सुर्ख अधर तुम्हारे
दन्त पंक्ति दाड़िम के बीज जैसी
चंचल चितवन करती आकृष्ट सभी को
मुस्कान तुम्हारी चहरे की |
यह भोलापन यह मासूमियत
इतनी सहज नहीं मिल पाती
होते बहुत भाग्यशाली
जो नवाजे जाते इस अद्भुद प्रसाद से |
जो देखता सोचता यह रूप कहाँ से पाया
तुम्हारे सत्कर्मों से या प्रभु की कृपा से
सच में तुम ने बहुत भाग्य से पाया है यह सब
अद्भुद हो तुम और तुम्हारा रूप |
आशा सक्सेना