28 अगस्त, 2021

बाँसुरी कान्हां की


 

कान्हां तुम्हारी बाँसुरी का स्वर

लगता मन को मधुर बहुत

खीच ले जाता वृन्दावन की गलियों में

मन मोहन जहां तुम धेनु चराते थे  |  

 कभी करील वृक्ष  तले बैठ

घंटों खोए रहते थे उसके जादू में

कल कल करतीं लहरें जमुना  की   

आकृष्ट अलग करतीं  |

ग्यालबाल गोपियों का मन

 न होता था घर जाने का

  विश्राम के पलों में भी   

दूर न जाना चाहते  |

 बांसुरी के स्वरों में खोकर

कब पैर ठुमकने लगते  

ग्वाल बाल हो जाते व्यस्त नृत्य में

झूम झूम कर नृत्य करते समूह में |

 केवल स्मृतियों में ही शेष रहे    

 मन मोहक स्वर बांसुरी  के  

जब बांसुरी के स्वर न सुनते    

तब मन अधीर होने लगता था  |

ना घुघरू की खनक

 न बंसी के स्वर आज

सूना सा जमुना तीर दीखता  

कभी  बहार थी जहाँ पर  |

आशा

    

27 अगस्त, 2021

कलम ज़रा धीरे चलो


 

हे कलम ज़रा धीरे चलो

 भावों की है दूर तक पहुँच

पर शब्दों में वह क्षमता नहीं

जो तुम्हारा साथ दे पाए |

जब भी कोशिश शब्दों ने की

तुम्हारा हमकदम होने की  

यादों के गलियारों में घूमने की

साथ तुम्हारा न दे पाए |

हुआ मन आहात व्यथित

चित्र तक न बन सका सतरंगा

भावों की दौड़ तक कैनवास पर

यूँ तो असफल रहे हर क्षेत्र में |

कलम जब तुम साथ दोगी

उनकी  की  प्रेरणा बनोगी

शब्दों में  होगा शक्ति संचार

वे तुम्हारा दे पाएंगे साथ |

 जितना भी लिखोगी श्रेय तुम्हे ही जाएगा

शब्दों को साथ ले मनोभाव दर्शाने का

नया सृजन जब साँसे लेगा

मन को भी सुकून मिलेगा |

आशा 

क्षणिका


 मरता प्यार जब जीवन में

ना कोई रंग  हो 

कोई आशा न  हो 

वीरानी पसरी हो चहु ओर |


केवल  बातों से 

पेट नहीं भरता 

कुछ तो करना होता है 

कर्मठ होकर |


स्वप्नों में खोए रहने से  

कुछ भी हांसिल न होगा 

हो सजग यदि सच में 

कुछ भी दूर न होगा तुमसे |


की अरदास जब भी प्रभू की 

सच्चे  मन से सब कुछ पाया 

दीन दुनिया के छल कपट से 

खुद को बहुत दूर रख  पाया |


आशा 


यदि प्यार न बांटोगे उससे


 

कैसे कोई तुम्हारा अपना होगा

यदि तुम प्यार न बांटोगे उससे

जिस पर ऐतवार करोगे

उस पर सब न्योछावर करोगे |

वही जान छिड़केगा तुम पर

भूल न पाओगे उसे जीवन भर 

वही सहारा देगा समय समय पर तुमको 

तुम खुद ही यह एहसास करोगे |

वास्तविकता से जितनी दूरी होगी  

 पथ प्रदर्शक वही  होगा तुम्हारा

वह उस  दूरी को पाटेगा

तुम्हारा मन सक्षम  बनाएगा  |   

 अंधविश्वास और विश्वास में

 फासला रख चलना होगा    

 यदि न चल पाए  तब पछताओगे

 वहीं मात खा जाओगे |

 सही मार्ग  दिखाया तो जा सकता है  

पर चलना तुम्हें ही होगा  

खुद में जागे विश्वास पर साहस से

ठोस धरा पर पग धरना होगा |

जीवन सरल नहीं होता जब जानोगे  

 कठिनाईयों से सामना करोगे  

सही राह है क्या तुम्हें समझना होगा

 स्वप्नों में जीना ही जीना नहीं है पहचानोंगे |

आशा

   

  

26 अगस्त, 2021

हाइकु


 


कब कहना

कितना है कहना

सार्थक यहाँ

 

मनभावन

दृश्य देखते हुए

नेत्र न थके

 

कहाँ हो राम

कहीं नहीं विश्राम

इस जग में

 

तुम्हारे बिना

 सूनी लगी दुनिया

मैं क्या करती 

 

बंधन बांधा

है कच्चे धागों का

फिर भी पक्का

 

ना जाना वहां

जहां प्यार नहीं हो

ना हो अपना  

आशा

रचना बेसुरी


 


ना स्वर मिले न ताल  

 कैसा है  संगीत सोच हुआ बेहाल  

शब्द विन्यास भी खोखला

मन में पीड़ा का दंश चुभा |

यदि थोड़ी भी मिठास होती

जिन्दगी बड़ी खुश रंग होती

यह रचना है बेसुरी बेनूर  

 है इतनी बेरंग किसी से मेल न खाती |

जब भी  सुनी जाती

मन पर  बोझ  बढाती

 चाहत नहीं  उसे सुनने की 

ख्याल भी  नहीं आता कभी खुश होने का |

 बेकरार मन की पीड़ा  दर्शा कर 

 क्या लाभ दूसरों को दिल का नासूर दिखा   

  दिल की पीड़ा दर्शाने का

जब कोई हल न समक्ष आता |

यदि सही हल निकलता

संगीत मधुर हो जाता

 लय ताल  का बोध होता

प्यारी सी रचना जन्म लेती |

25 अगस्त, 2021

हो उदास क्यों


                                                दिखते हो उदास किस लिए 

राखी के शुभ अवसर पर

क्या राखी नहीं आई बहिन की

या ड्यूटी पर हो तैनात इस लिए |

घर परिवार सब कुछ छोड़ा

यदि माया मोह में फंसे रहे 

 कैसे न्याय कर पाओगे

 देश की सुरक्षा के प्रति   |

हो धीर वीर कर्तव्य निष्ठ

 हो सच्चे रखवाले  देश के

 गर्व से सर उन्नत हुआ है 

 तुम्हारा शौर्य देख |

रणभूमि में पाई सफलता

बहिन हुई निहाल

 प्रशंसा करते न थकती

शौर्य का पदक देख |

 है भाई बहादुर वीर

भयभीत नहीं किसी रण से

सीमा पर तैनात मुस्तैदी से

अगली पंक्ति में  मोर्चे पर|

सूर्य की प्रथम किरण के आते ही 

सैनिक का हो जाता जीवन व्यस्त    

रात्रि तक विश्राम नहीं    

नियमित जीवन जी रहा ईश्वर को नमन कर |

रक्षा बंधन  का क्या है

 राखी इस बार न बंधी  तो क्या

बाँध रक्षा सूत्र त्यौहार अगले वर्ष

 मना लेंगे सोचा बहिन ने |

 पहले कर्तव्य फिर कुछ और

 यही विचार आता है मन में  

फिर भी अंतस के किसी कौने में रहता

क्या आज भाई न आएगा |

आशा