16 जुलाई, 2022

तुम रणछोड़ निकले

 


जीवन भार सा हुआ जाता 

तुम्हें न पाकर यहाँ

किया क्या है मैंने

मुझे बताया तो  होता |

कोई  समाधान निकलता

मन ही मन जलने कुढ़ने से

 क्या हल निकलेगा

कभी सोच कर देखो |

क्या तुमने सही निर्णय लिया

घर से बाहर कदम बढ़ा कर

एक गलत आदत को अपना कर

क्या मिसाल कायम की तुमने |

कायर हो कर घर छोड़ा

कर्तव्यों से मुंह मोड़ा

क्या यह उचित किया तुमने

अपने मन के अन्दर झांको |

फिर सोचो क्या यह

 सही निर्णय था तुम्हारा

 तुम निकले पलायन वादी

समस्याओं से भाग रहे |

हो तुम कायर न हुए जुझारू

 समस्या वहीं की वहीं  रही

उसे बिना हल किये

तुम भाग निकले रणछोड़ से |

आशा 

15 जुलाई, 2022

जीवन की गाड़ी



तुम मौन हुए  वह  हुई मुखर 
सारी सीमाएं लांघी  संस्कारों की 
सारे बंधन तोड़ दिए की मनमानी 
आगे क्या होगा न सोचा उसने |
नहीं की चिंता आने वाले कल की 
हुई गलत फहमी उसे
 कि वह है सर्वे सर्वा घर की 
यह है गरूर उसका या सोच आज का  |
जो कुछ हुआ गलत हुआ है 
दौनों को जिल्लत के सिवाय कुछ न मिला 
वह हुई खुश झूठी  शान में आई 
अपने स्वर्ग को ही उसने आग लगाई |
कर्तव्य से मुंह उसने मोड़ा 
तुम्हारे सर पर मटका फोड़ा 
अब जब पटरी से गाड़ी उतरी 
क्या करती मुंह छिपाया भागी घर से |
जितने मुंह उतानी बातें 
सुन मन मेरा  जार जार रोया 
भगवान् से की प्रार्थना 
दे सदबुद्धि उसे घर न तोड़े |
न जाने कब गाड़ी पटरी पर आएगी 
घर की शान्ति  बापिस  आएगी
कुछ तुम समझो समझोता करो 
यही है सलाह मेरी मन का शक दूर करो |
आशा 




12 जुलाई, 2022

हाइकु


१-भरे दो नैन  

तेरा उत्साह देख  

 बह निकले 

२- मन ने सोचा

नृत्य तेरा देख के

 तू गुणी है

३-छलके अश्रु

गर्म  जल धारा से 

हुई  विभोर

४-आज की नारी

है सक्षम सफल

अक्षम नहीं 

५-मोहताज है

बस तेरे प्यार की

  नहीं विवश 

६-मांग आज की   

नफरत नहीं हो 

 प्यार ही प्यार 

७- हैं भाई भाई  

हम सब एक हैं 

धर्म ना  बांधे  

८-शालीन हुए 

म्रदु भाषी हो गए

संस्कारी हुए 

९- भीगे भागे से 

छाते  के अन्दर से  

झांकते  वर्षा 

१०-जल फुहार 

आसमा से बरसी 

भिगोने लगी |







11 जुलाई, 2022

रिश्ते कैसे कैसे



सागर सी गहराई होती रिश्तों में

सतही नहीं हों तो अधिक अच्छा है 

जब गहराई उनकी नापोगे समझ जाओगे

क्या है आवश्यक उन्हें निभाने के लिए |

रिश्ते निभाए जाते हैं अंतस की गहराई से

सतही जब वे  होते  टूटने के कगार पर होते

स्थाई वे हो नहीं सकते ड़ाल हिलाते ही बिखरते

तेज हवा के झोंके उन्हें बिखराते यहाँ वहां |

वे वास्तव में  होते जाते दूर सभी अपनों से

ड़ाल से टूटे हुए सूखे पत्तों जैसे  

यही बिखराव उनका पीले पत्तों सा

मेरे मन को बहुत ठेस पहुंचाता |

किसे कहूं अपना दुःख  जान नहीं पात़ा

रिश्ते माने हुए हों या खून के

पर सच्चे  दिल से जब अपनाए जाते

 तभी रिश्तों के नाम से पहचाने जाते |

जन्म से जुड़े रिश्तों की है और बात

समय आने पर अपनी पहचान का पता देते  

समय  पर अपनेपन का एहसास कराते

कोई अपनों से दूर नहीं हो पाता

समय के साथ  और करीब होता जाता |

जो  रिश्ते बनते मतलब पूर्ण करने को 

वे होते कागज़ के फूलों से दिखावट से भर पूर 

 मतलब निकल जाते ही  वे भी

 पलायन कर जाते पतली गली से |

आशा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

10 जुलाई, 2022

आगमन वर्षा ऋतु का

                         आज मौसम का मिजाज गर्म है

गर्म हवाओं के साथ रेस लगाने का इरादा है

जल्दी ही होगा परिवर्तन मौसम खुशनुमा होगा

वृक्ष नन्हीं जल की  बूदों से स्नान करेंगे |

 डालियों पर रंग बिरंगे  फूल खिलेंगे

शबनमी गुलाब मन मोहक लगेंगे   

यही सौगात मिलेगी प्रकृति से हमें
जिसे सम्हाल कर हम रखेंगे |

 पाकर जिसे मन का कौना कौना

अति आनंदित होगा खुशियों से सराबोर होगा

धरा का कण कण जल में तरबतर  होगा

हरियाली का रंग धरा पर चढ़ेगा |

फूलों की सुगंध से बगिया महकेगी 

वहां से कहीं जाने का मन न होगा

 कभी ठंडी हवा का झोका आएगा

सारे तन मन को भिगो जाएगा |

है यही बारिश के मौसम आनंद 

जिसका इन्तजार रहता बेतावी से

चारो ओर जल ही जल होता

समा बड़ा रंगीन होगा |

आशा 

09 जुलाई, 2022

मन की उथलपुथल


                               कितनी बार सोच विचार कियी

सही गलत का आकलन करना चाहा  

पर  किसी निराकरण पर न पहुंची

मन में असंतोष लिए घूमती रही |

कितनी बार तुमसे कहना चाहा

पूंछना भी चाहा तुम्हारे मन में क्या चल रहा है

 तुमसे भी सलाह लेनी चाही पर

तुमने भी साथ न दिया मेरा |

अब मैं किस का इतजार करूं

अपने विचारों पर मोहर लगाने के लिए

जो मैं सोचती हूँ क्या वह सही नहीं है

या जरूरत है और मंथन की उनके |

कभी सोचा न था इतनी उलझ जाऊंगी

अपने विचारों को रंग बिरंगे

 शब्दों का लिवास पहना न पाऊँगी 

न जाने क्या होगा अभी कुछ पक्का भी नहीं है |

हूँ अनिर्णय की स्थिती में सुध बुध खो रही हूँ

बीच भवर में डूब रही  हूँ

अब तो जीवन बोझ हुआ है

 भवसागर से कैसे पार उतर पाऊँगी |

आशा    


07 जुलाई, 2022

आत्म मंथन करो


 

अपने मन के  पापों  को

किसी और पर मत थोपो

जब भी झांको अपने अन्दर

सही विचार को जन्म दो |

झूट सच में जब भी उलझोगे

खुद को ही हानि पहुँचाओगे

कभी समस्याओं से उभर न पाओगे

उलझ कर ही रह जाओगे  |

जीवन दिखता है पहाड़ सा

पर कट जाता है क्षण भर में   

क्या करना है क्या नहीं

इनमें ही उलझे रह जाओगे |

खुद पर इतना विश्वास रखो  

अपने  कर्तव्यों से पीछे नहीं हटो

अधिकार तुम्हारे हैं सुरक्षित

उनको कोई छीन नही सकता |

जिसने भी ऐसा कदम उठाया

उस पर भी ऐसा समय आएगा

चिंता न करो ईश्वर सब देख रहा  

होनी में कुछ देर है अंधेर नहीं है |

 जितनी गलतफैमियाँ पाली  है   

 वे देर सवेर सभी सामने आएंगी  

उसके मन को कष्ट पहुंचाएंगी

पर बीता हुआ कल लौट न पाएगा |

माना है वह गुणों की धनी

पर झूठा अहम भरा कण कण में 

खुद को सर्वश्रेष्ठ समझती है

यही कमीं रही उसमें |

आशा