आशियाना
की थी कल्पना
एक छोटे से आशियाने की
हुई साकार
पर पापड़ बहुत बेलने पड़े
आखिर सफलता मिल ही गई
उस की खोज में
जितना सुकून मिला वहां आकर
शब्द कम पड़ जाते हैं
उसकी
प्रशस्ति में
सोचा न था
कभी वह अपना होगा
अपने ऊपर भी
खुद की छत होगी
सुख शान्ति और प्रगति होगी
कल्पना थी एक छोटे से घर की
घिरा हुआ चारो ओर
हरियाली
से फूलों भरी क्यारियों से
हों सारे क्रिया कलाप वहीं
सुबह से शाम तक
दोपहर में चारपाई पर
बैठ
बुनाई करू
सारे सपने साकार करूँ
जब
गृहप्रवेश किया
पाकर आशीष प्रभू का
शीश नवाया पूरी शिद्दत से |
आशा