24 नवंबर, 2021

जोडियाँ ऊपर से बनकर आतीं


 

हम  दो प्राणी हैं जुदा जुदा

कुछ भी समान नहीं हम में

एक जाता उत्तर को

दूसरा विपरीत दिशा को चल देता |

यह कैसी जोडी बनाई प्रभु तुमने

कुछ तो समानता दी  होती 

कभी तो हाथ मिलाते प्यार से  

कैसे जीवन गुजरेगा हमारा |

एक साथ रहने के लिए

विचारों की एकता होती

या एक सी पसंद हो जाती

हर समय खीचतान न मची रहती |

कभी एकमत हो न पाते

यदि मन से कभी इच्छा होती

विरोध कैसे न करते 

बहस  हो नहीं पाती 

यदि सामान विचार धारा होती

फिर दोष किस पर मढ़ते |

आशा

नानुकुर किस लिए


                                         किसी भी बात पर 

 ना नुकुर

शोभा  न देती कभी 

 समय देखो

दीखते उलझते     

 विचारों में ही   

 तुम हो  मेरे 

 हम कदम नहीं  

किससे  कहूं 

 गैर तो नहीं अब 

फिर भी दूरी 

मुझे  अपने लगे 

प्यारे लगते 

कुछ तो हो जरूर

मेरे न हुए

कब तक बचोगे 

 हुआ इससे 

 क्या  और  किसलिए 

हमदम हो     

सपनों में आकर  

कभी देखना  

कौन हमसे ज्यादा 

  मन को प्यारा होता 

 क्या है उसमें       

लाडला किस लिए   

ख्याल तुम्हारे  

सबसे अलग हैं    

 प्रिय हैं मुझे

तब यह दूरी क्यों

किसके लिए |

आशा 

 

23 नवंबर, 2021

कठिन मार्ग दौनों का


                                        
हो गुलाब का फूल

 या हो पुष्प कमल का 

उन तक जाने में  

 पहुँच मार्ग में

 बड़े व्यवधान आते हैं |

 दौनों तक पहुँच पाने में

हम उलझ ही जाते हैं 

हैं बहुत महत्व  के दौनों 


              कमल है आसन देवी लक्ष्मी का   

उस तक पहुँचना 
कष्टकर होता |

दलदल में खिलते

पुष्प कमल के

फिर भी अलग रखते

 खुद को कीचड़ से  |

फूल गुलाब का

 भी कम नहीं किसी से 

अपने को बचा कर रखता

  घिरा रहता कंटकों से  |  

वे बचा कर रखते गुलाब को

 रक्षक बन कर उसके 

 अनचाही कोशिश किसी ने यदि की  

देते दंश बड़ा चुभन से  | 

 जब माला या गुलदस्ता

 गुलाब का ही  बनाना  होता

बहुत कष्ट होता

 उनको चुनने में |

पर महत्व जान कर

 दौनों पुष्पों  का 

भूल जाते उन 

कठिनाइयों को |

कितनी भी दिक्कत आए 

उन तक पहुँच पाने में

पूरे प्रयत्न करते

उन तक पहुँच ही जाते |



आशा 

22 नवंबर, 2021

कोयल चतुर (हाइकु )




 हरी ने  कहा 

करो  विनती मेरी 

वो  भूल गया 


सुबह हुई 

धूप चढ़ आई है 

तुम न उठे 


कोयल बोले 

कर्ण  सुनते  धुन  

मन मोहक  


कागा है  काला 

कोयल है  चतुर 

कोयल काली  


सुर  उसका 

मीठा है  मधुर है 

  कागा का नहीं 


                                           कोयल  काली  

                                           अपने अंडे देती  

                                               कौए के घर  


                                               है वह चंट 

चालाक बहुत है 

उड़ जाती है 



                                                   आशा 




 

21 नवंबर, 2021

इतना न झुकना

 

                 किसी के सामने न झुकना  

कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए 

यह तो शारीरिक व्यथा है

पर मन के कष्ट का क्या ?

कभी सोचा हो या नहीं तुमने  

मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो

किसी पर झुको या न झुको

या उसमें ही खो जाओ

 स्वाभिमान  ही भूल जाओ |

पर जब समय बीत जाएगा

कोसना न मन को अपने  

 कहना नहीं किसी ने बताया नहीं  

किसी के सामने इतना न झुकना  

कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए |

यह तो शारीरिक व्यथा है 

पर मन के कष्ट का क्या ? 

कभी सोचा या नहीं | 

मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो 

किसी पर झुको या न झुको 

या उसमें ही खो जाओ 

 स्वाभिमान ही भूल जाओ |

पर जब समय बीत जाएगा 

कोसना न मन को अपने  

 कहना नहीं किसी ने बताया नहीं 

कोई क्या समझाए कितना समझाए |   

घूमना न हर बार की तरह मुंह लटकाए 

ना ही दोष देना अपने आप को  

कभी कोई बात भी गंभीर हो सुन लेना मेरी 

मैं दुश्मन तो नहीं जो गलत बात करूंगी |

हूँ मित्र तुम्हारी जानों य न जानों  

मैं जिस्म हूँ और जान   तुम्हारी 

तुम मानो या न मानो पर मुझे एहसास है

तुम से दूर नहीं हूँ तुम्हें समझती  हूँ | 

किसी के सामने नत मस्तक न होना 

अडिग अपनी बातों पर रहना

 यही शोभा देता है  तुम्हें 

तुम जैसा मेरे लिए कोई नहीं है |

आशा  

    





    

19 नवंबर, 2021

कर्म या भाग्य

 


दुनिया देखी जब से  

भाँति  भाँति  के रंगों से नहाई

हर रंग जमाए अपनी धाक 

 शेष रंग रहे बेताव |

दिखा असंतोष उनमें आपस में  

वही करते रहे प्रलाप

 उनको कोई स्थान न मिला  

 यह कैसा न्याय मिला |

क्या यही समानता की है परिभाषा

जो मांगे सब मिल जाता है

यह कहा झूटा नहीं क्या? 

“बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख” |

है यह कैसा न्याय प्रभू

किसी को दिया धान  भर झोली 

किसी को केवल आशीर्वाद

 मेरे भाग्य में दोनो न थे

मैं रहा सदा खाली हाथ |

अक्सर कहा जाता कर्म प्रधान होता 

कोई कहता भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता 

मैं उलझा शब्दों की तलैया में

बाहर निकलने की राह न मिली |

वहां खड़ा हो सोच रहा कैसे बाहर आऊँ 

 जितनी बार यत्न किया

सर पटक कर रह गया

निकल न पाया भूलभुलैया में  से |

आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हूँ अधूरा तुम्हारे बिना


 

 कंचन काया देखी जब चिलमन से

 चेहरे पर मधुर मुस्कान लिए 

एक झलक देखने को तरसा  

नींद तक बैरी हुई मेरी |

जब भी पलकें बंद करता हूँ

तुम्ही नजर आने लगती हो

कभी यहाँ कभी वहां थिरकती

घूमती रहतीं मेरे आस पास |

मुझे जूनून सा  हो गया है

 तुम्हारी एक झलक देखने को  

 तुम्हें पाने को अपनाने को 

तुम पर अधिकार जताने का मन है |

अपने मन की सारी  बातें

तुमसे करने का तुमसे सलाह लेने का 

आज तक मैंने किसी को नहीं देखा

जो हो निष्पक्ष सलाहकार निर्णयकर्ता  

बात यदि कटु भी हो सही सलाह देती|

मुंह देखी बात नहीं करती  

हलकी सी मुस्कान से

मन को शांत कर देती   

बेचैन नहीं रहने देती  |

मेरा मन कहता है

 तुम बनी हो मेरे लिए    

  प्यार मुझसे ही करती हो

कह नहीं पाती तो क्या ?

समाज से जो बंधी हो |

अब जल्दी से आजाओ

मुझ से राह नहीं देखी जाती

सदा बेचैन किए रहती  

 हूँ अधूरा तुम्हारे बिना |

आशा