कुछ तुमने कहा
कुछ देखा सुना मैंने
तीसरे ने सुना अनसुना किया
चौथे ने कुछ और ही अर्थ लगाया |
अर्थ का अनर्थ हो गया
कारण कोई और नहीं था
केवल लापरवाही थी
मन से सुनना न चाहा |
यही बात मुझे सालती है
बहुत व्यथित हो जाती हूँ
मेरा तुम्हारा क्या कोई महत्व नहीं
इस तरह नकार दिया जाता है हमें
मानो हम कुछ जानते न हों |
आज का हवाला बारबार दिया जाता है
इसको आदर्श मान अकारण बहस की जाती है
जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता
सिवाय समय की बर्बादी के |
यदि हम जो चाहते थे सुन लिया होता
तब क्या गलत होता कुछ छोटे न हो जाते
या उनकी आधुनिकता में कमी आ जाती
क्या आज के समाज में वे पिछड़ जाते |
समझ नहीं आता आज का अनुकूलन
पहले क्या लोग जीते नहीं थे
पर पहले संस्कार अधिक थे
दिखावे को कोई स्थान नहीं था |
आशा