जब आती है
वह जान जाती है
कैसे स्वप्न साकार
करने होंगे
किताबी ज्ञान नहीं
स्वीकार उसे
चाहती यथार्थ में
जीने की राह
कितने शूल चुभे
उस मार्ग में
घायल पैर दुखे
सहम जाती
नयन भरे भरे
हैं पहचान
उसके अंतस की
सांत्वना दी है
धीरज दिलाने
को
कोई नहीं है
है बहुत लगाव
मुझे उससे
कोई दिखावा नहीं
आशा