05 अप्रैल, 2022

भाग्य


                भाग्य का सितारा

न जाने कब चमकेगा

कितने योग आए राशी में

सितारों में चमक दिखलाते |

 सच की परिक्षा में

एक भी सफल न हुआ

बड़ी बड़ी भविष्यवानियाँ सुनी

पर एक भी सही न निकली |

कुछ भी विश्वास योग्य नहीं

भाग्य के सितारे कहाँ खोगये

जानने  पर असंतोष के सिवाय

कुछ न मिला जब परिणाम सामने आया |

कुछ भी हांसिल न हुआ

भाग्य ने साथ अब भी न दिया

मन तिलमिला कर रह ग़या |

ऎसी भविष्वाणी किस काम की

जिसने झुठे स्वप्न दिखाए

दिन में चमकते सितारे दिखा

मन को दिग भ्रमित किया |

 ईश्वर की इच्छा यही थी

अब किसी से कोई शिकायत नहीं

भाग्य भी प्रभू ने बनाया है

कोई बदल नहीं पाया उसे |

आशा

 

 

 

 

03 अप्रैल, 2022

आत्म विश्वास मेरा अटूट


मैं जा रही अपना जीवन जीने

खुद का विश्वास लिए दामन में

किसी से कोई शिकायत नहीं है मुझे

किसी का एहसान नहीं लिया है मैंने |

मैं गलत नहीं हूँ जानती हूँ

तभी हर बात किसी की

आँखें बंद कर मानती नहीं

यही कमीं रही मुझ में

पर क्या करूं अपने आप को कैसे सुधारूं |

मुझमें हैं अनगिनत कमिया

यह भी पता है मुझको

मैं कोई भगवान् नहीं हूँ कि

सभी कार्य बिना गलती करती जाऊं |

अपने आप निदान खोजने में जुटी हूँ

मेरा कोई मददगार नहीं है

मझे खुद ही निवटना होगा इनसे

पर न जाने क्यों अपने आप में सिमटी हूँ |

कभी दुविधा भी होती है

हर काम किसी सहायता के बिना करने में

पर हूँ सक्षम आत्मविश्वास से भरी हूँ

यदि मन में ठान लिया पूरा कर के ही दमलूंगी||

आशा


 

 



02 अप्रैल, 2022

वात्सल्य


 

तुम्हारा आँचल ममता का साया उसका

जब तक  रहता उसके सर  पर

 उसकी उम्र बढ़ जाती

 जीवन में खुशियाँ आतीं |

 प्यार दुलार तुम्हारा उस पर 

जब होता  न्योछावर 

 गर्व का अनुभव उसके मन को होता  

 यही बचाए रखता उसे 

 दुनिया के प्रपंचों से|

जब वह उलझता 

किसी समस्या में 

 तुम्हारा आँचल सर पर होता 

उसकी  रक्षा करता |

 वात्सल्य तुम्हारा  कूट कूट कर

भर जाता उसकी रगों  में

देता साथ जन्म जन्मान्तर तक

वही  सहायक  होता जीवन भर |

है वही  इंसान धनी जिसे

 माँ की छत्र छाया मिले

 वह भूखा  कभी नहीं  सोये

पर माँ का वात्सल्य मिले |

                     आशा 

01 अप्रैल, 2022

सायली छंद (५)

 

१-क्यों

मिलाए  है

नैनों से नैन

 जब चाहा

नहीं

२- वह  

नहीं चाहता

कोई उससे  मिले

करे अशांत

मुझे |

 

 

३-समंदर

है अनुपम   

गहराई नापी नहीं

अपनाई जाती  

उसकी |

४-मुझे

तुमसे भी  

कोई बैर नहीं  

मुझसे प्रेम

करोगे |

 ५-खोई  

भवसागर  में   

माया मोह से   

निकली  नहीं

अभी  |

६-ख़याल

मुझे अपना

आया नहीं कभी

यह क्या

हुआ |

७- नहीं 

आत्मनिर्भर हुए  

हैं स्वतंत्र नागरिक 

नहीं परतंत्र 

हम  


आशा


समंदर


 हे समंदर हे जलनिधि

छिपी है अपार संपदा तुम में
कितने जीवों के हो रक्षक
यहीं उनका बसेरा होता |
अपार जल समाया है तुम में
हो तुम उसके के संरक्षक
यूँ जल कभी उद्वेलित नहीं होता
पर जब लांघता अपनी सीमाएं
क्रोधित हो बहुत क्षति पहुंचाता |
रूप तुम्हारा भयावय होता
जब कोई इस प्रपंच में फँस जाता
तुम्हारे अवगुण नजर आने लगेते उसे
गुणों को वह भूल जाता |
तुम जन्मदाता बादलों के
जो उड़ते व्योम में वाहक भाप के
जब मौसम में ठंडक होती
वर्षा बन कर बरसते |
वे कहाँ से आते यदि तुम नहीं होते 
हो कितने आवश्यक सृष्टि के लिए
तुम नहीं जानते या किसी को जताते नहीं
सृष्टि के लिए हो वरदान प्रभू का
या बड़ी नियामत उसकी  |इसे बार बार दिखाते |
पर अपनी महत्ता बताने की जगह
अपने विभिन्न रूप दिखा करअपना महत्व समझाते 
तुम बिन कैसे सृष्टि परवान चढ़ती
कैसे फलती फूलती विकसित होती
यही बात यदि समझा पाते बारम्बार तुम पूजे जाते |
हो तुम खारे जल के रक्षक
कोई नहीं भूल पाता उसे
प्यासा जब पास आता तुम्हारे
अपनी प्यास नहीं बुझा पाता
प्यासा ही रह जाता |
आशा सक्सेना 

31 मार्च, 2022

परछांई

 




भरी धूप में 

सूर्य की गर्मीं सर पर

तुम्हारी परछाईं  चलती

 कदमों में तुम्हारे

जैसे ही आदित्य आगे बढ़ता

 परछाईं भी बढ़ती आगे 

पर साथ कभी ना छोड़ती 

शाम को वह भी घर आती साथ तुम्हारे

तुम सोते वह भी सो जाती

तुम में विलीन हो जाती |

काश मैं तुम्हारी परछाईं बन पाती

अपने भाग्य को सराहती

 तुम्हें अपने करीब पा कर

सभी ईर्ष्या करते मेरे भाग्य से |

मुझे है पसंद रहना करीब तुम्हारे   

परछाईं बन कर साथ रहना तुम्हारे 

कम ही लोग होते इतने भाग्यशाली 

तुमसे जुड़े रहते साथ जन्म जन्मान्तर तक|

आशा

30 मार्च, 2022

हाल मेरे मन का


 

मेरा मन चंचल पारद जैसा

कभी स्थिर नहीं रहता

सदा थिरकता रहता

रखता सदा व्यस्त खुद को  |

कभी इधर उधर झांकता नहीं 

चाहता कुछ ऐसा करना

जो किसी ने किया न हो  

हो नया चमकता पारे सा |

हूँ  प्रयत्नरत उसे चुनने में  

 खुद की छवि चमकाने में

खुद को पारद सा 

उपयोगी बनाने में |

 अनगिनत गुण दिखाई देते पारद में 

वह पूजा जाता पारद प्रतिमा बना कर  

 सुन्दर सा शिवलिंग  बना कर पुष्पों से 

बहुत उपयोगी होता दवाइयों में|

पर बुराई भी कम नहीं उसमें 

  स्थिरता नहीं उसमें यहाँ वहां थिरकता  

भूल से यदि खा लिया जाता

भव सागर से मुक्ति की राह दिखाता

यही बुराई  दिखी मुझे इसमें |

खुद की कमियाँ

 मुझे भी दिखाई देती है

पर दूरी  उनसे बनी रहे

यही कामना करती हूँ |

मेरा मन स्थिर हो जाए अगर

मुझे सफलता मिल जाएगी

हर उस कार्य में

 जिसकी तमन्ना है मुझे |

मन की एकाग्रता है आवश्यक

चंचलता नहीं पारद जैसी

गुण उसके हैं अद्भुद 

उन जैसी चाह है मेरी |

मैं किसी की निगाहों में 

गिरना नहीं चाहती

कर्तव्यों का ख्याल रख पाऊँ

ऐसा विचार रखती हूँ |

आशा