26 जनवरी, 2022

कर्तव्य निष्ठ


 

किया जब इकरार किसी से

उसे पूरा करना है तन मन से

यही सीखा है अपने अनुभवों से  

  किसी  पर बोझ न बनना   |

 कर्तव्य पूर्ण करो निष्ठा से

यही समर्पण तुम्हें सफलता देगा  

जो भी मिलेगा तुमसे

 हल्कापन महसूस करेगा खुद में |

अपार शान्ति होगी उसके मन मंदिर में

यही कार्य होते हैं परोपकार के

यही शिक्षा मिली है समाज से

 तुम क्यों रहे हो  दूर इससे |

 निष्ठा है आवश्यक परोपकार के लिए

दिखावे से कुछ न होगा

जब इसपर कदम रखोगे

सफल होते जाओगे |

लोग तुम्हें नाम से जानेगे

तुम्हारे काम से जानेगे

सफल व्यक्तित्व के धनी होगे

उससे ही पहचाने जाओगे |

कार्य जो हाथ में लिया हो

जब पूरा होगा तुम्ही पहचान बनोगे  

उसी सफलता के धन से  

तुम  ही पहचाने जाओगे |

आशा

25 जनवरी, 2022

हाइकु


 

वह हारा है

 जब की मनमानी

अपनों ही से

 

पर्वत ऊंचा   

पूरी आस्था खुद पे

चढ़ पाऊंगा

 

चंचल नहीं

रही गंभीर सदा

पर सफल  

 

कैसा हंसना

अजी है रोना कैसा

यहीं रहना

 

छलका जल

चली है चाल तेज

गगरिया से

 

चली कामिनी

लहराती चूनर

नयन झुका

 

बंधन मुक्त

हुआ यहीं उन्मुक्त

खुले व्योम में

आशा  

22 जनवरी, 2022

आज है मन उदास उसका


 

              आज है उसका मन  उदास

               किस कारण जान न पाई

                किसी ने कुछ कहा नहीं

ना उसने किसी से पाला बैर |

दो बोल प्यार के भी कड़वे लगते  

ऐसा भी होता है  कभी सोचा नहीं

अब इतनी उग्रता आई  कैसे 

आया मन में दुराग्रह क्यूं किस लिए |

 यही अर्थ समझ में आया

जब उसने स्नेह जताया था

तब कोई महत्व नहीं था उसका

जितनी बार किया ध्यान आकर्षित

उतनी ही बार नकारा गया उसको  |

यही   समझ में आया

कोई जगह नहीं थी रिक्त

उसके मन मस्तिष्क में |

अब है केवल एक दिखावा

पहले घुमते खाते थे

 एक साथ रहते थे

 हर बात सांझा  करते थे |

अब यह बात नहीं रही है

 छल कपट ने ले लिया है स्थान  

 पहले की प्रेम भरी बातों का

सब दिखावा है सत्यता कुछ भी नहीं |

आशा

 

 

21 जनवरी, 2022

आज की राजनीति




 

कब तक यही होता रहेगा

केवल बातों से कुछ न होगा  

बहसवाजी का कोई हल नहीं 

कार्य करेंगे तभी कुछ होगा|

मुद्दे क्या हैं  हल क्या हो उनका 

आज तक स्पष्ट न हो पाया 

राजनीति का स्तर इतना गिरा कि  

अब बहस सुनना तक

सहन होना मुश्किल हुआ 

कोई अर्थ नहीं निकलता |

 अपशब्दों का प्रयोग सामान्य हुआ     

अब वे  आशीर्वाद जैसे दिए जाते हैं

बेपैंदे के लोटे हैं आज  के नेता

जिस ओर दम हो वहीं लुढ़क जाते हैं |

ना कोई उसूल उनके बारबार पार्टी बदलते 

ना ही किसी के अंध भक्त

  एक पार्टी में शामिल होते फिर पाला  बदलते |

प्रजातंत्र हुआ खोखला 

मंच पर भाषण शोर में बदले 

लोकतंत्र भीड़तंत्र  कब हुआ  कैसे हुआ

ऐसा अंधड़ आया कैसे ज्ञात नहीं | 

  आशा

सलाह यदि अच्छी हो


 

किसी का कहा न मान कर

जीवन को भार बना लिया

की अपने  मन की

 अब कष्ट में हूँ  |

किसी की सलाह यदि अच्छी हो

जीवन सफल बना देती  

सही मार्ग दिखा कर

उसकी उलझने मिटा देती |

पहले कसम खाई थी

किसी का कहा न मानूंगी

इसका विपरीत प्रभाव हुआ

मन में  बड़ा विचलन  हुआ |

हर बात मानूं या न मानूं

कोई बाध्यता नहीं किसी की    

पर है यह समझ का फेर

जिस ओर चाहे ले जाए मुझे  |

सच्चा मित्र वही है जो

सीधी सच्ची राह दिखाए

मार्ग से भटकने न दे

  अपनी ओर से पूरी कोशिश करे |

अब मैंने समझ लिया है

 मेरी भलाई है किस में

अपना भला बुरा समझती हूँ

यह अंध भक्ति नहीं है |

आशा     

20 जनवरी, 2022

कब से बैठी राह निहारूं


 कब से बैठी राह निहारूं

 तुम्हारे आने की  

नयन थके द्वार देखते

हर आहट पर चोंक जाते |

 जाने तुम कब आओगे

कब तक तरसाओगे

ऐसा क्या गुनाह किया मैंने

जिसकी मुझे खबर नहीं |

यदि बता दिया होता

कुछ हल निकल ही आता  

अपनी त्रुटि जान  क्षमा मांगने से

 मन का बोझ  कम हो जाता |

चाहत ने मुझे डुबोया है

मुझे दुःख इस बात का है

 कि तुम भी  नहीं जानते   

किससे क्या अपेक्षा रही मेरी |

मुझे खुद ही पता चल जाता

जरासा इशारा तो किया होता

मैंने  अपनी कमियों को

 सुधार लिया होता|

 मैं अपने को अपराधी न समझती 

हुई जो भूल अनजाने में   

 उसके लिए ही क्षमा प्रार्थी हूँ

मैं सम्हल सम्हल कर पैर रखूँगी  |                                            

 मन की बात क्यों समझ न पाई  

तुम्हारी हर बात आँखे बंद कर मानना 

क्यूँ न हर बात में सहमती जताना

यही मेरी सजा होगी |

 अब जान लिया है मैंने

मेरा खुद का  कोई वजूद नहीं है

 पर तुम्हारे बिना भी मेरा

अपना कोई नहीं है |

आशा 



 


 

19 जनवरी, 2022

हाइकु (वसंत पंचमी )

 


ऋतु  वासंती

पहने पीले  वस्त्र 

आई धरती 


आया वसंत

मेरे अंगना में ही

भला लगता

 

पूजन किया

नैवेध्य बनाया है

बड़े स्नेह से

 

है  सरस्वती  

सब से प्रिय मुझे

कमलासनी

 

ऋतु  वासंती

 मोहक हवा चली

आसमान  में

 

 माँ सरस्वती

 तुम्हें अर्पण किया

दिल अपना

 

पीत वसन   

धारण कर लिए

मोहक लगे

 


ज्ञान दायनी  

मन को शुद्ध करे

माँ सरस्वती


वसंत पंच्मी

दिन सरस्वती का 

पूजन करो


है श्रद्धा भाव  

रचा बसा धरा के 

कण कण में  


पांच वर्ष में  

पट्टी पूजन हुआ  

शिक्षा प्रारम्भ 


                      आशा