03 अगस्त, 2022

तेरी तस्वीर


 

तेरी तस्वीर मेरा मन में

कुछ ऎसी समाई कि

उससे छुटकारा न पाने की

 मैंने कसम सी  खाई |

जब भी मैं कहीं जाती 

तेरी यादों मैं खोई रहती

इस तरह कि मैं भूल ही जाती

 क्या करने आई थी क्या कर डाला |

यही  बेखुदी मुझे खुद की  समस्याओं में

उलझाए रखती उबरने न देती

अपने आप में समेटे रखती

मुझे असामाजिक बनाती जाती |

मैं कहीं की न रहती

उलझनों में फंसी रहती

सब की दृष्टि में गिर जाती

किसी से नजरें न मिला पाती |

आशा

01 अगस्त, 2022

संयम

 




                संयम आवश्यक है

सफलता की दौड़ में

जिसने यह सोच लिया

उसी ने की हांसिल

जीवन की रंग रलियाँ

जीवन में आगे बढ़ने के लिए

है यही मूलमंत्र |

धीमें धीमें चलना

आगे बढ़ने के लिए

बहुत कुछ खोना पड़ता है

कुछ नया  पाने के लिए |

जिसने भी सयम खोया

मन को संतप्त किया

कभी भी उस ऊंचाई  तक

न पहुँच पाया

यही समय मिला उसको

अपनी पराजय पर

घोर असंतोष जाहिर करने का |

प्रकृति का आलम


 

भावों की उत्तंग तरंगें

जब विशाल  रूप लेतीं

मन के सारे तार छिड़ जाते

उन्हें शांत करने में |

पर कहीं कुछ बिखर जाता

किरच किरच हो जाता

कोई उसे समेंट  नहीं पाता

अपनी बाहों में |

कितने भी जतन करता 

मन का बोझ कम  होने का

नाम ही न लेता

मचल जाता छोटे बालक सा |

यही प्रपंच शोभा न देता

एक परिपक्व्  उम्र के व्यक्ति को

वह हँसी का पात्र बनता

जब महफिल सजती और  

वह अपनी रचनाएं पढता |

वह सोचता लोग दाद दे रहे हैं

पर यहीं वह गलत होता

कवि  कहलाने की लालसा

उसे अपनी कमियों तक

पहुँचने नहीं देतीं 

जन मानस तो दाद की जगह

उपहास में व्यस्त रहता तालियाँ बजाने में  |

वह कितनी ही  बार सोचता

उसने क्या लिखा किस पर लिखा 

पर थाह नहीं मिल पाती |

 यहीं तो कमीं रह जाती

वह  क्या सोचता

पर किससे  कहता

सब समझ से परे होता |

आशा

 


29 जुलाई, 2022

हाइकू

 १-कलह नहीं 

सद्भाव  ही चाहिए 

यही है मांग 


२-तुम्हारा प्यार 

है एक छलावा ही 

कैसे कहती 


३-मुझे प्यार दो 

कहना है सरल 

पर न कहा 


४-छलकी आँखें 

वह हादसा  देख 

धैर्य खो गया 


५-सारे तीर्थ हैं 

विश्वास  के गढ़ ही 

हैं व्यक्तिगत 


६-राम जन्में 

सरयू नदी तीर 

अयोध्या में 


७-पैर पखारे 

पवित्र पावन हैं 

पद राम के 


८- नमन प्रभु 

राम  और सीता  को 

मिलती शान्ति 

आशा 

प्रकृति का गीत


                                                  मधुर धुन पक्षियों की

 जब भी कानों में पड़ती

मन में मिठास घुलती मधुर स्वरों की

मन नर्तन करता मयूर सा |

जैसे ही भोर होती

कलरव उनका सुनाई देता अम्बर में

आसमान में उड़ते पंख फैला   

अपनी उपस्थिति दर्ज कराते |

स्वर लहरी इतनी मधुर होती

आकर्षित करती अपनी ओर

खुशनुमा माहौल होता प्रकृति का

मन करता कुछ देर और ठहरने को |

घर जाने का मन न होता

बगिया में रुक हरियाली का मजा उठाता

 आनंद में खो जाना चाहता

भूल जाता कितने काम करने को पड़े हैं |

जब यह ख्याल आता जल्दी से कदम उठाता

अपने आशियाने की ओर चल देता

अपने से वादा लेता समय का महत्व बताता   

 कल जल्दी ही यहाँ पहुंचना है समझाता |

आशा   

 

 

 

27 जुलाई, 2022

वर्षा ऋतु का आगमन

 


 जल की नन्हीं बूंदे आतीं

 काली घटाएं आपस में टकरातीं

व्योम में बिजली चमकती जब टकराती  

वर्षा ऋतु आगमन का होता आगाज  |  

 बादल काले कजरारे उमढ घुमढ आते

 आपस में टकराते गरजते बरसते 

  वर्षा की उम्मीद जगाते  

 खेतों में नन्हें पौधे अंकुरित होते |

 होती जब मखमली हरियाली   

व्योम में धुंधलका छा जाता

जब भी बादल समूह में आते

कभी काले कभी भूरे दीखते

अनूठा मनमोहक नजारा होता |

जब भी वे आपस में टकराते बादल  

तीव्र गर्जना होती 

दिल दहल जाते सब के  

सोते बच्चे चौंक कर उठते |

पर रिमझिम वारिश होते ही   

वर्षा में भीगने को लालाइत होते

सारी सीमाएं तोड़ कर

भागते आंगन की ओर |

यही तो बचपन है

प्रकृति में जीने का

 भीगने खेलने नहाने का

आनंद है कुछ और |

आशा 

आशा 

26 जुलाई, 2022

मुझे शिकायत है यह कैसे जानोंगे

 


                                                             हर बात पर मुझसे बहस करना 

नीचा दिखाने से बाज न आना 

जब आदत ही बनाली तुमने 

 तुम कैसे जानोगे मुझे कैसे पहचानोंगे |

तुमको   प्यार से बोलना न आया 

मिठास शब्दों में घोलना न आया 

कभी कुछ नया  सीखा ही नहीं तुमने 

 मेरी शिकायत  को कैसे समझोगे |

 मैंने ही पहल की सुलह सफाई की 

आगे कदम बढाए मैंने पर तुम न जान पाए 

मेरे मन में क्या है मैं क्या सोच रही हूँ 

ना समझे ना ही कोशिश की मुझे समझने की |

यही तो शिकायत है मेरी 

तुमने  मुझ पर ध्यान ही  नहीं दिया 

 किसी कार्य के योग्य  न समझा 

जब भी आगे बढ़ना चाहा 

पीछे से पैरों को  खीच लिया |

कभी गिरी गिर कर न सम्हली 

मुझ में  हीन भाव उत्पन्न हुआ 

मैं क्या करती कैसे शिकायत करती 

तुमने  मुझे अपना न   समझा  |

मुझे शिकायत है यही तुमसे 

 पलट कर ना   देखा कभी  तुमने 

मैं भी हूँ पीछे तुम्हारे |

तुम्हारा हक़ है मुझ पर

 यही बहुत है मेरे लिए 

अपना  हक़ मैं भूली नहीं

जीना चाहती हूँ अधिकार से |

आशा