16 मार्च, 2021

रमता जोगी

 


 
रमता जोगी

 खोज रहा एकांत

ठहरे जहां

चंद पलों के लिए

भूले भूकंप

भयावह सुनामी

सोचता रहा

 कब हो छुटकारा

उलझनों से

दुनिया की यातना

सह न पाता

कैसे बचे इससे

बैरागी मन

 ठहर नहीं  सके

भटका  जाए

एक ही स्थान पर

 हो कर  मुक्त

यहाँ  के प्रपंचों  से

है राह भूला

फिर नहीं भटके

 सही दिशा हो

बंद आंखो से खोजे  

वही   मार्ग हो

आशा 

 

15 मार्च, 2021

आज की नारी

 आज की नारी है  क्या 

कितना पानी

हटा पाया अब तक 

मन ने सोचा

तेरा उत्साह देख

आज की नारी

 कमजोर थी  कभी

अब नहीं है

छलके अश्रु मेरे

दौनों  नैनों  से

 है  सक्षम सफल

नहीं ज़रूरी

 बैसाखी वाकर की  

नहीं चाहिए

 उंगली की पकड़

अपनी शक्ति

पहचान गई है

आज की नारी

समय का साथ पा

 परख रही

है कितने पानी में

हाइकू


                                                                          1-बंसी बजैया

श्याम सुन्दर कान्हां

मन को भाया

2-तेरी ये माया

तूने क्यूँ भरमाया

न जान पाया

3-कैसी ममता

कितना भरा प्यार

क्या है स्नेह

4-खुशी भी तेरी

दुखी भी तुम नहीं

फिर है क्या

५-राधा है शक्ति 

मदन मोहन  की 

मीरा है भक्ति

६-माँ यशोदा 

वासुदेव पिता हैं 

घनश्याम  के 

७- श्याम सलोने 

 मोहन राधा जी  के 

        श्याम दुलारे        

 आशा 


13 मार्च, 2021

सच और झूट का अंतर

 

किस ने कहा तुमसे  हर बात  

जैसी  की तैसी  ही मान लो |

अपनी बुद्धि भी कभी  तो  खर्च करो

 ज्यादा नहीं तो कुछ तो लाभ हो  |

केवल कानों से  सुने और निकाल दें

यूँ ही आडम्बर जान यह भी ठीक  नहीं |

कभी सच्ची  बात नजर नहीं आती

जब झूटी अपना  फन फैलाती |

मुस्कान  तिरोहित हो जाती जब सच्चाई समक्ष  आती |

सच  झूट में  दूरी है  बहुत  कम जान लो

 आँख और  कान का है जितना फासला पहचान लो |

12 मार्च, 2021

भाग्य में क्या लिखा है

 यह मेरी समझ से बाहर है

मेरे भाग्य में क्या लिखा है ?

जब भी आकलन करना चाहूँ  

स्वयं पर हंसी आती है मुझे |

क्या फिजूल की बातें ले बैठा

विचारों की कोई सीमा नहीं है

वे बहते हैं नदी के जल के प्रवाह से

कभी रुकते हैं किसी बड़ी बाधा से  |

पर कभी उस का भी प्रभाव नकार देते हैं

मनमानी करने की जिद्द ठान लेते हैं

दोराहे पर खडा हूँ किसे अपनाऊँ 

 पर बड़ा दुःख दे जाते हैं

 यही मुझे सालता रहता है |

 इस झमेले से कैसे निजात पाऊँ

खुद  सम्हल कर पाँव बढाऊँ

जब खुद पर ही नियंत्रण नहीं रहा मेरा  

किसी और को क्या समझाऊँ |

आशा

11 मार्च, 2021

iशिवरात्रि

 


शिवजी की बरात निकली

 बहुत धूमधाम से

शिव पार्वती मिलन हुआ

विधि विधान से |

पार्वती ने पाया था

 मनोनुकूल वर

कठिन तपस्या से

तभी नाम हुआ अपर्णा उनका   |

रूप अनूप जोड़ी का

 देखते नहीं थकते दृग

दर्शन हुए बड़े भाग्य से |

हर वर्ष मनाया जाता

विवाह उत्सव उनका

 शिवरात्रि के रूप में |

बेल पत्र व् पुष्प चढ़ाते  

हल्दी कुमकुम दूध चढाते  

 भोग लगाया जाता

विधि विधान से |

उपवास दिन भर रखते

फल फूल से पेट भरते

भोले नाथ की माला जपते

बहुत यत्न से  |

मन चाहा पाने की

  लालसा सदा रही  मन में

 वरद हस्त प्रभू का

  सर पर हो  सदा  

यही रहा  मन  में |

आशा

 

10 मार्च, 2021

कारण समझ न पाई

राह देखती रही तुम्हारी

पर तुम न आए

मुझसे हो क्यूँ क्रोधित

समझती हूँ मैं भी |

यदि बात नहीं करनी थी

 न सामने आते  

पुराने घावों को

उघाड़ते ही क्यों ?

केवल  एक झलक दिखाई दी

 यह  किस लिए

क्या जरूरी है

हर बात बताऊँ तुम्हें |

जैसी स्वतंत्रता तूमने  चाही

 वैसी  ही मैंने अपनाई

क्या  नहीं है  यही   नियम मेरे लिए |

समाज से डरने के लिए

मुझे ही बलि का बकरा  बनाया

सही बात पर भी

मेरा नाम मिटाया

दिल के श्याम पट से |

 कैसा विधान  अपनाया तुमने

जो   वादे किये थे मुझसे

फिर क्यों न पूरे किये तुमने |

कभी ठन्डे मन से सोचना

क्या अकेली मेरी ही खता रही  सारी  

या मुझे उलझाया गया है

 किसी साजिश में |

 नहीं चाहती  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  

मुझे कुछ तो  बुद्धि आई होगी  

देख कर  दुनिया के छल प्रपन्च   

  उनका पीछा करता मानव देख |

 मन मेरा भी  होना चाहता

  सराबोर  आधुनिकता के  रंग में

 पर   बोझ से दबा

  है इसी उपक्रम में |

क्या चाहती हूँ सोच नहीं पाती

हूँ मैं क्या समझ से बाहर है

मैंने तुम्हें समझा है पर खुद को नहीं

अभी तक कारण समझ न पाई |

आशा