20 जनवरी, 2022

कब से बैठी राह निहारूं


 कब से बैठी राह निहारूं

 तुम्हारे आने की  

नयन थके द्वार देखते

हर आहट पर चोंक जाते |

 जाने तुम कब आओगे

कब तक तरसाओगे

ऐसा क्या गुनाह किया मैंने

जिसकी मुझे खबर नहीं |

यदि बता दिया होता

कुछ हल निकल ही आता  

अपनी त्रुटि जान  क्षमा मांगने से

 मन का बोझ  कम हो जाता |

चाहत ने मुझे डुबोया है

मुझे दुःख इस बात का है

 कि तुम भी  नहीं जानते   

किससे क्या अपेक्षा रही मेरी |

मुझे खुद ही पता चल जाता

जरासा इशारा तो किया होता

मैंने  अपनी कमियों को

 सुधार लिया होता|

 मैं अपने को अपराधी न समझती 

हुई जो भूल अनजाने में   

 उसके लिए ही क्षमा प्रार्थी हूँ

मैं सम्हल सम्हल कर पैर रखूँगी  |                                            

 मन की बात क्यों समझ न पाई  

तुम्हारी हर बात आँखे बंद कर मानना 

क्यूँ न हर बात में सहमती जताना

यही मेरी सजा होगी |

 अब जान लिया है मैंने

मेरा खुद का  कोई वजूद नहीं है

 पर तुम्हारे बिना भी मेरा

अपना कोई नहीं है |

आशा 



 


 

19 जनवरी, 2022

हाइकु (वसंत पंचमी )

 


ऋतु  वासंती

पहने पीले  वस्त्र 

आई धरती 


आया वसंत

मेरे अंगना में ही

भला लगता

 

पूजन किया

नैवेध्य बनाया है

बड़े स्नेह से

 

है  सरस्वती  

सब से प्रिय मुझे

कमलासनी

 

ऋतु  वासंती

 मोहक हवा चली

आसमान  में

 

 माँ सरस्वती

 तुम्हें अर्पण किया

दिल अपना

 

पीत वसन   

धारण कर लिए

मोहक लगे

 


ज्ञान दायनी  

मन को शुद्ध करे

माँ सरस्वती


वसंत पंच्मी

दिन सरस्वती का 

पूजन करो


है श्रद्धा भाव  

रचा बसा धरा के 

कण कण में  


पांच वर्ष में  

पट्टी पूजन हुआ  

शिक्षा प्रारम्भ 


                      आशा 

 

18 जनवरी, 2022

वादाखिलाफी


                                बड़े अरमां रहे तुम से

कि तुम पूरा करोगे

अधूरे अरमान उसके

 बीते कल में जो सजाए उसने |

पर तुम भूल गए  

न जाने कैसे हुए बेखबर

 उसके अरमानों से |

अब क्या सोचूँ

जब हम ने दूरी

 अपनाई उससे

वह समय बीता   

 फिसल गया हाथों से |

अब कोई चारा न बचा

तुमको क्या दोष दूं

मैं भी समय रहते

 याद दिला न सकी तुम को |

अब लगता है किसी से

कोई वादा न करो

जब तक पूरा करने की क्षमता न हो

यह वादा खिलाफी महंगी पड़ी उसे

बिना बात बढ़ चढ़ कर वादे करना

फिर उन्हें पूरा न करना

है यह कहाँ का न्याय बताओ |

हुआ यह गलत अफसोस है मुझे

मुझे पछतावा हो रहा

 तुम्हें हो या न हो

आगे से कोई ऎसी बात  न हो

जो दूसरे के लिए महत्व रखती हो

मेरा सीधा सम्बन्ध न हो जिससे

भूल से भी नहीं पडूँगी बीच में |

बड़ी नसीहत ली है मैंने

अपनी लापरवाही से आगे न बढूँगी  

तुम भी पीछे हट जाना

इसी में भलाई है दौनों की |

आशा 

17 जनवरी, 2022

सीमा पर तैनात

 



 हो सीमा पर तैनात 

तुम हो कर्तव्य पथ पर अग्रसर

सारी श्रद्धा से जुड़े

कर्म से निष्काम भाव से |

हो तैनात सीमा पर

हो समर्पित पूर्ण रूप से

अपने कार्य के प्रति

है यही प्रिय मुझे |

मुझे गर्व होता जब तुम

जीत को प्राप्त करते हो

पूरे मनोयोग से

प्राथमिकता  देकर उसे |

कोई शब्द नहीं मिलते

तुम्हारी दृढ इच्छा शक्ति के 

दिल से  वर्णन  के लिए

जब भी कोई कार्य हो

तुम्हारी सफलता के लिए |

 जो कार्य तुम्हें सौपा जाए

करते हो पूरी शिद्दत से

हो कर्तव्य प्रथम के अनुयाई

यही तत्परता मुझे भाई |

हमें गर्व है तुम्हारी सोच पर

तुमने सच्चा न्याय किया है

अपने चुने व्यवसाय से

कर्तव्य के प्रति निष्ठा रखने में |

दिल से नमन करते हैं

तुम्हें और तुम्हारी जननी को

तुमसे यही अपेक्षा रही

अपने कर्तव्य के प्रति |

आशा 

15 जनवरी, 2022

आज का परिवेश

 

 वर्तमान परिवेश में 

बहुत कुछ बदल रहा है

ना हम परम्परा वादी रहे

ना ही आधुनिक बन पाए |

हार गए यह सोच कर

 हम क्या से  क्या हो गए

किसी ने प्यार से पुकारा नहीं

हमने भी कुछ स्वीकारा नहीं मन से | 

 किसी बात को मन में चुभने से  

रोका भी नहीं गंभीरता से 

 विचार भी नहीं किया किसी को कैसा लगेगा

हमारे सतही व्यवहार का नजारा |

कोई क्या सोच रहा हमारे बारे में

इसकी हमें भी फिक्र नहीं  

यही है आज आपसी व्यवहार का तरीका

किसी से नहीं सीखा दिखावे का राज |

इस तरह के प्यार का तरीका

जब देखा दूसरों का आना जाना

मन का अनचाहे भी मिलना जुलना

चेहरे पर मुखोटा लगा

 घंटों वाद संवाद करना |

सभी जायज हैं

 आज के समाज में

हर कार्यक्रम में छींटाकसी करने में 

खुद को सबसे उत्तम समझने में |

सब का स्वागत करने के लिए 

मन न होने पर भी दिखावा करना 

दूसरे  के महत्त्व को कम जताना 

यही है आज का चलन | 

आशा 

 

                                                                                                             

 

13 जनवरी, 2022

मकर संक्रांति


 

त्राहि त्राहि मच रही है

इस सर्दी के मौसम में

पतंग तक उड़ा नहीं पाते

ना ही गुल्ली डंडा खेलते  |

घर में दबे महामारी के भय से 

जैसे ही कोई मित्र आए

मम्मी को पसंद नहीं आता

वह इशारे से मना कर देती |

छत पर जाने को पतंग उड़ाने को 

रंगबिरंगी पतंग काटने को 

मन मसोस कर रह जाते  

सोचा इस वर्ष नहीं तो क्या आगे जीवन पड़ा है| 

अभी बचपन नहीं गया है 

पर मन में खलिश होती रही  

सारा त्योहार ही बिगड़ गया

कुछ भी आनंद न आया |

 पतंग नहीं  उड़ाने में 

  तिल गुड़ खिचड़ी खाने में 

ना गए  मिलने मिलाने किसी से 

रहे घर में ही कोरोना  से बचने के लिए |

यही मन में रहा विचार 

सरकारी नियम पालना है जरूरी 

समाज में रहने के लिए 

अपने को निरोगी रखने के लिए |  

आशा  

12 जनवरी, 2022

हूँ कितनी अकेली


 

हूँ कितनी अकेली

अब तक जान न पाई

मेरे मन में क्या है

खुद पहचान नहीं पाई |

मेरा झुकाव किस ओर है

यही ख्याल हिलता डुलता रहा

 स्थाईत्व नहीं आया मेरे सोच में

 अपने को स्थिर नहीं कर पाई  |

मैं क्या हूँ? क्या चाहती हूँ ?

ना  मैं समझी न किसी ने समझाया   

तभी मनमानी करना ही पसंद मुझे 

मन की ही करती हूँ जिद्दी हो गई  हूँ |

अब लग रहा है कहीं असामाजिक

तो नहीं हो गई हूँ

अपने में कोई बदलाव न कर  

खुश नहीं हूँ फिर भी |

क्या कोई तरकीब नहीं जिससे

समय के साथ चल पाने से

मन को सुकून मिल पाएगा  

खुशी आएगी खुद को सामाजिक बना लेने से |

आशा