जब भी देखा तुम्हें
तुम अनदेखी कर चली गईं
कई बार यत्न किये मिलने के
वे भी सम्भव ना हो पाए
चूंकि हैसियत कमतर थी
पैगाम शादी का भी स्वीकार ना हुआ |
एक अवसर ऐसा भी आया
निगाहें चार तुमसे हुईं
नयनों की भाषा ना समझा
तुम क्या चाहती थीं
जान नहीं पाया |
घर में लोगों का आना जाना
और शादी की गहमागहमीं
मैं भी व्यस्त होने लगा
सभी से मिलने जुलने लगा
चाहे बेमन से ही सही |
हाथों में चूडियों की खनक
हिना से हथेलियाँ लाल
जब नजरें तुमनें उठा
सजल नयनों से मुझे देख
जल्दी से आंसू पोंछ लिये
झुका लिया निगाहों को |
डोली में बैठ जानें की तैयारी देख
सुन दिल की आवाज
मिलने को कदम बढाए भी
पर समाज का ख्याल आते ही
इस विचार को झटक दिया
उसे मन में ही दफन किया |
देखी तुम्हारी विदाई
गहन उदासी में डूबा
वह भी इतनी गहराई
चेहरे तक से झलकने लगी
लोगों ने कुछ भांप लिया
फुसफुसाहट चर्चा में बदली
तुम तो चली गईं लेकिन
हम तो बिना प्यार किये ही
बदनाम हो गए |
आशा