27 जनवरी, 2022

बेटी आई


 

आई खुश खबरी 

 मन हुआ उत्फुल्ल  

जब बेटी आई घर में

 बहार आई जीवन में |

जब घुटनों चली 

चलना सीखा, खुद खड़ी हुई

 अपनी चाह बताने को 

फरमाइश भी खुद ही करने लगी |

एक दिन भेजा उसके पापा को

 बाजार सौदा लाने को

वे ले आए पायलें जो छमछम बोलें  

जब बजें कान में रस घोलें |

वह ठुमक ठुमक कर चलने लगी

घुघरुओं की खनक  

सुनाई देती आँगन में   

 मन मोर सा नाचने लगता उसे देख |

किसी ने कहा

 यह तो है पराया धन

पर मन बोला नहीं है वह पराया धन

वह  तो है  लक्ष्मीं घर की  |  

वही  हैं  बडभागी

जिनके घर बेटी जन्म लेती 

सभी बधाई देते

मिठाई बांटी जाती खुशिया मनाई जातीं |  

जब बेटी पढेगी लिखेगी

सर्वगुण सम्पन्न बनेगी  

उसके गुणों की चर्चा सर्वत्र होगी |

जब व्याही जाएगी 

 एक नहीं दो कुल की मर्यादा निभाएगी  

सर हमारा गर्व से उन्नत होगा 

 यही हमें पुरूस्कार मिलेगा |

आशा 

26 जनवरी, 2022

है आज गणतंत्र दिवस


 

है आज गणतंत्र दिवस  

तिरंगा झंडा तिरंगा फहराने का दिन  

स्वतंत्रता के जश्न को मनाने का दिन 

सभी धूमधाम से मिलजुल कर

यह जश्न मनाते

 इसका महत्व समझते समझाते 

बीते दिन याद करते | 

गलतियां ना दोहराने का वादा लेते

देश को उन्नति के शिखर पर

पहुंचा कर ही दम लेगे कहते 

सी वादे को पूरा करके दिखाएगे |  

कभी पीछे न हटेंगे

प्रति वर्ष की तरह इसे दिल से मनाएंगे

कुछ नया कर के दिखाएंगे 

स्वतंत्र देश के हैं नागरिक |

हैं नौनिहाल भारत के 

भविष्य के कर्णधार देश के 

अपनी शक्ति को पहचान दिलाएंगे 

अपनी कार्य कुशलता  दिखाएंगे |

 जय जय भारत के नारे लगाएंगे 

 कार्य की गुणवत्ता को बनाए रखेंगे 

अपने बीते कल को याद करेंगे 

स्वर्णिम भारत की पहचान बढ़ाएंगे | 

आशा

कर्तव्य निष्ठ


 

किया जब इकरार किसी से

उसे पूरा करना है तन मन से

यही सीखा है अपने अनुभवों से  

  किसी  पर बोझ न बनना   |

 कर्तव्य पूर्ण करो निष्ठा से

यही समर्पण तुम्हें सफलता देगा  

जो भी मिलेगा तुमसे

 हल्कापन महसूस करेगा खुद में |

अपार शान्ति होगी उसके मन मंदिर में

यही कार्य होते हैं परोपकार के

यही शिक्षा मिली है समाज से

 तुम क्यों रहे हो  दूर इससे |

 निष्ठा है आवश्यक परोपकार के लिए

दिखावे से कुछ न होगा

जब इसपर कदम रखोगे

सफल होते जाओगे |

लोग तुम्हें नाम से जानेगे

तुम्हारे काम से जानेगे

सफल व्यक्तित्व के धनी होगे

उससे ही पहचाने जाओगे |

कार्य जो हाथ में लिया हो

जब पूरा होगा तुम्ही पहचान बनोगे  

उसी सफलता के धन से  

तुम  ही पहचाने जाओगे |

आशा

25 जनवरी, 2022

हाइकु


 

वह हारा है

 जब की मनमानी

अपनों ही से

 

पर्वत ऊंचा   

पूरी आस्था खुद पे

चढ़ पाऊंगा

 

चंचल नहीं

रही गंभीर सदा

पर सफल  

 

कैसा हंसना

अजी है रोना कैसा

यहीं रहना

 

छलका जल

चली है चाल तेज

गगरिया से

 

चली कामिनी

लहराती चूनर

नयन झुका

 

बंधन मुक्त

हुआ यहीं उन्मुक्त

खुले व्योम में

आशा  

22 जनवरी, 2022

आज है मन उदास उसका


 

              आज है उसका मन  उदास

               किस कारण जान न पाई

                किसी ने कुछ कहा नहीं

ना उसने किसी से पाला बैर |

दो बोल प्यार के भी कड़वे लगते  

ऐसा भी होता है  कभी सोचा नहीं

अब इतनी उग्रता आई  कैसे 

आया मन में दुराग्रह क्यूं किस लिए |

 यही अर्थ समझ में आया

जब उसने स्नेह जताया था

तब कोई महत्व नहीं था उसका

जितनी बार किया ध्यान आकर्षित

उतनी ही बार नकारा गया उसको  |

यही   समझ में आया

कोई जगह नहीं थी रिक्त

उसके मन मस्तिष्क में |

अब है केवल एक दिखावा

पहले घुमते खाते थे

 एक साथ रहते थे

 हर बात सांझा  करते थे |

अब यह बात नहीं रही है

 छल कपट ने ले लिया है स्थान  

 पहले की प्रेम भरी बातों का

सब दिखावा है सत्यता कुछ भी नहीं |

आशा

 

 

21 जनवरी, 2022

आज की राजनीति




 

कब तक यही होता रहेगा

केवल बातों से कुछ न होगा  

बहसवाजी का कोई हल नहीं 

कार्य करेंगे तभी कुछ होगा|

मुद्दे क्या हैं  हल क्या हो उनका 

आज तक स्पष्ट न हो पाया 

राजनीति का स्तर इतना गिरा कि  

अब बहस सुनना तक

सहन होना मुश्किल हुआ 

कोई अर्थ नहीं निकलता |

 अपशब्दों का प्रयोग सामान्य हुआ     

अब वे  आशीर्वाद जैसे दिए जाते हैं

बेपैंदे के लोटे हैं आज  के नेता

जिस ओर दम हो वहीं लुढ़क जाते हैं |

ना कोई उसूल उनके बारबार पार्टी बदलते 

ना ही किसी के अंध भक्त

  एक पार्टी में शामिल होते फिर पाला  बदलते |

प्रजातंत्र हुआ खोखला 

मंच पर भाषण शोर में बदले 

लोकतंत्र भीड़तंत्र  कब हुआ  कैसे हुआ

ऐसा अंधड़ आया कैसे ज्ञात नहीं | 

  आशा

सलाह यदि अच्छी हो


 

किसी का कहा न मान कर

जीवन को भार बना लिया

की अपने  मन की

 अब कष्ट में हूँ  |

किसी की सलाह यदि अच्छी हो

जीवन सफल बना देती  

सही मार्ग दिखा कर

उसकी उलझने मिटा देती |

पहले कसम खाई थी

किसी का कहा न मानूंगी

इसका विपरीत प्रभाव हुआ

मन में  बड़ा विचलन  हुआ |

हर बात मानूं या न मानूं

कोई बाध्यता नहीं किसी की    

पर है यह समझ का फेर

जिस ओर चाहे ले जाए मुझे  |

सच्चा मित्र वही है जो

सीधी सच्ची राह दिखाए

मार्ग से भटकने न दे

  अपनी ओर से पूरी कोशिश करे |

अब मैंने समझ लिया है

 मेरी भलाई है किस में

अपना भला बुरा समझती हूँ

यह अंध भक्ति नहीं है |

आशा