01 सितंबर, 2021

मंतव्य जीवन का


जब मिल बैठे  दीवाने दो

एक  भक्ति में आकंठ डूबा

दूसरा राग रंग से लिपटा

रहे व्यस्त अपने अपने में |

 है क्या दौनों में समानता

 जब तंद्रा टूटी जागे

अपनी  अपनी बात रखी दौनों ने

हम को कोई नहीं चाहता |

समाज के लिए कुछ न कर पाया 

रहां बोझ बन कर वहां पर

बहुत अपेक्षा  थी मुझ से पहला बोला 

पर नाकारा साबित हुआ  |  

भक्ति में डूबे व्यक्ति की धारणा  

 यही रही  बदली नहीं

 दूसरा भोग विलास में इतना डूबा

खुद पर नहीं नियंत्रण उसका |

कह न  सका क्या सोचा उसने 

स्वयम अनियंत्रित ही  रहा  

  स्वयं की  उलझनों  में हूँ  लिप्त  

 जीवन का है  मंतव्य क्या?

समझ नहीं पाया 

समझा नहीं सकता   |

आशा

31 अगस्त, 2021

अपना लिया




मन से सोचा

दिल से दोहराया

इतना प्यारा

फिर भी न अपना

घर दिल का

रहा कलुष भरा

स्वच्छ न हुआ

न थी दूरी उससे

                जो  तब रही

                व्यवहार सतही

करते रहे  

दिखावा  रहा वह 

     अपनाया है      

दिल से दिल मिला 

 अपना लिया 

पूरी श्रद्धा  से 

गैरों सा व्यवहार 

उससे  किया

यह न्याय कहाँ है 

देरी से सही

जब समझ आया

स्वीकार किया

नकारा तक नहीं 

 भ्रम नहीं है 

प्यार मन से होता

 दिखावा नहीं

 जज्वा मन का रहा 

    अब समझ आया

                      आशा                                                                                                                                        -

  


29 अगस्त, 2021

कान्हां की कथा जन्म से किशोर वय तक

 



राजा मथुरा का कंस था दुष्ट अधिक


 बहिन देवकी का ब्याह होते ही 


उसे  डाला कारागार में 

  हुई थी  भविष्यवाणी क्यों कि 


 देवकी संतान करेगा  अंत उसका|


यही संताप रहता


 उसके मन में


जैसे ही गोद भरती बहिन  की 


 मार देता उसके बच्चे को |

 सात संतान जन्म लेते ही 

काल कलवित हुईं

आठवी संतान जन्म की

 थी प्रतीक्षा बेसब्री से  |

जब जन्म हुआ बालक का 

स्वतः ही  खुले द्वार  कारागार के

 

वासुदेव ने प्रस्थान किया बालक संग 

बरसते पानी में  

जमुना  थी उफान पर 


 पानी ऊपर तक आया

 

चरण छुए मोहन के


 और जल उतर गया बाढ़ का |


मित्र नन्द जी के घर जन्मी थी पुत्री

यशोदा ने बदला बच्चों को आपस में  

कन्या को कोई भय न था कंस से 

जब कन्या जन्म की सूचना मिली कंस को  

उसे भी ले जाया गया मारने को |

 कंस ने यह तक न सोचा

 कि बेटी से भय कैसा 

पछीट दिया उसे जमीन पर  |

तभी बिजली कड़की आसमान में हुई

 तुम्हारे संहारक ने जन्म ले लिया है 

  सुन कंस की नींद हुई हराम |

 उसे हर नया जन्मा  बच्चा संहारक दिखा     

 हाल में जन्में बालकों को मौत के घाट  उतरवाया 

सोचा अब तो कोई भय  न होगा |

 वृन्दावन में मन मोहन ने 

मां गोद में यशोदा की बचपन बिताया

 माखन खाया मित्रों को खिलाया  |

धेनु चराईं  बन्सी बजा कर मोहा सब  को   

 कान्हां के शोर्य की  चर्चा पहुंची मथुरा तक  

 कंस के कानों में|

बहुत अराजकता थी मथुरा में कोहराम मचा था   

भेजा सन्देश ऊधव के संग 

 कान्हां को बुलवाया |

ग्वाल वाल  हुए उदास 

  गोपियाँ  रोईं जार जार

 जल्दी आने का वादा कर


 कृष्ण चले ऊधव संग |

ऊधव का ज्ञान धरा रह गया

गोपियाँ न शांत हुई तब भी 

मन ही मन ऊधव को कोसा 

बारबार वादा लिया माधव से 

जल्दी बापस आने का  

 उनका प्यार  न बांटने का  

मथुरा की सुध लेने को बहुत हैं  

प्रजा सुखी करने को कई हैं 

उनके  यही रहा मन में |


आशा

 


28 अगस्त, 2021

बाँसुरी कान्हां की


 

कान्हां तुम्हारी बाँसुरी का स्वर

लगता मन को मधुर बहुत

खीच ले जाता वृन्दावन की गलियों में

मन मोहन जहां तुम धेनु चराते थे  |  

 कभी करील वृक्ष  तले बैठ

घंटों खोए रहते थे उसके जादू में

कल कल करतीं लहरें जमुना  की   

आकृष्ट अलग करतीं  |

ग्यालबाल गोपियों का मन

 न होता था घर जाने का

  विश्राम के पलों में भी   

दूर न जाना चाहते  |

 बांसुरी के स्वरों में खोकर

कब पैर ठुमकने लगते  

ग्वाल बाल हो जाते व्यस्त नृत्य में

झूम झूम कर नृत्य करते समूह में |

 केवल स्मृतियों में ही शेष रहे    

 मन मोहक स्वर बांसुरी  के  

जब बांसुरी के स्वर न सुनते    

तब मन अधीर होने लगता था  |

ना घुघरू की खनक

 न बंसी के स्वर आज

सूना सा जमुना तीर दीखता  

कभी  बहार थी जहाँ पर  |

आशा

    

27 अगस्त, 2021

कलम ज़रा धीरे चलो


 

हे कलम ज़रा धीरे चलो

 भावों की है दूर तक पहुँच

पर शब्दों में वह क्षमता नहीं

जो तुम्हारा साथ दे पाए |

जब भी कोशिश शब्दों ने की

तुम्हारा हमकदम होने की  

यादों के गलियारों में घूमने की

साथ तुम्हारा न दे पाए |

हुआ मन आहात व्यथित

चित्र तक न बन सका सतरंगा

भावों की दौड़ तक कैनवास पर

यूँ तो असफल रहे हर क्षेत्र में |

कलम जब तुम साथ दोगी

उनकी  की  प्रेरणा बनोगी

शब्दों में  होगा शक्ति संचार

वे तुम्हारा दे पाएंगे साथ |

 जितना भी लिखोगी श्रेय तुम्हे ही जाएगा

शब्दों को साथ ले मनोभाव दर्शाने का

नया सृजन जब साँसे लेगा

मन को भी सुकून मिलेगा |

आशा 

क्षणिका


 मरता प्यार जब जीवन में

ना कोई रंग  हो 

कोई आशा न  हो 

वीरानी पसरी हो चहु ओर |


केवल  बातों से 

पेट नहीं भरता 

कुछ तो करना होता है 

कर्मठ होकर |


स्वप्नों में खोए रहने से  

कुछ भी हांसिल न होगा 

हो सजग यदि सच में 

कुछ भी दूर न होगा तुमसे |


की अरदास जब भी प्रभू की 

सच्चे  मन से सब कुछ पाया 

दीन दुनिया के छल कपट से 

खुद को बहुत दूर रख  पाया |


आशा 


यदि प्यार न बांटोगे उससे


 

कैसे कोई तुम्हारा अपना होगा

यदि तुम प्यार न बांटोगे उससे

जिस पर ऐतवार करोगे

उस पर सब न्योछावर करोगे |

वही जान छिड़केगा तुम पर

भूल न पाओगे उसे जीवन भर 

वही सहारा देगा समय समय पर तुमको 

तुम खुद ही यह एहसास करोगे |

वास्तविकता से जितनी दूरी होगी  

 पथ प्रदर्शक वही  होगा तुम्हारा

वह उस  दूरी को पाटेगा

तुम्हारा मन सक्षम  बनाएगा  |   

 अंधविश्वास और विश्वास में

 फासला रख चलना होगा    

 यदि न चल पाए  तब पछताओगे

 वहीं मात खा जाओगे |

 सही मार्ग  दिखाया तो जा सकता है  

पर चलना तुम्हें ही होगा  

खुद में जागे विश्वास पर साहस से

ठोस धरा पर पग धरना होगा |

जीवन सरल नहीं होता जब जानोगे  

 कठिनाईयों से सामना करोगे  

सही राह है क्या तुम्हें समझना होगा

 स्वप्नों में जीना ही जीना नहीं है पहचानोंगे |

आशा