10 नवंबर, 2022

शिक्षा जीवन भर चलती


 

 

शिक्षा जीवन भर चलती

बचपन अनुशासन की पहली  सीड़ी

मां रही प्रथम गुरू उस उम्र  की

धीरे से जब कदम बढाए

उम्र ने आगे बढ़ने की राह चुनी  |

 कितने ही गुरू मिले पर

संतुष्टि नहीं मिल पाई

सच्चा गुरू  मिला जब

कुछ नया सीखने को मिला |

पूरा पूरा ज्ञान मिला

मन में  संतुष्टि आई

 खुशी चहरे  पर छाई |

तीसरी सीड़ी पर ध्यान  भटका

कहीं अटकने का मन हुआ पहले

पर ठोकर खाई पहले पैर लड़खड़ाए

पर झटके से सम्हले आगे बढे|

चतुर्थ चरण में  राम नाम का आकर्षण हुआ

आने वाले कल की  याद में

मुक्ति के कपाट खुले देख  

आगे बढ़ने की राह मिली

 जीवन को सद्गति मिलती |

आशा सक्सेना 

 

09 नवंबर, 2022

कलाकार के मन का सोच

 


कलाकार के मन का सोच

मेरा मन खोखला हुआ

अब सोचने का कोई लाभ नहीं

कैसे जीवन भी बड़ा बोझ हुआ

मैं सोच कर हैरान हुआ |

कितनी कहानी फिल्माईं

कोई सही कोई गल्प लगी

पर देखने में बुरा क्या है

कला की अनमोल निधी सहेजी है |

यही सब विचार मन में रहते हैं

उन को उम्दा रंग मंच मिला

यदि दर्शक साहित्यिक मिले

चार चाँद लगे प्रस्तुति में सप्त रंग छाए |

मन को पुरूस्कार देने लायक समझा

 मेहनत सफल हुई कलाकारों  की

जीवन में नव् चेतना का संचार हुआ

नया आयाम देखा उनमें |

कितना परीश्रम किया समूह ने

 यही उद्देश्य रखा सबके जीवन  में

कभी हार  नहीं मानेगे

 अपने को सफल कलाकार बनाने में |

आशा सक्सेना

 

08 नवंबर, 2022

हाइकू

 

हरी धरती

नीला है आसमान 

प्रकृति एक

 

किसी ख्याल में

डूबना उतरना

  ठीक नहीं है

 

 

मन में बसा 

राम है  मंदिर के  

 कण कण में

 

किसने जपा

प्यारा सा  राम नाम

मन में बसा 

 

भारत वर्ष  

हमारा अपना है

यही   अपेक्षा

 

 आशा सक्सेना

07 नवंबर, 2022

कब तक मुझसे जुदा रहोगे

 कब तक मुझसे जुदा रहोगे 

मैंने जब से स्वीकारा तुम्हें 

हर  दिन को गिन गिन कर काटा 

कभी न सोचा क्या हुआ मुझे |

  मेरी लगन है  लगी जब तुमसे 

 पर प्रति दिन रहा इन्तजार  तुम्हारा  

मैंने इसे ही अपना कर्तव्य समझा 

यही प्राथमिकता रही  मेरे लिए भी 

 तुमने  जिन आवश्यक कार्यों को पूर्ण करने का 

  मैंने भी उसका ही बीड़ा  उठाया 

वही रहा  मेरा भी उद्देश्य  पर दूसरे नंबर पर    |

अपने दाइत्व को पूर्ण करने का 

जो  जुनून सर चढ़ बोला किसी ने कहा 

 पहले अपने दाइत्व पूर्ण करो 

फिर अपने मन को दो इजाजत 

यहाँ वहां विचरण करने की |

क्या यह नहीं हो सकता 

                         हम दोनो भी मिल जुल कर                           

क्या यह होगा संभव 

\तुम्हारे कर्तव्य  को पूर्ण करें 

कब तक रहोगे दूर मुझसे 

मुझको समझने की कोशिश करोगे 

तुमने मुझे अपना समझा ही नहीं 

प्यार का दिखावा खूब किया |

मन को ठेस लगी 

तुम्हारा यह दुहरा रूप देख कर 

क्या तुम को मेरा  सान्निध्य पसंद  नहीं किया  

या कोई जरूरी कार्य तुम्हें वहां बांधे रखता  |

 आखिर कब तक जुदा रहोगे |

आशा सक्सेना 


06 नवंबर, 2022

साहित्य के सागर में

 


                 साहित्य के गहरे सागर में

जब भी कदम बढाए आगे

किसी न किसी उर्मी ने

 सामना किया रोकना चाहा |

पहले तो भयभीत हुए

धीरज रखा सावधान हुए

फिर भी नहीं अनजान

सागर की गहराई से |

उस नई  विधा को छूने की

कितनी बार कोशिश भी की

पर परिपक्व न हो पाए

उसका चेक भुनाने में |

अब मन बेलगाम हुआ

फिर से भागा उसके पीछे

उस को अपनाने की कोशिश में

घबराया नहीं धैर्यवान रहा |

अब तो यह गलत फहमीं भी दूर हुई

कि हम सब कर सकते है

इतना सोच आगे बढ़ा कि

मन को बड़ा  सुकून मिला  |

फिरऔर भी कोशिश करते रहे

और सफल हुए इस परीक्षा  में भी  

फिर किसी अन्य विधा को अपनाया

उस में भी खुद को सबसे आगे पाया |

मन में प्रसन्नता की सीमा न रही

हर्षित हुए अंतर मन से

सराबोर हुए साहित्य के सागर में

 श्रोताओं की ओर से प्रशंसा मिली|

जिसकी खोज में डूबते  उतराते  गए  रहे सरोवर की गहराई में

 साथ मिला मछलियों और जलचरों का

तारीफों के इतने पुल बंधे

 कि खुशियों में डूबते गए |  

05 नवंबर, 2022

क्या तुमने मुझे याद किया


 

क्या तुमने कभी मुझे याद किया

भूले से प्यार  का दिखावा किया

यदि हाँ तो कब किया कितना किया

 किस के मार्ग दर्शन में किया |

क्या है एहमियत मेरी तुम्हारी निगाहों में

या  थोपा गया रिश्ता है मेरा तुम्हारा आपस में 

या तुमने कभी मुझे प्यार से चाहा है मुझे

या कहने भर से सतही रिश्ता जोड़ा है मुझसे 

या  किसी के कहने से यह बंधन स्वीकारा है   

मुझे यह रिश्ता नहीं भाता ना ही आकृष्ट करता |

  जीवन में कितने ही सम्बन्ध गहरे नहीं होते  

 मात्र दिखावा होते उनमें कोई सत्यता नहीं होती  

चाहत भी सतही होती जिसे देख नहीं पाते

केवल महसूस कर पाते जब समाज में रहते |

तब मन को बड़ा कष्ट होता मन विचलित होता

एकांतवास का इच्छुक होता जीवन में शान्ति चाहता

पहले जैसा जीवन चाहता

 जब भी रात होती  फिर  दिन होता

फिर  चिड़ियों की चहचाहाहट होती  |

कब सूरज की ऊष्मा हमारी देह को छू जाती 

उसका अद्भुद एहसास होता जीने की तमन्ना जगाता   

मन उत्फुल्ल हो गुनगुनाता सूर्य रश्मियों से खेलता था

अपने नैसर्गिक सौन्दर्य को बरकरार रखता था |

आशा सक्सेना 

04 नवंबर, 2022

जीवन का कटु सत्य


जब झांक कर देखा बीते कल  में

 पाया जीवन है दुःखों भरी कठिन राह   

कहाँ पहुँचने की तमन्ना थी राह कठिन

यह कभी न सोचा अपनी ही वाह्वाई चाही |

यह भी भूलीं आगे बढ़ने के लिए

किसने साथ दिया था तुम्हारा  

शायद ही कोई पल ऐसा हो

जब कोई आगे बढ़ने में बाधक हुआ हो |

जब भी पलट कर झांकोगी विगत में

सोचोगी महसूस करोगी

जानोंगी तुम कहाँ गलत थीं  

पर समय तब तक बीत गया होगा |

बापिस लौट कर न आएगा

तब मन को ठेस लगेगी

होगी बहुत अशांति तब 

खुशहाल जीवन जीना कठिन होगा |

तब तुम्हें एहसास होगा

 किसके बहकावें में आईं

तुम कहाँ गलत थीं

 आसपास जब  देखोगी

 तब तक समय का चक्र

 आगे बढ़ चुका होगा

तुम हाथ मलती रह जाओगी  |

तुम्हारे मन में पछतावा होगा

 उस काँटों की राह पर चल कर

उस मार्ग पर न चल पाओगी 

जिसे चुना तुमने हमने 

अब सारी जिम्मेदारी किस पर है |

जीवन है काटों की विरासत पर चलना

जब कष्ट पहुंचे धबराना पीछे पलटना 

हर दिन सुखदायक नहीं होता

 यह तुम जानती हो

दुःख की डाली पर कभी

 चंद दिन ही होते सुखद   

यही सत्य जो मन को 

अच्छा न लगता  |

आशा सक्सेना