तिल तिल कर मिटी हस्ती मेरी
कभी इस पर विचार न किया
जब तक सीमा पार न हुई
तरह तरह की अफवाएं न उड़ी|
रोज सुबह होते ही
कोई अफवाह सर उठाती
किये रहती बाजार गर्म उस दिन का
सुन व्यंग बाण मन आहत होने लगता |
कभी रोती सिसकती सोचती किसी को क्या लाभ
दूसरों की जिन्दगी में ताकाझाँकी करने का
मिर्च मसाला मिला चटपटी चाट बना कर
अनर्गल बातें फैलाने का |
सूरज पश्चिम से तो उगेगा नहीं
ना ही पूर्व में अस्त होगा
दिन में रात का एहसास कभी न होगा
ना ही पूरनमासी को अधेरी रात दिखेगी |
अपनी समस्याओं से कब मुक्ति मिलेगी
इस तक का मुझा एह्सास नहीं हुआ अब तक
खुद की समस्याओं में ऎसी उलझी मैं
निदान उनका न कर पाई और तिल तिल मिटती गई |
यही एक कमी है मुझमें
हर बात किसी से सांझा करने की चाह में
कुपात्र या सुपात्र नहीं दिखाई देता
दिल खोल कर सब बातों को सांझा करती हूँ |
यहीं मात खाती हूँ तिलतिल मिटती जाती हूँ
फिर अपना खोया हुआ सम्मान अस्तित्व में खोजती हूँ
अब तक तो वह हवा होगया कैसे मिलेगा कहाँ मिलेगा
भूलना होगा मेरा भी अस्तित्व कभी था बीते कल में |
आशा