वह दिन भी गुजरा बेचैनी में
कोई खबर न आई वहां
से
लंबा समय बीता था जहां
अब कुछ नहीं रहा वहां
सिवाय बुरी खबरों के |
अब अखवार के
सारे पृष्ट भरे होते
प्रारम्भ से अंत तक
होती जन धन की हानि से |
कभी प्राकृतिक आपदाओं
के आगमन से
कभी मानव जन्य
प्रकृति
के अति दोहन से |
मन दुखित होता है
ऐसे हादसों की जानकारी से
मन की रौशनी बुझ जाती है
बुद्धि कुंद हो जाती है
साथ नहीं देती |
हम भी यदि होते वहां
हम होते न होते
क्या हाल होता हमारा |
मैं हूँ आत्म केन्द्रित
सब की सोच नहीं पाती
केवल खुद तक ही
सीमित होकर रह जाती |
जब भी कोई बुरी
घटना
सुनाई देती है
उसी में उलझी रहती हूँ
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
बेचैनी बढ़ती जाती है |
आशा