04 जुलाई, 2021

यादों की बरात चली


यादों  की बरात चली

बैंड  बाजों के साथ

मैं चला ले कर जखीरा साथ

बीते कल की यादों का |

घोड़े पर बैठ कर दीखती

 क्या शान  है

मधुर  स्वर में बज रहा

हर साज आज है |

पीछे चले घरवाले

गीत संगीत का आनंद लेते

लोकगीतों का मजा उठाते

 दूरी मालूम ही न पडी |

दुलहन का घर आते ही

हुई थकान पर क्या करूं

इतना तो चलना बनाता ही है

 बिना दूल्हा  क्या रौनक होती  बारात की |

हर पल याद पुरानी आती

पुरानी घटनाएं

 मन पर हो सबार

उन्हें और उछाल देतीं |

मन का बोझ तिल भर भी

 कम न होता

तुम्हारी कमी कैसे पूरी होती

तुम्हारा स्थान  भी 

कोई ले नहीं सकता  |

आशा

 

 

 

|

 

 

 

03 जुलाई, 2021

कोई कब तक सहेगा

 


कोई कब तक सहेगा

तुम्हारा अनर्गल प्रलाप

पहले सोच विचार करो

फिर किसी पर वार करो |

यदि होंगे वार तुम्हारे खोखले 

कोई प्रभाव नहीं छोड़ेंगे

पर वार बजनदार किसी की

 जान लेकर ही दम लेंगे |

हथियार से वार समय रहते ही

ठीक किये जा सकते हैं 

 शब्दबाण देते घाव ऐसे

  ताजिन्दगी भुलाए नहीं जा सकते |

ऐसे शब्दों के बाण सीधे

दिल को आहत करते हैं  

 कभी कोई दवा काम नहीं करती

ताउम्र खलिश बनी रहती |

स्वभाव तुम्हारे की यही कमी

बन जाती  प्रगति की हथकड़ी

तुम जमाने से बहुत पीछे रह जाते

फिर अपने भाग्य को दोष देते |

आशा 






कहने सुनने में क्या रखा है


 

कहने सुनने में क्या रखा है

 अप्रिय वचन दिल को लगते शूल से

 कहने वाले की सोच होगी कम इतनी

 कभी सोचा नहीं था |

 प्यार से बोले जाते दो  बोल

मन को बढ़ावा देते 

 सुनने वालों के दिल जीत लेते

यूँ तो कोई बात अधिक समय 

मस्तिष्क में नहीं रहती

पर व्यर्थ की हुज्जत दिल को जला देती |

जब भी बोलें  मीठे बोल

 ही  मुंह से निकलें 

यही व्यवहार से अर्जित यश 

अपने साथ जाएगा

जब भी इस जग से विदा लेंगे

 याद किये जाएंगे

 कोई कहेगा तो सही

 बोल तुम्हारे  बहुत मीठे थे |

कब  भवसागर  से  मुक्ति मिलेगी

  कुछ कहा नहीं जा सकता

पर आशा कि जा सकती है |

जब भी स्वतंत्र आत्मा होगी

 बोझ तले दबी नहीं होगी

एक ही पुन्य साथ जाएगा 

किसी की बद्दुआ न लेगा कोई 

मुक्ति के बाद भी तुझे याद किया जाएगा |

मुक्ति  के बाद भी तुझे याद किया जाएगा  |

02 जुलाई, 2021

आगमन सावन का


 

सावन गीत में मधुर संगीत

ऊपर से ढोलक की थाप

खूबसूरत समा का एहसास कराती

 कजरी मन को भाती |

हरियाली चहु ओर धरा पर 

सावन आगमन  की उपस्थिती 

धरती की सौंधी महक से 

 वर्षा के मौसम में  वायु के झोंकों से |

यही सुगंध हमें खींच कर ले जाती

हरेभरे बागों के बीच 

रंग बिरंगे पुष्प सजे  डालियों पर 

कोई क्यारी भी रिक्त नहीं 

 है कमाल माली की मेहनत का |

उसका रिश्ता हैवृक्षों से 

 पिता और पुत्र जैसा

जब कोई वृक्षों से छेड़छाड़ करता

उससे सहा न जाता

 कटु शब्दों से  उसे बरजता |

पक्षी मोर पपीहा  गाते अपनी धुन में 

 चुहल करते एक डाल से दूसरी पर जाते

रंगबिरंगी तितलियाँ उड़तीं

 भ्रमर करते गुंजन  कभी  पुष्प में छिप जाते | 

 बालाओं ने डाले झूले नीम की डाली पर

ऊंची पैंग बढ़ातीं कजरी गातीं

धानी धानी वस्त्र पहन कर

व्योम को छूना चाहतीं |

आशा 


व्योम को छूना चाहतीं |

01 जुलाई, 2021

स्वप्न क्या कहे

स्वप्नों में श्रंगार किया किसी ने  

चारो  ओर प्रसन्नता  छाई

न जाने कौन से आयोजन का   

शुभारम्भ हुआ  है  आज के आलम में |

पर स्वप्न अधूरा ही  रह गया

जब नींद से चौंक कर जागी

यह तक  कल्पना न कर पाई

यह स्वप्न था या यथार्थ |

नींद कैसे खुली याद नहीं

 मदहोशी का आलम

सर चढ़ कर बोला

मैं गाती रही गुनगुनाती रही |

बड़ी  देर तक उसी स्वप्न में खोई रही

स्वप्न यदि पूरा होता

 उसका अंत क्या होता ?

 यही सोचती रही

जब किसी निष्कर्ष तक

पहुँचती सोचती

 क्या यही सही विकल्प होता |

यदि स्वप्न पूरा हो जाता

अटकलें न लगानी पड़तीं

कभी बचपने   जैसा लगता

कभी कोई संकेत

छिपा होता स्वप्न में |

है यह दिवा स्वप्न

 या सपना रात का

 या केवल कोरी कल्पना

बड़ी गंभीरता से विचार किया

पर निष्कर्ष न निकल पाया |

 अधूरे स्वप्न ने मुझे उलझाया

अनगिनत विचार मन में आए  

 यह कोई संकेत तो नहीं किसी

आने वाली भली बुरी घटना का |

आने वाली भली बुरी धटना का  |

29 जून, 2021

काली और चांदनी रात


 











है तू रात की  चटक चांदनी

मैं   अंधेरी काली रात

सारा अम्बर  खुला है

 मेरे लिए तुम्हारे लिए |

एक बात अवश्य  अनुभव की  मैंने

तुमने याद किया हो कि नहीं

है चाँद की रौशनी

केवल  तुम्हारे लिए  न कि मेरे लिए |

कभी ईर्षा भी होती है तुमसे

 सब को है  इतना लगाव तुमसे  कैसे

तुमने कभी सोचा हो  या नहीं  

पर मुझे भय बना  रहता है |

तुम हो विशेष सब के लिए

पर मुझसे सब रहते  भयभीत  

काली रात में बाहर निकलना न चाहते

 अंधेरी  रात में बाहर की हवाखोरी से कतराते |

मुझे  ऐसा लगता है

जितना सुकून मिलता है

 प्रेमी युगलों को मेरी बांहों में आकर

वे उतनी ही दूरी तुमसे बना कर चलते |

बालवृन्द तो मुझसे ही भय खाते

चटक चांदनी में आकर झूम झूम जाते

पर क्यूँ करूं मैं तुम से तुलना 

दौनों का महत्व हैं समान दूसरों के लिए |

हम आपस में क्यूँ उलझें

ना तो मुझमें ना हीं तुझ में

जिसको हो जैसी आवश्यकता

वे वहीं दौड़ कर आते |

आशा 






आशा

28 जून, 2021

एक समाज सेवी ऐसा भी


 

कितने कागज़ काले करोगे

किसी पर कोई प्रभाव न होगा

उन्हें पढ़ कर जब तक

उसे कोई प्रलोभन न हो  |

हर शब्द बोलेगा तुम्हारे लेखों का

जब तक  कोई लालच  रहेगा

उसका वही लालच छिपा रहता 

 किसी कार्य को पूर्ण करने करवाने  में |

उसे कोई शर्म लिहाज नहीं है 

पीछे से कुछ लेनदेन में मेज के नीचे से

अब सारे  आदर्श हवा हो गए

समय के साथ उसका भी सोच बदला है |

वह हुआ एक ऐसा  उदाहरण

 कार्य कैसे किये  जाते हैं

मुठ्ठी गर्म होते ही फाइल आगे बढ़ती है

कार्य की गति द्रुत हो जाती है |

न जाने कितने लोग

 फंसे हैं इस दलदल में

कार्य संपन्न होते  ही सारा यश

खुद ही हड़प लेते हैं |

उन्हें कोई शर्म नहीं आती

ऊपर की कमाई में

उलटे  समाज में कद बढा लेते हैं

समाज सेवी कहला कर |

आशा 




धनवान समाजसेवी कहला कर |