15 जुलाई, 2011

वे ही तो हैं



कोरी स्लेट पर ह्रदय की

कई बार लिखा लिख कर मिटाया

पर कुछ ऐसा गहराया

सारी शक्ति व्यर्थ गयी

तब भी न मिट पाया |

कितने ही शब्द कई कथन

होते ही हैं ऐसे

पैंठ जाते गहराई तक

मन से निकल नहीं पाते |

बोलती सत्यता उनकी

राज कई खोल जाती

जताती हर बार कुछ

कर जाती सचेत भी |

कहे गए वे वचन

शर शैया से लगते हैं

पहले तो दुःख ही देते हैं

पर विचारणीय होते हैं |

गैरों की कही बात

शायद सही ना लगे

पर अपनों की सलाह

गलत नहीं होती |

शतरंज की बिछात पर

आगे पीछे चलते मोहरे

कभी शै तो

कभी मात देते मोहरे |

फिर बचने को कहते मोहरे
पर कुछ होते ऐसे

होते सहायक बचाव में

वे ही तो हैं,

जो अपनों की पहचान कराते |

14 जुलाई, 2011

धीरज छूटा जाए




रिमझिम वर्षा की फुहार
अंखियों से बहती अश्रुधार
देखती विरहणी राह
प्रिय के आगमन की |
वे नहीं आए 
नदी नाले पूर आए
कैसे मन सम्हल पाए
बार बार बहका जाए |
बादलों का गर्जन
करता विचलित उसे
दामिनी दमके
चुनरी हवा में उड़ी जाए |
गहन उदासी छाए
धीरज छूटा जाए
पर ना हुई आहट
प्रीतम के आगमन की |
द्वारे पर टकटकी लगाए
वह सोचती शायद
मन मीत आ जाए
इन्तजार व्यर्थ ना जाए |
आशा

12 जुलाई, 2011

ऐसा क्यूँ होता है


है कारण क्या परेशानी का

उदासी की महरवानी का

गर्मीं में अहसास सर्दी का

गहराती नफरत में छिपे अपनेपन का |

कभी आकलन न किया

जो कुछ हुआ उसे भुला दिया

फिर भी कहीं कुछ खटकता है

मन बेचारा कराहता है |

है कारण क्या

चाहता भी है जानना

पर दूर कहीं उससे

चाहता भी है भागना |

गहरी निराशा

पंख फैलाए आती है

मन आच्छादित कर जाती है

रौशनी की किरण कोइ

दूर तक दिखाई नहीं देती |

सिहरन सी होने लगती है

विश्वास तक

डगमगा जाता

मन आक्रान्त कर जाता |

क्या खोया कितना खोया

यह महत्त्व नहीं रखता

बस एक ही विचार आता है

क्यूँ होता है ऐसा

उसी के साथ हर बार |

आशा

11 जुलाई, 2011

तेरा प्यार




तेरा प्यार दुलार

भूल नहीं पाती

जब पाती नहीं आती

मुझे बेचैन कर जाती |

तेरे प्यार का

कोइ मोल नहीं

तू मेरी माँ है

कोई ओर नहीं |

आज भी

रात के अँधेरे में

जब मुझे डर लगता है

तेरी बाहें याद आती हैं |

कहीं दूर स्वप्न में

ले जाती हैं |

फिर सुनाई देती है

तेरी गाई लोरियाँ

आँखें बंद करो कहना

मेरा झूठमूठ उन्हें बंद करना |

सारा डर

भाग जाता है

जाने कब सो जाती हूँ

पता ही नहीं चलता |

आशा

09 जुलाई, 2011

कांटा गुलाब का



तू गुलाब का फूल
मैं काँटा उसी डाल का
है तू प्रेम का प्रतीक
और मैं उसकी नाकामी का |
दौनों के अंतर को
पाटा नहीं जा सकता
है इतनी गहरी खाई
कोइ पार नहीं कर पाता|
फिर भी तुझे पाने की आशा
हर व्यक्ति को होती है
मुझे देख भय लगता है
कभी विरक्ति भी होती है |
गुलाब तुझे पता नहीं
मैं दुश्मन प्रेम का नहीं
तेरे पास रहता हूँ
तुझे बचाने के लिए |
 चाहता हूँ यही
खुशबू तेरी बनी रहे
प्रेम का प्रतीक तू
ऐसा ही सदा ही बना रहे |
आशा

08 जुलाई, 2011

आज भी वही बात



तुम भूले वे वादे

जो रोज किया करते थे

बातें अनेक जानते थे

पर अनजान बने रहते थे |

तुम्हारी वादा खिलाफी

अनजान बने रहना

बिना बाट रूठे रहना

बहुत क्रोध दिलाता था |

फिर भी मन के

किसी कौने में

तुम्हारा अस्तित्व

ठहर गया था |

बिना बहस बिना तकरार

बहुत रिक्तता लगती थी

तुमसे बराबरी करने में

कुछ अधिक ही रस आता था |

वह स्नेह और बहस

अंग बन गए थे जीवन के

रिक्तता क्या होती है समझी

जब रास्ते अलग हुए |

बरसों बाद जब मिले

बातें करने की

उलाहना देने की

फिर से हुई इच्छा जाग्रत |

जब तुम कल पर अटके

कसमों वादों में उलझे

तब मैं भी उन झूठे बादों की

याद दिलाना ना भूली |

पर आज भी वही बात

ऐसा मैंने कब कहा था |

यह तो तुम्हारे,

दिमाग का फितूर था |

आशा

06 जुलाई, 2011

ग़म




अपने ग़मों के साथ

कई ग़म और लिये फिराता हूँ

देता हूँ तसल्ली उनको

खुद उन्हीं में डूबा रहता हूँ |

नहीं चाहता छुटकारा उनसे

वे हमराज हैं मेरे

हम सफर हैं जिंदगी के

जाने अनजाने आ ही जाते हैं

स्वप्नों को भी सजाते हैं |

हद तो जब हो जाती है

जाने कब चुपके से

मेरे मन में उतर जाते हैं

मन में बसते जाते हैं |

अब तो बिना इनके

अधूरी लगती है जिंदगी

क्यूँ कि खुशी तो

क्षणिक होती है |

इनका अहसास ही जताता है

दौनों में है अंतर क्या

इन्हीं से सीख पाया है

धबरा कर जीना क्या |

अब जहां कहीं भी जाएँ

बचैनी नहीं होती

क्यूँ कि साथ जीने की

आदत सी हो गयी है |

खुशियों की झलक होती मुश्किल

हैं मन के साथी ग़म

सदा साथ रहते हैं

बहते दरिया से होते हैं |