22 सितंबर, 2022

बातें दो बच्चों की

एक दिन दो बच्चे अपने दरवाजे  पर बैठे बहुत गंभीरता से आपस में बातें कर रहे थे | अंशु ने कहा आज मेरा जन्म दिन है |तुम  जरूर आना |हर्ष ने कहा  हाँ मैं जरूर आऊँगा पर एक समस्या है मेरे आने में| मेरे पास तुम्हें देने के लिए उपहार तो है नहीं  |हाँ यह तो मैंने सोचा ही नहीं था |ठहरो मैं कुछ जुगाड़ करता हूँ |वः दौड़ा दौड़ा अपने कक्ष में गया          अपने बैग  से एक छोटी सी डायरी निकाली और  हर्ष के हाथ में थमा दी और कहा  ले यह ही दे देना अखवार में लपेट कर ||अरे नहीं इसमें तो कुछ लिखा है |अंशु ने लिखे हुए पन्ने फाड़कर डायरी फिर से हर्ष को देते हुए कहा ले अब तो खाली है यही देने के लिए ठीक रहेगी |मैंने बाहर झाँक कर देखा और अपनी हंसी रोक नहीं पाई |खैर बाहर जाकर उनकी समस्या का निदान किया और कहा  कोई आवश्यकता नहीं होती उपहार देने की | औपचारिकता निभाने की  |आने का ही महत्व होता है |एक खुशी की चमक हर्श के चहरे पर आई और दौड़ कर अपने घर की ओर चल दिया शाम को आने का वादा करके |

आशा 

21 सितंबर, 2022

है दोष किसका


                                                                आज रात सपने में खुद को 

आसमान में उड़ते देखा 

साथ थे   कई परिंदे  चहचहाते 

साथ उड़ते बड़े प्यारे लगते |

जब भी नीचे आना चाहा 

मेरे पंख सिमट न पाए 

 धरा पर आने में असफल रहा 

सूर्य की तपती धूप से 

भूख प्यास से बेहाल हुआ

 तरसती निगाहों से धरा को देखा 

मन में गहन उदासी छाई 

खुद को असहाय पाकर 

तभी अचानक घना पेड़

 बरगद का देखा  |

फिर से जुनून पैदा हुआ 

उस पेड़ पर उतरने का 

हिम्मत जुटाई फिर कोशिश की 

 जब  सफल रहा मन प्रसन्न हुआ |

मैंने सोचा न था कभी मेरी 

उड़ान समाप्त हो पाएगी 

मैं हरी भरी धरती को 

स्पर्श तक कर पाऊंगा |

अपनी इस सफलता पर 

मुझे अपार गर्व हुआ 

फिरसे यहीं  घर अपना बनाया 

उड़ने का सपना छोड़ दिया |

 लगने लगा जो   जहां का है प्राणी 

उसे वहीं रहना चाहिए 

ऊंची दूकान फीके पकवान के 

स्वप्न न देखना  चाहिए |

सपनों में जीने से है क्या  लाभ 

 क्या कमीं रही सब कुछ तो है यहाँ 

मेरी  दृष्टि हुई है संकुचित 

इस में है  दोष   किसका ?

आशा सक्सेना 


20 सितंबर, 2022

उलझन जीवन की




                               जीवन जीने का मन न हुआ

कितना भी यत्न किया

एक बार जो मोह की गाँठ लगी

खुल नहीं पाई तोड़नी पडीं |

मन की उदासी कम होने का

नाम ही  नहीं लेती

 बिना बात उलझाए रखती

यह भी  नहीं बताती कारण क्या हुआ |

कारण यदि पता होता

इतनी उलझन न होती

कोई  मार्ग निकल ही आता

जीवन में उदासी न होती |

आखिर कब तक उलझी रहूँगी

दुनिया के प्रपंचों में

किस तरह मुक्ति पाऊँगी

दुनियादारी के झमेलों से |

हे प्रभु मदद करो मेरी

तुम्हारी शरण में मैं आई

इतनी दया करो मुझ पर

मन की शांति बापिस करो मेरी |

आशा सक्सेना 

19 सितंबर, 2022

सरस्वती वन्दना


 

 

                                                        हे वीणा वादिनी स्वर की देवी

मधुर तुम्हारी वीणा का स्वर 

सुनकर  पहुंची तुम्हारे दर  पर 

पाँव पकड़ वंदन किया |

मुझे मालूम है तुम हो  ज्ञान की देवी

थोड़ा  ज्ञान मुझे भी  दे दो 

इतना उपकार करो मुझ पर

मेरा बेड़ा पार लगादो  |

करो भव सागर के पार  

मैंने पूजा की है मनसे

बस एक वर ही माँगा तुमसे

हो तुम विद्द्या की देवी ज्ञान दो |

अज्ञान से दूरी हो मेरी

यही चाह है मेरी

 मेरा बेड़ा पार करो 

बीच भवर में नैया  मेरी

किसी का संबल नहीं मुझको |

जब बेड़ा होगा पार मेरा

नैया पहुंचेगी उस पार 

होगा जय जय कार तुम्हारा

करो उपकार यही मेरा |

16 सितंबर, 2022

सच्चा मोती

 सागर में सीपी 

सीपी में मोती 

मोती में आभा  अद्भुद 

छिपी अन्दर है |

है नायाब मोती 

बहुत मुश्किल से

 मिलता है

 इसकी कांति  कभी

 कम नहीं होती |

 स्त्री के चेहरे पर तेज  

की तुलना की जाती 

 इसके  तेज से अक्सर |

उसकी पवित्रता 

तोली जाती है 

मोती की चमक  से |

सच्चा मोती होता 

 वेशकीमती अनमोल 

आसानी से उपलब्ध 

नहीं होता 

उसकी  चमक न 

  फीकी होती 

तभी तुलना होती 

  उसकी आभा की स्त्रियों के 

मुख  मंडल की आभा से  |

आशा सक्सेना 

14 सितंबर, 2022

असफल निर्णय

 

 

 

क्या कहा जाए ?

कैसे समझाया जाए ?

किसे समझाया जाए ?

आज तक निर्धारण न हुआ

जब भी सोच  विचार किया  

किसी निर्धारण पर

पहुँचने की कोशिश की

असफलता ही हाथ लगी |

किसी निष्कर्ष पर पहुँचाने से पहले ही

वाद विवाद की स्थिति बनी

यही बात आपस में उलझ कर रह गई

कोई निष्कर्ष न निकल पाया |

जिसने भी कोशिश की  थी

मन मसोस कर रह गया

पर अपनी हार सहन न कर पाया

कोशिश करने से पीछे नहीं हटा 

फिर से प्रयत्न किया प्रारम्भ |

आशा सक्सेना

13 सितंबर, 2022

मेरा उद्देश्य

 

लिए चौमुख दियना हाथ में

दिया ढका आँचल से

बचाया उसे हलकी बयार से

  चली साथ में रौशन हुआ समस्त मार्ग 

  आवश्यक नहीं कोई 

 अन्य रौशनी के स्रोत का  

दिग दिगंत चमका देदीप्तिमान हुआ

आगे जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ

फिर क्यों पलट कर पीछे देखूं  |

आगे बढ़ने की चाह में

कोई नहीं व्यब्धान चाहिए

 कोई बाधा उत्पन्न हो यदि उसे दूर हटाना ही है ध्येय मेरे जीवन का

 कभी पीछे न हटने की कसम खाई है |

 जब जीवन के उद्देश्य में सफल रही   

यही होगी पूर्ण सफलता मेरी

मुझे हार मंजूर नहीं

 दिल मेरा टूट जाएगा

फिर जीवंत न हो पाएगा |

एक यही चाह मन में रह जाएगी

कि इस छोटे से 

जीवन काल  में

आगे बढूँ बढ़ती चलूँ

 बिना किसी बाधा के

अपने लक्ष्य तक पहुंचूं

 अपना मंतव्य पूर्ण करूं |

है यही अरमान मेरा 

किसी बाधा से नहीं डरूं

जो भी बीच में आए

 उसे वही समाप्त करूं

 मार्ग अपना प्रशस्त करूं |

कभी हार न मानूं किसी से

अपने ही मार्ग पर चलती चलूँ

ना किसी का अधिकार छीनूँ

ना उसे अपना अधिकार का

 अधिग्रहण करने दूं|