ओ चूहे तुम कब जाओगे
क्यूँ सताया है सारे
घर को
कितना नुक्सान किया
है तुमने
यह तक न सोचा कभी |
इतने ऊपर चढ़े कैसे
पांच मंजिल तक आए
क्या नया कूलर ही
मिला था
तुम्हें कर्तन के लिए |
हमने तो नहीं छेड़ा
तुमको
कोई नुक्सान न पहुंचाया
फिर भी तुमने दया न
बरती
है यह कैसी लीला तुम्हारी
|
तुम पूजे जाते गणपति के संग
यही सोच रहा मन में
हो गजानन की सवारी
क्यों सताया
जाए तुम्हें |
लिहाज तुमने न किया तनिक भी
बहुत यत्न किये फिर
भी
न जाना था न गए तुम आज तक
इतना नुकसान कैसे सहूँ |
कोई तरकीब तो बता
देते
एक छेद नए कूलर में
दूसरा मेरी जेब के अन्दर
कैसे सहन करूं यह कष्ट
जता जाते |
अब रहेगा तुमसे न
कोई प्रेम
न दया होगी तुम पर ज़रा
भी
अपनी सीमा तुमने
तोड़ी है
कोई अपेक्षा न
रखना मुझ से |
जब तक न विदा लोगे घर से
संतुष्टि मेरे मन को न होगी
यह बात मन में अवश्य
आयी है
जीवों पर दया करो सिद्धांत ने यहीं मात खाई है |
आशा