05 सितंबर, 2016

गुरू शिष्य

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योग्य धनुर्धर होने को 
हो पूर्ण ध्यान निशाने पर 
लक्ष्य भेदन तभी संभव 
जब एकाग्र हो मन  निरंतर
शिक्षा थी गुरू की यही 
स्वीकार जिसे शिद्दत से किया 
ध्यान तभी केन्द्रित हुआ 
तीर निशाने पर लगा 
है अति  विशिष्ट 
गुरू शिष्य का नाता 
काल पुरातन से आज तक 
कोई भ्रमित न इससे हुआ 
जैसे पहले महत्त्व  था इसका
आज भी वह कम न हुआ 
|शिक्षा जिससे भी मिले
 शिरोधार्य शिष्य करे 
तभी पूर्णता का भास् हो 
शिष्य का विकास हो |

आशा


02 सितंबर, 2016

क्षणिकाएं

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 १ 
 रूप खिले कमल के फूल सा 
महकता तन मन संदल सा 
गाता गुनगुनाता सुनता सुनाता 
चहकता स्वर उपवन में पंछी सा । 
२ 
बरसों के बिछुड़े अब मिले 
तब जा कर दिल से दिल जुड़े 
मनवा बेचैन कुछ कहे न कहे 
आँखें तरस गईं थीं बिना मिले ।

प्रातः बेला में खिली कुमुदनी
यही उसे जीवंत बनाती
मीठी सी मुस्कान लिए
बधाइयों की झाड़ी लगाती |
 आशा

31 अगस्त, 2016

एक अफ़साना


एक अफसाना सुनाया आपने
गहराई तक पैठ गया मन में
जब पास बुलाया आपने
थमता सा पाया उस पल को
कसक शब्दों की आपके
वर्षों तक बेचैन करती रही
जब भी भुलाना चाहा उसे
तीव्रता उसकी बढ़ती गई
जो दीप जलाया था मन मंदिर में
झोंका हवा का सह न सका
तीव्रता बाती की बढ़ी
लौ कपकपाई और बुझ गई 
प्रतिक्रया अफसाने की
आखिर किससे सांझा करती 
आप से कुछ कह न सकी
मन की मन में रह गई |
आशा

27 अगस्त, 2016

तलाश अभी बाक़ी है

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साँसों पर पहरा लगा है
जिन्दगी की तलाश बाक़ी है
आशा निराशा में झूलता मन
सत्य की तलाश अभी बाक़ी है
जहर तो मिल ही जाता है
अमृत की तलाश अभी बाक़ी है
कौन अपना कौन पराया
यही तो जानना है
गैरों  की भीड़ लगी है
अपनों को पहचानना है
इल्जाम न देना बाद में कि
वफ़ा हमने नहीं की
हर वार आपने किया था
हमने तो बचाव किया था
हम तो हम हैं
हैं सब से जुदा
किसी का अक्स नहीं
 मिलावट की बू नहीं
जिन्दगी की राह में
यूं ही नहीं फ़ना हुए हैं 
हर सांस का हिसाब लेना है 
जीवन की आस अभी बाक़ी है |
आशा
 

24 अगस्त, 2016

जन्माष्टमी -हाईकू

  मथुरा जी में 
जन्म लिया कान्हा ने
कारागार में |

आधी रात में 
स्वतः खुले कपाट 
कान्हा के लिए |

नन्हें कान्हा को 
वासुदेव ले चले 
गोकुल धाम |

हो गईं धन्य 
पा कर कन्हैया को 
माता यशोदा |


 मटकी फोड़ी
दूध दही खा कर 
की बाल लीला |

बंसी बजाई 
गोपियों को रिझाया 
भोले कान्हा ने |

मंगल गाओ
जन्म लिया कान्हा ने
है जन्माष्टमी |

आशा







23 अगस्त, 2016

क्यों




राह क्यों नहीं दिखाई देती
अनगिनत बाधाएं आतीं
जब भी आगे आना चाहूँ
पीछे से क्यों रोक लेतीं
क्यों हैं बाधाओं का अम्बार
जिनकी नहीं रहती दरकार
क्यों हूँ वंचित खुशियों से
क्या यही लिखा है प्रारब्ध में
क्यों हैं दुनिया संकुचित
केवल मेरे लिए
क्यों बैर सभी रखते हैं मुझसे
कारण खोजना है कठिन
पर खोज अवश्य है जारी
कभी तो कारण मिलेगा
क्यों का भूत सर से उतरेगा |
आशा

21 अगस्त, 2016

हाईकू




धूमिल हुई
इवारत प्यार की
पढ़ी न गई |

मन मंदिर
तन का है पिंजरा
किसको चुने |


सारी अदाएं
बचाईं तेरे लिए
तुझे रिझाएँ |

है पुजारिन
वह तेरी छबि की
तूने न जाना |

गीत प्यार के
लगते मीठे बोल
आया सावन |

झूला झूलती
है बहिनभैया की
है तीज आज |

आशा

18 अगस्त, 2016

खुशबू


खुशबू अनोखी के लिए चित्र परिणाम

भीनी भीनी सी सुगंध
जैसे ही यहाँ आई
तुम्हारे आने की खबर
यहाँ तक ले आई
हम जान लेते हैं
तुम्हें पहचान लेते है
अनोखी सुगंध है
अनोखा एहसास है
हजारों में भी
सब से अलग
तुम लगती हो
यही खुशबू बन गई है
परिचय तुम्हारी
उसके बिना तुम
अधूरी सी लगती हो
वह भीनी खुशबू
तुममें समा गई है
तुम्हारे जाने के बाद भी
कुछ समय महक
बनी रहती है
यही महक
प्रफुल्लित कर जाती है
तुम्हारी उपस्थिति
दर्ज करा जाती है |
आशा



16 अगस्त, 2016

न जाने क्यूं



आज न जाने क्यूं
एकांत की चाह में
बहुत दूर निकल आई
रंगीनिया वादियों की
यहाँ तक खींच लाईं
विविध रंगों की झांकी
देख आँखें नहीं थकतीं
मन लौटने का न होता
वहीं ठहरना चाहता
यह बड़ा सा पुल
और पास की हरियाली
आगे की राह नहीं सूझती
पर व्योम की छटा ने
कमी पूरी करदी
नीली चादर ओढ़ धरा
अधिक ही प्यारी लगती |
बड़ा पुल हरियाली के बीच के लिए चित्र परिणाम
आशा

14 अगस्त, 2016

पन्द्रह अगस्त

मिली स्वतंत्रता पंद्रह अगस्त को
स्वतंत्र देश के हैं नागरिक
आजादी कितनी मुश्किल से मिली 
अब कुछ भी याद नहीं 
कुर्वानी   देश  के लिए जिसने दी
अब किताबों तक सीमित रह गई 
राष्ट्रीय त्यौहार मनाने की 
रस्म अदाई बच रही 
अब तो इतना ही याद है 
आजादी हमारा है अधिकार 
इस पर कोई न डाका डाले 
हैं लड़ने मरने को तैयार 
अपने अधिकार सुरक्षा को 
जब आजादी मिली थी 
कुछ दाइत्व भी सोंपे गए  थे 
वे सब कहाँ खो गए 
एक भी याद न रख पाए 
अधिकार सुरक्षा में ऐसे खोए 
कर्तव्य पालन भूल  गए 
राष्ट्र ध्वज के तलेआज भी 
कोई प्रतिज्ञा लेते हैं 
पर कैसे पूरी की जाएं 
यह तक नहीं सोचते 
यही मानसिकता देश को 
आगे बढ़ने नहीं देती 
अर्ध विकसित तब भी था 
आज भी वहीं है |
आशा






13 अगस्त, 2016

भोर कभी न आए

हरी भरी वादियों में 
जाने का मन है 
वहीं समय बिताने का मन है 
स्वप्न तक नहीं अछूते 
उनकी कल्पना में
जाने कितने स्वप्न सजाए
कल को जीने के लिए
यह तक याद नहीं रहा
स्वप्न तो सजे हैं
पर रात के अँधेरे में
तेरा अक्स मुझे रिझाए
एकांत पलों के साए में
केनवास पर रंग व् कूची
कई अक्स बनाए मिटाए
 वादियों की तलाश में
वह मन को रिझाए
गीत प्यार के गुनगुनाए
तभी  दिल चाहता है
भोर कभी न आए
स्वप्न में ही वह उसे पा जाए
आने वाला कल उसके लिए
खुशियों की सौगात लाए|
आशा

11 अगस्त, 2016

अभाव हरियाली का


खँडहर में कब तक रुकता
आखिर आगे तो जाना ही है
बिना छाया के हुआ बेहाल
बहुत दूर ठिकाना है
थका हारा क्लांत पथिक
पगडंडी पर चलते चलते
सोचने को हुआ बाध्य
पहले भी वह जाता था
पर वृक्ष सड़क किनारे थे
उनकी छाया में दूरी का
तनिक भान न होता  था
मानव ने ही वृक्ष काटे
धरती को बंजर बनाया
 कुछ ही पेड़ रह गए हैं
वे भी छाया देते नहीं
खुद ही धूप में झुलसते 
लालची मानव को कोसते
जिसने अपने हित के लिए
पर्यावरण से की छेड़छाड़
अब कोई उपाय न सूझता
फिर से कैसे हरियाली आए
  पथिकों का संताप मिटाए |
आशा

08 अगस्त, 2016

कवि बेचारा


लिखने के लिए
अब रहा क्या शेष
सभी कब्जा जमाए बैठे हैं
रहा ना कुछ बाक़ी है
हम तो यूँ ही दखल देते हैं
किसी के प्रिय नहीं हैं
फिर भी जमें रहते हैं
तभी तो कोई नहीं पढ़ता
हमने क्या लिखा है 
ना रहा  किसी का वरद हस्त
ना ही कोई मार्ग दर्शक
हम किसी खेमें में नहीं
तभी अकेले हो गए हैं 
उड़ने की चाह ने 
दी है ऐसी पटकी 
भूल से भी नहीं देखेंगे 
ना ही कभी चाहेंगे 
तमगों की झलक भी |

आशा

06 अगस्त, 2016

व्यर्थ नहीं यह जीवन

03 अगस्त, 2016

वे लम्हें



वे लम्हें के लिए चित्र परिणाम
वे लम्हें जो कभी 
साथ गुजारे थे
सिमट कर 
रह गए हैं यादों में
हैं गवाह
 उन जज्बातों  के
जो धूमिल
 तक न हुए हैं
मन मुदित
 होने लगता है
उन लम्हों में
 पहुँच कर
क्या वे लौट कर
 न आएंगे
मुझे सुकून
 पहुंचाने को 
हर याद है 
इतनी गहरी
उससे जुदाई
 मुश्किल है
हैं वे लम्हें 
 वेशकीमती
उनसे दूरी 
नामुमकिन है |
आशा

01 अगस्त, 2016

मुक्तक

वह तेरा ऐसा  दीवाना हुआ
बिन तेरे दिल वीराना हुआ 
वीराने में बहार आए कैसे 
सोचने का एक बहाना हुआ |

चारो ओर छाया अन्धेरा ,उजाले की इक किरण ढूँढते हैं
गद्दारों से घिरे हुए हैं ,ईमान की इक झलक ढूंढते हैं
जो ईमान पर खरी उतारे ,ऐसी इक शख्शियत ढूँढते हैं
जिस दिन उससे रूबरू होंगे ,उस पल की तारीख ढूँढते हैं |
कहाँ नहीं खोजा आपको आखिर आप कहाँ हैं 
क्या लाभ असमय पहुँचाने का ,जताने का कि आप वहां हैं 
अब तक कई लोग पहुंचगे होंगे ,किसा किस को जाने
कोई आए या न आए आपके बिना ,मन को सुकून कहाँ है |
है नटखट नखराली 
चंचल चपल चकोरी 
चाँद सी सूरत सहेजे 
बारम्बार करती बरजोरी |
जाने कितने राज छिपे  हैं इस दिल में 
 होने लगा आग़ाज अब जमाने में 
कैसे दूरी रख पाओगे ए मेरे हमराज 
छोड़ सारे काम काज उलझे रहोगे उनमें |

की ऊँठ की सबारी रेगिस्थान में
दूर तक था जल का अभाव मरुस्थल में
थी सिक्ता कणों की भरमार वहां
दूर दिखाई देती मारीचिका  मरू भूमि में |


आशा




29 जुलाई, 2016

क्या गलत किया है



शर्तों पर अवश्य टिका है
पर मैंने तेरे नाम
पूरा जीवन लिख दिया
आज के युग में
सुरक्षा लगी आवश्यक
तभी शर्तों का सहारा लिया
क्या कुछ गलत किया
भावनाएं थी प्रवल
जब अनुबंध पर
दस्तखत किये थे
फिर भी मस्तिष्क था सजग
जब तेरा साथ किया था
तभी दौनों की
जुगलबंदी चल रही है
है यह आज की मांग
क्या मैंने गलत किया है
विश्वास पर रिश्ते टिके हैं
फिरभी सुरक्षा लगी आवश्यक
समाज गवाह बना है
इस प्यारे से रिश्ते का
मैंने क्या गलत किया है |
आशा

28 जुलाई, 2016

नन्हां मित्र

नन्हा पौधा हाथों में के लिए चित्र परिणाम
- बहुत व्यस्त हूँ
मुझे एक नन्हां मित्र मिला है
छोटे से पौधे के रूप में
उसे ही हाथों में लिए हूँ
सहेज रही हूँ
अभी तो गड्ढा किया है
ताजी मिट्टी डाली है
यही इसका धर होगा
जहां यह अपनी
जड़ें जमाएगा
रोज जल से इसे
सिंचित करूंगी
अपने मन की बातें
इससे ही कहूंगी
जब यह बड़ा होगा
हरा भरा वृक्ष होगा
यहीं आ कर
विश्राम भी करूंगी |
आशा