20 फ़रवरी, 2022

हाइकु


 

१-कहीं जाने में

बुराई क्या हुई है

जान न पाई

२-कितनी बाधा

रोकटोक सब की

मैं क्या सोचती 

३- रहूँ सतर्क 

किसी पर विश्वास

रखूँ न रखूँ

४-वो एक दिन

हो जाएगी समाप्त

 मृत्यु के साथ 

५- काला कागला

बैठ कर छत पे

किसे बुलाता

६-कोयल काली

मधुर कंठ वाली

मन रिझाती

७-मेरा है गीत 

लगता प्यारा मुझे

 सुनो  न सुनो  

आशा

किसी के छद्म प्यार में


 

किसी के छद्म प्यार में

मन उसका ऐसा उलझा   

कोई हल न सूझा अब कहाँ जाए

दिल की सुने या मस्तिस्क की |

अब पछता रही है

उसे वह समझ न पाई

अब जान गई था वह एक छलावा 

उस भूल पर कैसे पर्दा डाले |

मन बहुत दुखी हुआ है

पैर पीछे नहीं लौटते

अब कहीं की न रही

यह किससे कहे |

जब पैर डगमगाए थे 

किसी ने चेताया नहीं

ज़रा भी समझाया नहीं

डूबी जब पंक में किसी ने बचाया नहीं |

समय हाथ से फिसल गया 

अब हाथ न आएगा

नष्ट हुई वह किस हद तक

 कोई भी जान न पाएगा |

अपनी गलती का एहसास है उसे

यह वह किस मुंह से कहे

 अपने आप पर शर्मिन्दा है

यह भी नहीं कह पाती किसी से |

वह मन से बहुत  दुखी है

यह भूल नहीं पाती पछताती है   

यही बात बारम्बार मन को सालती रहती 

कोई न मिला जो उसे समझे समझाए |

आशा 

           

19 फ़रवरी, 2022

स्वप्न एक रात का


 

 रात को एक दृश्य देखा 

प्रकृति के सानिध्य में 

चांदनी रात थी 

झील भी पास थी |

 मन ने नियंत्रण खोया

बेलगाम भागा उस ओर 

जहां जाने को नौका रुकी थी 

 उस दिन भी  चांदनी रात थी |

नीला जल झील का

 लुकाछिपी खेलता 

 उसमें थिरकती छवि चाँद की

 मन  मोहक लगती 

अपनी ओर आकृष्ट करती |   

झील के उस पार छोटा सा 

 था मंदिर भोले नाथ का 

वहां पहुँच दर्शन करना

उस में ही खो जाना 

था उद्देश्य उसका  |

जाने कैसे देर हो गई

 उस दृश्य को आत्मसात में 

चाँद की छवि खेल रही थी 

उत्तंग तरंगों से चांदनी रात में |

वह दृश्य भुला नहीं पाई अब तक  

जब भी नेत्र बंद करती 

छवि वही नैनों में उभरती |

जब मंदिर में कदम रखे

अनोखी श्रद्धा जाग्रत हुई  

जल चढ़ाया पूजन अर्चन किया

प्रसाद चढ़ाना ना भूली |

सुकून मिला जो  मन को है याद उसे 

 चांदनी रात में प्रभु के दर्शन की   

 बारम्बार याद आती है छवि वहां की   

  जो मन में बसी है आज भी   |

आशा

18 फ़रवरी, 2022

परिवर्तन



 

आज के युग में  

बहुत कुछ बदल गया 

             उनके सोच में 

 बड़ा परिवर्तन हुआ है |

उनने भी यह जानना नहीं चाहा

यह बदलाव क्यूँ ?

हुआ यह कैसे किसकी सोहवत में

यह तक न सोचा |

ऎसी आधुनिकता की हवा चली  

उसमें बह कर कहाँ चले जान न पाए 

 आज   के मंजर की झलक चहु ओर फैली है

पहले क्या थे यह तक भूल गए |

धधकती आग सी मन बेचैन करती

बरसों की शिक्षा व्यर्थ हुई आज 

केवल अंधानुकरण ही रहा शेष

आज के युग में |

मन में क्षोभ होता है दिल कसकता है 

हमारे पालन पर जब सवाल उठते हमने 

अति  अनुशासन में रखा बच्चों को

बचपन उनका छींन लिया |

आज वे यह तक भूले

 पेट काट काट पाला था उन्हे

सीमित आय थी तब भी

हम अपनी मर्यादा में रहे |

धनवानों की सोहवत नहीं की

अपनी चाहतों पर  रखा नियंत्रण  

पर उनके लिए कोई कमी नहीं की     

केवल आज की तरह कर्ज में न डूबे |

आधुनिकता का भूत न उतरा सर से 

अपनी क्षमता की सीमा न भूले

आत्मनिर्भर बनाया अपने कर्तव्य पूरे किये    तभी चिंता मुक्त हुए  |

आशा   

धरोहर यादों की


 

इस छोटे से जीवन के सभी लम्हें

अपनी यादे छोड़ जाते

वे ही होते संचित धरोहर जीवन के

कोई नहीं बचता जिससे |

होती यादें वेशकीमती 

कोई इसे भुलाना न चाहता

हैं एकांत बिताने की हसीन सामग्री

कई सलाहें शिक्षाएं समाहित होतीं इन में |

 फिर रिक्तता  नहीं रहती जीवन में

  जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर ठहरते

 होते अपनों से दूर उन्हें याद करते  

यादों में सब धूमते रहते आसपास |

कभी एहसास तक न होने देते   

कहाँ गलती हुई हम से

यदि यही सब जानते मन मंथन करते  

कठिनाइयां सरलता से सुलझ पातीं  |

 क्षमा प्रार्थी होते अपनी भूलों पर पशेमा होते   

 सीमाएं अपनी जान कर अपनी हद में रहते

 असामाजिक न होते किसी से बैर न पालते

हमारी भी खुशहाल जिन्दगी होती |

यही धरोहर पीढ़ियों तक चलती

भूलें जो हमसे हुईं आने वाली पीढ़ी न करती

हम ऐसी शिक्षा  देते कि

अनुकरण की मिसाल बनते

वर्षों तक याद किये जाते |

आशा 

16 फ़रवरी, 2022

आत्म मंथन


 

इस छोटे से जीवन के लम्हें

अपनी यादे छोड़ जाते

वे होते संचित धन जीवन के

कोई नहीं बचता जिससे |

होती यादें वेशकीमती अनमोल  

कोई इन्हें  भुलाना न चाहता

हैं एकांत बिताने की प्यारी सी सामग्री

कई सलाहें शिक्षाएं समाहित होतीं इन में |

 फिर रिक्तता  नहीं रहती जीवन में

  जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर ठहरते

 या होते अपनों से दूर उन्हें याद करते  

यादों में सब धूमते रहते आसपास |

कभी एहसास तक न होने देते   

कहाँ गलती हुई हम से

यदि यही सब जानते आत्म मंथन करते  

कठिनाइयां सरलता से सुलझ पातीं  |

 क्षमा मांगते अपनी भूलों का करते आकलन        सीमाएं अपनी जान अपनी हद में रहते

 असामाजिक न होते किसी से बैर न पालते

हमारी भी खुशहाल जिन्दगी होती |

यही धरोहर पीढ़ियों तक चलती

भूलें जो हमसे हुईं आने वाली पीढ़ी न करती

हम ऐसी शिक्षा  देते कि

अनुकरण की मिसाल बनते

वर्षों तक याद किये जाते |

आशा  






चंद पंक्तियाँ कविता की

 


कविता की चन्द पंक्तियाँ

करतीं बेचैन मन उलझी लटों सी

कहने  को है चंद पंक्तियाँ

पर बड़ा है पैना वार उनका  |

खुले केश हों और उलझी लटें

फिर क्या कहने उनके

सुलझाए न सुलाझतीं

समय की कीमत न समझतीं |

मुझे यह बात  उलझाए रखती

आखिर कैसे यह गुत्थी सुलझे

अधिक समय व्यर्थ न हो

इतने जरासे काम में 

जब भी कोशिश करती सुलझाने की 

और अधिक ही उलझन होती 

खीचातानी के सिवाय बात न बनाती 

जैसे ही बात बनती 

 एक नई कविता जन्म लेती |

आशा