22 जून, 2022

बंधन कच्चे धागे का



                                     बंधन कच्चे धागे का

दिखता बड़ा कच्चा सा

पर होता इतना प्रगाढ़ 

कि सात जन्मों तक नहीं टूटता |

कितनी भी बाधाएं आएं

उस बंधन पर

कोई प्रभाव नहीं होता

साथ बना रहता जन्म जन्मान्तर तक |

यही विशेषता है उस बंधन की

किसी की नजर नहीं लगती उसको

मन में कभी उलझन कोई चिंता 

कुंठाएं नहीं पनपतीं |

प्यार की क्या बात करें

दिन दूना रात चौगुना

परवान चढ़ता मंजिल पर

परिवार फलता फूलता खुशहाल रहता|

यही सुख मिलता रहे सब को

है यही  ग्रंथि बंधन की विशेषता

कोई अलग न हो एक दूसरे से 

 जन्म जन्मान्तर तक  | 

19 जून, 2022

हाइकू(पितृ दिवस )


                                                                      १-पिता का प्यार 

छिपा रहा मन में 

दीखता नहीं 

२-हाथ पकड़ 

चलना सिखा कर 

खडा किया है 

३-पिता बनके 

दाइत्व निभाया है 

सफल रहा 

४-ख्याल खुद का 

परिवार का  रखा 

सब प्रसन्न 

५-तपती धूप

व्यवहार  तुम्हारा 

प्यार न दिखा 

६-कठिन कार्य 

सभी को खुश रखा 

समेत तेरे  

७-ख्याल अपना 

सपने जैसा दिखा 

याद न रहा 

८-तुम्हारे  बिना 

हम सब अधूरे 

याद करते 

९-पितृ दिवस 

याद तो किया गया  

फिर से भूले 

१०-कठिन हुआ

 है जीवन व्यापन 

तुम्हारे बिना  |

आशा 




17 जून, 2022

गुलदस्ता

 

              तुम्हारा स्नेह और दुलार है 

एक गुलदस्ते सा

जिसकी पनाह में पलते 

कई प्रकार के पुष्प |

बहुत प्रसन्न रहते

 एक साथ घूलमिल कर

कोई नहीं रहता अलग थलग 

 मानते एक ही परिवार का सदस्य अपने को |

यही बात मुझे अच्छी लगती 

उस रंगबिरंगे  गुलदस्ते की 

सबके साथ एकसा 

सामान व्यवहार होता वहां 

कोई भेद भाव नहीं आपस में|

वे एक ही बात जानते 

वे बने हैं गुलदस्ते के लिए 

तभी सब मिलजुल कर रहते 

यही गुलदस्ते को देता विशिष्ट स्थान | 

मनभावन पुष्पों को माली सजाता 

  सब को समान  रूप से देखता 

 पुष्पों को रंग के अनुसार सजाता  

वह पुष्प चुनने में सहायक होता

मुझे उस में तुम्हारा   

ममता भरा चेहरा दीखता 

यही आकलन है मेरा तुम में 

 तुम गुलदस्ते सी हो

परिवार के लिए | 

आशा  

 


 

13 जून, 2022

किसी के कहने सुनने से


 

किसी के कहने सुनने से

 कुछ ना होता पर

जब मन को धुन आए

बिना कहे रह न पाए |

मनमोजी होना मन का

 कोई नई बात नहीं है

पर खुदगर्ज होना है गलत

यही समझ समझ का है फेर |

यही बात समझ में आजाए

मानव मन को संतुष्टि आजाए

फिर जो चाहे कर पाओगे

कोई कठिनाई न होगी |

आपस में तालमेल की जरूरत न होगी

अपने आप सामंजस्य

 हो जाएगा दौनों में |

आशा 

 

11 जून, 2022

है बंधन प्रगाढ़ दौनों का



तुम किसी को पत्र लिखो  न लिखो 

किसी को क्या फर्क पड़ता है 

 पर मुझे बहुत फर्क  पड़ता है 

क्यों कि तुम्हारे लिखे हुए  पत्र के

 हर शब्द में दिखाई देता है प्रतिरूप मेरा |

जब तुम कभी लिखना  भूल जाते हो

 या अधिक व्यस्त रहते हो और पत्र नहीं लिखते 

मैं बहुत उदास हो जाती हूँ |

मन में भय उपजने लगता है 

कहीं कुछ कमीं तो नहीं रही मुझमें 

जो तुम्हें मेरी याद न आई 

पर मिलने पर कारण बताया जब 

मन बहुत लज्जित हुआ |

फिर मन में प्रश्नों का अम्बार लगा 

क्या इतना भी आत्म बल नहीं रहा मुझमें 

विश्वास खुद पर कैसे न रहा ? 

या कोई कमीं पैदा हुई है मेरे आकर्षण में 

अभी तक सोच में डूबी हूँ 

पर कारण तक खोज न पाई |

यदि मेरा मनोबल मेरा साथ न देता 

इतने दिनों का साथ 

कैसे छूटने के कगार पर होता 

हमारा  मनोबल है सच्चा साथी हम दोनों का 

जो एक  साथ बांधे  है हमें कच्ची डोर से |

दिखने में तो बहुत कमजोर दिखती ग्रंथि 

पर बंधन बड़ा प्रगाढ़ है दौनों में |

आशा 



09 जून, 2022

संतप्त मन की व्यथा


 

किस्से तोता मैना के

कितनी बार सुने 

 उनसे प्रभावित भी हुए 

पर अधिक बंध न पाए उनमें

उनमें सच की कमी रही 

केवल सतही रंग दिखे वहां |

मन ने बहुत ध्यान दिया 

सोचा विचारा उन कथाओं के अन्दर 

छिपे गूढ़ अर्थों पर 

पर संतुष्टि न मिल पाई उसे |

मन की भूख समाप्त न हो पाई 

कैसे उसे खुश रखूँ सोच में हूँ |

कई और रचनाएं खाखोली 

मन जिन में लगा 

वही किताबें पसंद आईं |

मन को संतुष्टि का चस्का लगा 

 अब वह भी खुश और 

मैं भी प्रसन्न होने लगी |

जल्दी ही मन उचटा 

कुछ नया पढ़ने का मन हुआ 

रोज नई किताबें कहाँ मिलतीं

तभी पुस्तकालय का ख्याल आया |

अब मैं और किताबें रहीं आसपास

मन को चैन आया 

और  मुझे आनंद मिला 

यही क्या कम था 

 मैं कुछ तो सुकून

उसे दे पाई  |

आशा  

   


 

06 जून, 2022

मुक्तावली

 

शब्दों को चुन कर 

 सहेजा एकत्र किया

प्रेम के धागे में पिरो कर 

 माला बनाई प्यार से 

सौरभ से स्निग्ध किया

खुशबू फैली सारे परिसर में |

 धोया साहित्यिक विधा के जल से 

  

अलंकारों से सजाया

मन से अद्भुद श्रृंगार किया

फिर तुम्हें  पहनाया 

उसे दिल से |

एक अद्भुद एहसास जागा मन में

हुई मगन तुममें

 दीन दुनिया भूली

क्या तुम ने अनुभव

 न किया यह दीवानापन

या जान कर भी अनजान रहे |

यह तो किसी प्रकार का न्याय नहीं

ना ही थी ऎसी अपेक्षा तुमसे

मन को दारुण दुःख हुआ

क्या कोई कमी रही 

मेरे प्रयत्नों में|

यदि थोड़ा सा इशारा  किया होता

मुझे यह अवमानना

 न सहनी पड़ती

मेरी भावनाएं 

 तुम्हारे कदमों में होती|

मुक्तावली की शोभा

 होती तुम्हारे कंठ में |

तुम हो आराध्य मेरे 

यही है पर्याप्त मेरे लिए  

कभी न कभी तो मेरी

 फरियाद सुनोगे |

मुझे किसी से नहीं बांटना तुम्हें

तुम मेरे हो मेरे ही रहोगे |