भोर हुई बीती रात्रि
प्रातःनीलाम्बर में लाली छाई
आदित्य ने ली अंगड़ाई
वहां की रौनक बढ़ाई |
मानव समूह जागा नित्य की तरह
अपने कार्यों की ओर रुख किया
जल्दी से धर के कामों को किया
अवधान कार्य करने में लगाया |
टीका टिप्पणी का किसी को अवसर न दिया
मन की प्रसन्नता की सीमा न रही
जब सफलता ने कदम चूमें
और भूरि भूरि प्रशंसा मिली |
अब सोच लिया कार्य में संलग्न हुई
तीव्र गति से कार्य पूर्ण किया
गंतव्य तक पहुंचाया
जिस कार्य को अंजाम दिया |
कभी असफलता का मुंह न देखूं
हार मुझे मंजूर नहीं यही मुझे दरकार नहीं
बिना बात क्यों आंसू बहाऊँ
किसी के मन को दुःख पहुँचाऊँ |
आशा