जब तक पूरी ना हो कोई सुन नहीं पाता
जब तक नया रूप ना हो आनंद नहीं आता
कोई सुनना नहीं चाहता |
कहने को तो कुछ नहीं कविता लिखने में
सतही अर्थ समझने में
पर गूढ़ अर्थ समझना आसान नहीं होता
जिसके अनुभव होते गहन
वे पूरी तरह उसे आत्म सात करते
पूर्ण आनंद लेते यही विशेषता होती जब
लिखना सार्थक हो जाता
श्रोता वक्ता जब एक दूसरे को समझ पाते
कवि सम्मेलन का आनन्द ही कुछ और होता |
आशा सक्सेना