कभी कभी ख्यालों में आना
फिर कहीं गुम हो जाना
रात के अन्धकार में
मन को भाता तुम्हारे
मैं क्या करती |
खोजे से भीं न मिलना
करता है परेशान मुझे
कहीं जाने नहीं देता
परछाई सा चिपका रहता
मैं क्या करती |
कभी मेरे स्वप्नों में आना
वहां आने के लिए
कोई बहाना बनाना
करता है बाध्य तुम्हें
मैं क्या करती |
मन चाही बातें मनवाना
वहां अकेले ही बने रहना
किसी से बहस नहीं करना
सब पर हुकूमत चलाना
अच्छा
लगता है तुम्हें
मैं क्या करती |
मुझे प्यार है तुमसे
मन भाग रहा है वहां
नहीं मंजूर मुझे
किसी और का वजूद
नहीं होता सहन मुझे
मैं क्या करती |
आशा