26 मार्च, 2021

कोविद की बापिसी


 

                           रंगीन समा

रहा कोरी  कल्पना

कोविद की बापिसी

हुई जब  से  

बिना रंग  गुलाल

फीका त्यौहार

रंग जाने कहाँ हैं

लौक डाउन

मुझे दुखी ही किया

जीवन गति

क्षीण होने  लगी  है

 कोई उत्साह

न रहा   त्यौहार में

मिठास नहीं  

 देखा  एक ही राग

घर में रहें

 समय कैसे बिताएं

मास्क पहने

सेनेटाईज करें

और  क्या करें

दूरी रख चलना  

बचना  कैसे

बीमारी के वार से

बाहर यदि गए

कैसे बचेंगे

 बीमारी का  भय है 

साँसे रुकी है

 समय नहीं कटता

 सदुपयोग

 करना है इसका

क्या करना है ?

सोच कुंद हुआ है

 तराशें  कैसे  

 विचार सजग हों   

यही  जुगाड़  

  तरकीब बताओ

राह दिखाओ 

समस्या सुलझाओ

 निदान  करो

मेरा बेड़ा  पार हो

यही दुआ दो  |

सागर सी गहराई तुममें

 



सागर सी गहराई तुम में 

हो इतने विशाल 

कोई ओर न छोर |

पर मन पर नियंत्रण नहीं 

जब भी समुन्दर में 

तूफान आता है 

हाहाकार मच जाता |

ऊंची ऊंची लहरें उठतीं 

 अनियंत्रित होतीं जातीं 

 सुनामी के नाम से 

  दिल दहल जाता है |

कितना विनाश होता   

नतीजा क्या निकलता 

मन दुखी हो जाता 

जानने की इच्छा नहीं  

आगे होगा क्या ?

 कैसा होगा अंजाम ?

कहा नहीं जा सकता |

वही हाल तुम्हारा है 

 होते हो  जब गंभीर 

विशाल शांत सागर जैसे  

बहुत प्यार आता है तुम पर 

पर रौद्र रूप धारण करतें ही 

बड़ा  परिवर्तन आ जाता है |

केवल कटुता ही रह जाती 

मन का प्यार 

कपूर की तरह 

कहीं उड़ जाता  है |

आशा

23 मार्च, 2021

सीमित संसाधन

 

 


क्षिति, जल ,पावक ,

गगन समीर 

सीमित हैं  मात्रा में

उपयोगी हैं  

प्रकृति का  आँचल  

हरा भरा हैं

दीखते हैं  पर्याप्त   

 यदि युक्ति हो    

आते  उपयोग में

कम  पड़ते

जब ठीक से नहीं

दोहन होता 

कद्र उनकी न हो 

स्रोत  तो स्रोत 

सीमित संसाधन 

सहेजे जाते 

खोजना सभी लोग 

चाहते रहे  

मीठे जल के स्त्रोत

पानी  के लिए |  

आशा

होली

माँगा फगुआ 

घर घर जा कर 

आल्हा गा कर  

चंग की थाप पर

कम से कम

किया है  उपयोग

पिचकारी का

रंग भरी  बाल्टी का   

गुनगुनाते  

गीत गाते  फागुनी

नृत्य करते  

जाते हैं झूम झूम 

फागुनी हवा

जब चली आती है

मन में गीत

सहज उपजाती

प्रिय  की याद

मन को बहकाती  

यादें  सताती 

मीठी गुजिया 

समोसे पपड़ी हैं 

स्वागत किए लिए 

फागुन आया 

सभी को प्यार देने |

आशा

21 मार्च, 2021

अन्तराष्ट्रीय कविता दिवस


                                                                          यह   दिवस

 मनाते कब से हैं 

इसकी यादें

बसती हैं मन में 

एक पेड़ सी  

घने  वृक्ष के जैसी

गहरी जड़ें  

फैल रही धरा में   

फैली शाखाएं

देती हरियाली है

नव पल्लव

खिल जाते डालों पे

सजते  सोच 

शब्द सहेजे जाते

 उड़ते पक्षी    

 विभिन्न कथन हैं 

छिपे  उनमें

 शब्दों  से बने गीत  

  भूल न पाते

उनके हैं  सन्देश 

दिल में रहे 

तभी यह दिवस

मनाया जाता  

आशा

   

 

  

भरमाया सा


 

है जब तक

प्राणों का आकर्षण

भरमाया सा  

मद मोह माया से  

छला जाता हूँ

मन के  मत्सर से

 अनियंत्रित हूँ  

 बेहाल हुआ 

मेरे   वश में  नहीं   

न अपना  है   

नहीं चंचल चित्त

ना ही वर्जना

तब भी अपनों ने

टोका ही नहीं

अनजान व्यक्ति ने

दी है हिम्मत

बढाया मनोबल

शूरवार हो

फिर कायरता कैसी

साहस बढ़ा

अंतर आत्मा जागी 

कर्मठ हुआ

निर्मल जीवन का

 समझा अर्थ 

हुआ कर्तव्य निष्ठ |

आशा   

20 मार्च, 2021

कितनी बातें

 


कितनी बाते

कहने करने को

समय कम

होने लगता जब

 बहुत कष्ट  

देता जाता मन को

तुम्हारा दिल   

कंटकों से भरता  

पुष्प किसी का  

भाग्य बदल देता

तुम्हीं अछूते

रह जाते उनसे

जानना चाहा

 सजा किस कारण 

मैंने किया क्या   

मालूम नहीं हुआ 

 रहा अशांत

  कभी खोजने की भी

चाहत  होती   

कितना लाभ होता 

जान कर भी

नहीं है  कुछ लाभ 

मन अशांत 

होता ही रह जाता 

आशा