22 जून, 2020

आशियाना






आशियाना

की थी कल्पना 
 एक छोटे से आशियाने की 
हुई  साकार 
 पर पापड़ बहुत  बेलने पड़े
आखिर सफलता मिल ही गई 
उस की खोज में
 जितना सुकून मिला वहां आकर
 शब्द कम पड़ जाते हैं
 उसकी प्रशस्ति में
सोचा न था
 कभी वह अपना होगा
अपने ऊपर भी
 खुद की छत होगी
सुख शान्ति और प्रगति होगी
कल्पना थी एक छोटे से घर  की
घिरा  हुआ चारो ओर 
 हरियाली से फूलों भरी क्यारियों से 
 हों सारे क्रिया कलाप वहीं
 सुबह से शाम तक
दोपहर में  चारपाई पर 
बैठ बुनाई करू
सारे सपने साकार  करूँ 
 जब गृहप्रवेश किया
पाकर आशीष प्रभू का
 शीश नवाया पूरी शिद्दत से |
आशा

21 जून, 2020

आस्था





आस्था है मन की  मर्जी
किसी पर थोपी नहीं जाती
जिसकी जैसी सोच हो
वह वहीं ठहर जाती |
आत्मविश्वास सुद्रढ़ हो जब
 कोई नहीं बदल सकता उसे
मन का मालिक है वह
अच्छे बुरे का है  भान 
तभी सफल है जिन्दगी
 यही उसका प्रमाण |
कब होता  आस्था का जन्म  
यह भी निश्चित नहीं होता
किस  में हो किस पर हो
कहा नहीं जा सकता |
किशोरावस्था  में कोई
 बहुत मन पर छाता
वय  परिवर्तन के साथ
 बदल जाते है भाव
यौवन में किसी पर
अंध विश्वास तो होता है
पर आस्था नहीं|
यह होती आवश्यकता
उम्र के अंतिम पड़ाव की
तभी याद आते पाप पुन्य
जो भी किये पूरे जीवन में
आस्था का जन्म होता  
भगवत भजन याद आते
रह जाते जाने अनजाने  में
आस्था रूप बदल लेती भक्ति में
यही है कहानी आस्था की |
asha

18 जून, 2020

जीवन क्षण भंगुर


    

नीला समुन्दर नीला आसमान
धरा बहुरंगी इंद्र धनुष सामान
आशा उपजती उसे निहारने की
समस्त रंग जीवन में उतारने की |
 यह जीवन भी  है क्षणभंगुर
जाने कब साँसें थम जाएं
शरीर अग्नि की भेट चढ़े
 पञ्च तत्व में विलीन हो जाए |
इस ज़रा से जीवन के हर पल का
पूर्ण आनंद लेना चाहती हूँ मैं
जिस रंग से हो अधिक लगाव
उसमें ही खोना चाहती हूँ मैं |
चंचल मन सोच नहीं पाता
किस रंग से है उसका गहरा नाता  
हुआ  है हाल बच्चों सा किसे दूं वरीयता  
फिर भी जो  जिद्द ठानी है उसकी पूर्ती करूँ |
कभी जल या  नभ कभी धरा पर विचरण करूं
हर रंगबिरंगी वस्तु मुझे  करती आकृष्ट
किसे लूं अपनाऊँ आत्मसात करूं
मैं कोई पल गवाना नहीं चाहती |
मुझे हर पल का हिसाब रखना है
जितना हो संभव उसका सदउपयोग करूं
है आकांक्षा प्रवल  इस  जीवन  को भरपूर जिऊं
क्या भरोसा कब साँस की लड़ी टूट जाए
मेरे सारे अरमान तो पूर्ण हो जाएं |
                        आशा

16 जून, 2020

प्रतीक्षा



रातें काटी तारे गिन गिन
थके  हारे नैन  ताकते रहे  बंद दरवाजे को
हलकी सी आहाट भी
ले जाती सारा ध्यान उस उस ओर
विरहन जोह रही राह तुम्हारी
कब तक उससे प्रतीक्षा करवाओगे
क्या ठान लिया है तुमने
उसे जी भर के तरसाओगे |
क्या किया ऐसा  उसने
 जो तुम  समय पर ना आए
या जानना चाहते हो
कितना लगाव है उसको तुमसे
अब और कितनी प्रतीक्षा करवाओगे |
प्रतीक्षा का भी है  अपना अंदाज नया
पर भारी पडा है  यह इन्तजार  उसे
तुम्हारे अलावा सब जानते हैं
जब देखोगे उसका हाल बुरा
बहुत पछताओगे |
अगर जाना ही था तो बता कर जाते
वह इस हद तक परेशान तो न होती
इंतज़ार तो होता अवश्य पर
बुरे ख्यालों की भरमार न होती
रोते रोते उसका यह हाल तो न होता
दिल में  बुरे विचारों की भरमार न होती |
प्रतीक्षा की आदत है उसको  
 क्या होता यदि बता कर जाते
इन्तजार की घड़ी कैसे कट जाती
वह जान ही नहीं पाती
बहुत उत्साह से दरवाजा खोल
मुस्कुरा कर  तुम्हारा स्वागत करती |
आशा


15 जून, 2020

किसने कहा तुमसे





किसने कहा तुमसे
 प्यार नसीब में नहीं मेरे
 है वह बेशुमार तुम्हारे लिए
 पर तुम्हें उसकी कद्र ही नहीं है |
 खिची दीवार थी दोनों दिलों के बीच
अलगाव पैदा हुआ अनजाने कारण से
 इसे मिटाएं कैसे किस लिए
 जितने भी यत्न किये 
 सफलता से दूरी होती गई
 वह पास आकर भी दूर होती गई |
 अपनी भूल पर पश्च्याताप 
क्या ठीक से कर नहीं पाते
 या तुम ही नहीं समझ पाते
 अपने प्यार की ऊष्मा को
 नन्हें सितारा ही काफी हैं
 आसमान में चमकने के लिए
 कोई आवश्यकता नहीं है
 किसी बड़े से चंद्रमा की
 जिसे इतना महत्व् मिलता है
 उसके मुखमंडल पर भी दाग है
 दुनिया के  प्रपंचों से रहे हो दूर
 अब तक फिर हुआ बदलाव अचानक कैसा
 क्या प्रेम की डोर है इतनी कच्ची
 कि मेरी तुम्हें कोई कद्र ही नहीं है |
आशा 

13 जून, 2020

बढ़ती उम्र

सुबह काम शाम काम
ज़रा भी नहीं आराम
  अब होने लगी है थकान
जर्जर  हुआ शरीर |
पीछे छूटे खट्टे मीठे
 अनुभवों के निशान
मस्तिष्क  की स्लेट पर  
पुरानी यादों के रूप में |
समय लौट नहीं पाया
 बहुत साथ दिया उसने  
पहले भी साथ  निभाया  
अब भी निभाता है |
वक्त कब पीछे छूटा याद नहीं रहा
जब तक ताकत थी शरीर में
बढ़ती उम्र के तकाजे से
कब तक बचे रहेंगे |
है यही सत्य जीवन का
कैसे भूल गए 
एक दिन ऐसा भी होगा
 पलग पर पड़े रहेंगे |
 बीते कल की  बातें
 तस्वीरों  की तरह
 एक के बाद एक
आँखों के केनवास पर से गुजरेंगी |
यादें ताजी हो जाएंगी
बापिस बचपन में जाने का
खेल खेलने का मन होगा 
पर केवल कल्पना में|

आशा