

08 अक्तूबर, 2023

खोलूँ पाठ शाला अच्छे शब्दों की

अपशब्दों की पाठ शाला खुली है

 राजनीति के क्षेत्र में 

चुनचुन करअप शब्दों का उपयोग किया जाता 

सामान्य होमेल जोल की भाषा  में |

यही दिल को दुखी करता क्या यह शोभा देता है 

पढे लिखे लोगों के भाषा उपयोग में 

कभी सोचना  क्या यही सिखाया जाता है 

झड़ी अपशब्दों की लगे जब दो लोग बात करें 

मैंने तो सोच लिया है एक पाठशाला खोलूँ 

जिसमें पाठ पढाऊँ सभी तरीके

 जो आते हों सभ्यता के दायरे  में 

कुछ तो सुधार हो  बोल चाल की भाषा में

 |लोग सुने पर हँसे नहीं दो बोल ने वालों पर 

यही चाहत है मेरी कोई असभ्य ना खे |


आशा सक्सेना 

07 अक्तूबर, 2023

अन्तराष्ट्रीय बालिका दिवस


है आज बालिका दिवस

बड़ी खुशी होती यदि

केवल  कागज़ पर न मनाते इसे

जो बड़ी बड़ी बातें करते मंच पर

उनका अमल जीवन में न  करते

 सही माने में उसे  मनाया जाता |

बालिकाओं को केवल दूसरे दर्जे का नागरिक न कहा जाता  

उन्हें अपने अधिकारों से वंचित न किया जाता

आज के युग में बड़ी बड़ी बातों को

बहुत विस्तार से प्रस्तुत किया जाता

जब सच में देखा जाता

मन को कष्ट होता यही सब देख

कथनी और करनी में भेद भाव क्यों ?

हमारा प्रारम्भ से ही अनुभब रहा

कितना भेद भाव रहता है

लड़कों और बालिकाओं के लालन पालन में

 बहुत दुभांत होती है दौनों में  |

हर बार वर्जनाएं सहनी पड़ती है बालिकाओं को

लड़कों को किसी बात पर  रोका टोका नहीं जाता

इसी व्यबहार से  मन को बहुत कष्ट होता है

यदि  सामान व्यबहार किया जाता दौनों में

 ऐसे दिवस मनाने न पड़ते |

लोग अपने बच्चों में भेद न करते

सबसे सामान व्यवहार करते

कथनी और करनी में भेद न होता

क्या आवश्यकता रह जाती बालिकाओं के संरक्षण की

वे भी सामान रूप से जीतीं खुल कर |

 


क्षणिका

 

 

·         

यह वीरान सा जीवन

कोई काम नहीं सूझता

क्या किया जाए

बिना बात धरती पर बोझ क्यों बना जाए  |


बचपन तो अच्छा था

 किसी को कोई अपेक्षा ना होती थी 

किशोर हुए तब अपेक्षा बढ़ने लगी 

यौवन में बोझ तले दवे फिर भी कोई खुश नहीं |


आई शिथिलता जीवन में अब क्या करें 

अंत समय अब दूर नहीं 

बस एक ही सुख रहा

 किसी का कोई कर्ज नहीं |


हरी भजन में हुए व्यस्त 

आगे का जीवन कैसा होगा 

यह हुई हरी की मर्जी 

इसकी चिंता ना रही |


आशा सक्सेना 

कविता के समंदर में

 

कविता के समुन्दर में

अनगिनत मछलियाँ

और कई ले कर साथ

थी इतनी जनता  कि  

देखी भीड़ कि जगह ना  मिली

 बैठने के लिए

मन को दोष दिया लापरवाही का

समय का मोल बताया

पिछली बेंच पर बैठने के लिए हुए बाध्य

आधी सुनी ना सुनी

घर की याद आई

मन को धीरज बंधाया

अगले वर्ष आने का वादा लिया

सुनने सुनाने का समय ना था

बच्चों के साथ

कोई भीड़ से धबरा रहा था

घर जाने की जीद्द कर रहा था

खैर मन को समझाया

इतना प्यारा कवि सम्मेलन त्याग

घर की राह पकड़ी |

भीड़ इतनी थी कि वहां से

 निकल नहीं पाए

बिना पुलिस के सहारे के  

पर मन को बहुत दुःख हुआ |

आशा सक्सेना  

 

 

06 अक्तूबर, 2023

आत्म मंथन

 इतना सरल नहीं आत्म मंथन

 सब खोजते अपनी अच्छाई 

पर अवगुणों तक पहुँच

 नहीं हो पाती 

यदि होती क्या बात होती 

अपनी अच्छाई जान पाना

 अपना भला बुरा जान पाना 

नहीं होता सरल जिसे समझा जाए 

पर अपने गुणदोष का आकलन 

किया जा सके हो नहीं सकता 

आशा सक्सेना 

05 अक्तूबर, 2023

जीवन में कैसे जिया जाए

 ना कभी प्यार मिला किसी से

 नाही बदले में दिया कभी 

यह भी ना सोचा कि 

जीवन स्नेह बिना नहीं चलता |

पहले परिवार में रहते एक साथ 

यह भी रास नहीं आया किसी को 

अकेले रहने पर बाध्य किया 

पहले तो अच्छा लगा पर 

फिर मन में बेचैनी होने लगी 

अकेलापन सालने लगा मन को |

कई बार अश्रु भर भर  आए

 उनका सैलाव बढ़ने लगा 

कभी नदी का एहसास हुआ 

तब भी किसी ने साथ ना दिया 

सोचने पर मजबूर किया

 अकेले रहें या साथ 

जीवन कैसे जिया जाए |

आशा सक्सेना