13 फ़रवरी, 2019

मेरा अस्तित्व


मेरा अस्तित्व


तू बरगद का पेड़
और मैं छाँव तेरी
है यदि तू जलस्त्रोत
मैं हूँ जलधार तेरी |
तू मंदिर का दिया
और मैं बाती उसकी
अगाध स्नेह से पूर्ण
मैं तैरती उसमे |
तूने जो चाहा वही किया
उसे ही नियति माना
ना ही कोइ बगावत
ना ही विरोध दर्ज किया |
पर ना जाने कब
पञ्च तत्व से बना खिलौना
अनजाने में दरक गया
सुकून मन का हर ले गया |
कई सवाल मन में आए
वे अनुत्तरित भी न रहे
पर एक सवाल हर बार
आ सामने खडा हुआ |
है क्यूँ नहीं अस्तित्व मेरा
वह कहाँ गुम हो गया
मेरा वजूद है बस इतना
वह तुझ में विलीन हो गया |
आशा

12 फ़रवरी, 2019

पलाश

बसंत ऋतु को कर विदा 
पतझड़ ने डेरा डाला
पत्ते पीले हो झड़ने लगे
फिर भी कुछ पौधों पर 
हरी हरी कलियों में से 
झांक रहे केशरिया पुष्प  
हाथों से यदि छू लिये  
हाथ पीले हो जाते  
अभी भी  स्रोत यही हैं
देहातों में केशरिया रंग के     
 घर पर इनसे ही रंग बना कर 
होली पर खेलते रंग 
प्रियतमा के संग 
हो जाते अनंग
 खुशीयों में रम के
फूलों की होली के
 हैं ये प्रमुख हमजोली 
ये  होते बहुत उपयोगी  
दवा में उपयोग किये जाते 
श्वेत पुष्प पलाश के 
तंत्र मन्त्र साधना में 
काली शक्तियों को दूर करने में
पाते सफलता साधक
  केशरिया श्वेत पुष्पों के उपयोग से  |

आशा 


11 फ़रवरी, 2019

अवमानना






                                     कोई अपमान न कर पाए
                                                      उसका हर बार
                                                है दीवानगी इतनी कि
                                       उसकी छाया का भी
                                             न हो पाए  अवसान
                                           कोई उसके दिए  तोहफे का
                                              न करे अभिमान
                                         प्यार का सच्चा स्वप्न वही
                                             जो दीखता उस पार
                                             सच्चाई की मिठाई भी
                                               सदा मीठी नहीं होती
                                       अधिक मिठास देती कडवाहट
                                                      असंख्य बार  |

                                                आशा

10 फ़रवरी, 2019

शायरी सरल नहीं लिखना


नहीं कोई मन में मलाल
नियमों को तोड़ने का
छिपे भाव उजागर करने का
हर गज्ञल बेबहर हो गई है |
नाम हुए उसके हजार
हर शख्स गजल पढ़ नहीं सकता
उसमें निहित अर्थ
समझ नहीं सकता
चाहता है शायर कहलाना |
है शायरी के नियमों से अनिभिग्य
जानना भी नहीं चाहता
पर शायरी से हैउसका गहरा नाता
तभी तो हर गजल
बेबहर हो कर रह गई है |
ना तो काफिया ना मक्ता
न कोई जानकारी कैसे लिखी जाए 
शायरी में आनेवाले क्रम की |
पर अरमान नहीं छूटते
शायर कहलाने के
मंच पर शेर सुनाने के
तभी शायरी बेबहर हो गई है |
आशा



08 फ़रवरी, 2019

गुलाब
























गुलाब तो गुलाब रहेगा
चाहे जिस भी रंग का हो
चाहे जिस काम आए
उसकी सुगंध वैसी ही रहेगी
जब प्रेमी को दिया जाए
या भगवान को चढ़ाया जाए
या अर्थी की शोभा बने
जाने वाले को विदा करे
या हो रस्मअदाई
हो अकेली या गुलदस्ते में
उसे तो समर्पण करना ही है
चाहे भक्ति के लिए
 लाया गया हो
या प्रेम प्रदर्शन का माध्यम बने
आत्म हनन करना ही है
स्वेच्छा से या अनिच्छा से
है वह  परतंत्र
 स्वतंत्र छवि  नहीं उसकी
जब पेड़ पर होता है
 काँटों से घिरा होता है
तोड़ मरोड़ कर
 चाहे जब पैरों के तले
 मसल दिया जाता है
राह पर फैक दिया जाता है
उसकी है नियति यही |

आशा

06 फ़रवरी, 2019

नजर अपनी अपनी








है नजर अपनी अपनी
  जैसा सोचते है वही दिखाई देता है
जो देखना चाहते हैं अपने   नजरिये से
करते  हैं टिप्पणी अपने ही अंदाज में
कभी सोच कर देखना
एक ही इवारत पर
 अलग अलग टिप्पणीं होती हैं कैसे ?
यही तो फर्क है लोगों  के नजरिये में
कारण जो भी रहता हो
 पर  है  सत्य यही  
जिसे दस बार देख कर
 कोई पसंद नहीं आता
एक ही नजर में वही
 अपना सुख  चैन  गंवा देता है
कुछ लोग ऐसे होते हैं
 जो होते  निश्प्रह
ठोस धरातल पर रहते हैं
उन  पर अधिक   प्रभाव  नहीं
जो भी जैसा सोचता
 वही उसे नजर आता
यह तो है प्रभाव  अपनी सोच का 
आज के सन्दर्भ में बदले सोच का
अक्स स्पष्ट नजर आता है
कहीं कोई चित्र न बदलता
 पर बदलाव नजर आता है
एक ही लड़की किसी को
 दिखाई देती जन्नत की  हूर
किसी और  को वही बेनूर नजर आती
है अलग  अंदाज  अपनी सोच का
नजर नजर का फेर है
 कोई कह नहीं सकता
 किसका है कैसा नजरिया
 कोई सोच नहीं पाता
 है क्या पैमाना नजर की  खोज का |
आशा